शनिवार, 26 मार्च 2016

मेरे साथ चलिए शिलांग की सैर पर ! My first day in Shillong !

मेरी मेघालय यात्रा की पहली कड़ी में आपने देखा आसमान से दिखते शिलांग के आस पास के हरे भरे इलाकों को। रात को पूजा की गहमागहमी के बाद जब अगली सुबह उठे तो मौसम बिल्कुल साफ था। रात को ही पता चला था कि वहाँ के किसी स्थानीय समूह ने मेघालय बंद का आह्वान किया है। गाड़ीवाला जिसे हम गुवहाटी से लाए थे हमें ऐसी हालत में चेरापूँजी चलने की ताकीद कर रहा था। शायद दूसरी गाड़ियों में उसके मित्र भी उस दिशा में जा रहे थे। पर बंदी के दिन राजधानी से बाहर निकलने का हम खतरा नहीं उठाना चाहते थे सो हमने वहाँ के सुरक्षाकर्मियों से बात चीत करने के बाद शिलांग शहर के अंदर ही घूमने का निश्चय किया।

मेघालय एक जनजातीय इलाका है। यहाँ की तीन प्रमुख पहाड़ियों गारो, खासी व जयंतिया के नाम पर यहाँ की तीन प्रमुख जनजातियों के नाम हैं। इस मातृ प्रधान समाज में आदि काल से लोग जानजातीय रीति रिवाज़ को मानते रहे पर उन्नीस वीं शताब्दी में जब अनुकूल मौसम को देखते हुए ब्रिटिश  यहाँ दाखिल हुए तो उन्होंने यहाँ के लोगों में ईसाई धर्म का खूब प्रचार प्रसार किया। उसी की बदौलत आज राज्य के तीन चौथाई लोग इस धर्म का पालन करते हैं।

Cathedral of Mary कैथडरल आफ मैरी 

ज़ाहिर है इतनी बड़ी तादाद के लिए पूजा स्थल यानि चर्च भी काफी संख्या में बनाए गए। शिलांग में भी खूबसूरत चर्चों की बहार हैं पर इनमें सबसे सुंदर चर्च कैथडरल आफ मैरी को माना जाता है। सो सुबह सुबह हम सबसे पहले इसी के दर्शन को चल पड़े। कहते हैं कि इसी स्थान पर कभी जर्मन मिशनरीज़ ने एक कैथलिक चर्च बनाया था। पर 1936 में गुड फ्राइडे के दिन लकड़ी का वो चर्च आग में जलकर राख हो गया।  उसी साल यहाँ कैथडरल आफ मैरी की नींव रखी गई। चर्च को बनने में ग्यारह साल लग गए। पहली नज़र में ही मुझे ये  बड़ी शानदार इमारत लगी।  सड़क से चर्च तक पहुँचने के लिए दोनों तरफ से चौड़ी चौड़ी सीढ़ियाँ बनाई गयी हैं। चर्च के दोनों ओर आसमान छूते लंबे लंबे पेड़ हैं जिनके बीच  ये इमारत और खिल उठती है। 

यहाँ के लोग कहते हैं कि इस चर्च को बनाते समय यहाँ की चट्टानों को काटकर उनमें रेत भरी गई। यानि इस इमारत की नींव चट्टानों पर ना टिकी हो कर रेत की मोटी चादर  पर टिकी है। ऐसा इसलिए  किया गया ताकि ये इमारत भूकंप के झटकों को बर्दाश्त कर सके।


चर्च के चारों ओर काफी खुला समतल इलाका है। चर्च के अंदर तो तसवीर खींचने की मनाही थी। वैसे अंदर की दीवारों पर म्यूनिख के कलाकारों द्वारा टेराकोटा की कलाकृतियों में ईसा मसीह को दी गई यातना को दर्शाया गया है। बाहर आहाते में यीशू की माँ मैरी  की प्रतिमा है जिनके नाम पर इस चर्च का नामाकरण हुआ है।


चर्च के अंदर थोड़ा वक़्त बिताकर हमारा समूह शिलांग के सबसे मशहूर जलप्रपात एलिफेंट फॉल्स  की ओर चल पड़ा। अब आप अगर ये सोच रहे हैं कि इस जलप्रपात की शक्ल सूरत देख के आप इसके नाम के रहस्य का पर्दाफाश कर लेंगे तो आप मुगालते में हैं। शहर के केंद्र से मात्र बारह किमी दूर पूर्वी खासी पहाड़ियों पर स्थित ये जलप्रपात यहाँ के स्थानीय लोगों में  Ka Kshaid Lai Pateng Khohsiew के नाम से जाना जाता था। अब इसे हिंदी में उच्चारित करना मेरे बस की बात तो नहीं पर सरल शब्दों में इसका अर्थ है 'तीन पड़ावों में गिरता जलप्रपात' और यही इसकी असली पहचान है।

अब मुझे इस नाम को लेने में तकलीफ़ हो रही है तो ब्रिटिश कितने कष्ट से गुजरे होंगे ये आप भली भांति समझ सकते हैं। लिहाज़ा उन्होंने इस जलप्रपात की दूसरी पहचान ढूँढनी शुरु की। जलप्रपात के आख़िरी पड़ाव पर जा कर उन्हें लगा कि बगल की चट्टान का आकार हाथी जैसा है। अब उनका ये आकलन कितना सही था वो हम और आप तो बता नहीं सकते क्यूँकि आज से करीब एक सौ बीस साल पहले वो चट्टान भूकंप में नष्ट हो गयी।

Elephant Falls : First Step एलिफेंट फॉल पहला पड़ाव

शनिवार, 12 मार्च 2016

कैसा दिखता है आकाश से मेघालय ? Kolkata to Shillong : An aerial view of Meghalaya !

कुछ साल पहले की बात है। हिंदी में यात्रा लेखन पर शोध कर रही एक उत्तर पूर्व की छात्रा ने मुझसे  सिक्किम यात्रा वृत्तांत से जुड़े सवाल पूछे थे। साथ ही ये प्रश्न भी किया था कि सिक्किम के आलावा उत्तर पूर्व के किसी राज्य में क्या आप नहीं गए?  मैंने उससे कहा सोच तो बहुत सालों से रहा हूँ पर लगता है मेघालय व असम जाना शीघ्र ही हो जाए। पर वो 'शीघ्र' उस बातचीत के तकरीबन दो साल बाद आया जब दुर्गा पूजा की छुट्टियों में मेरा शिलांग, चेरापूँजी, मावल्यान्नॉंग और गुवहाटी जाने का कार्यक्रम बना। 

The abode of Clouds मेघों का आलय (घर) मेघालय

पर पूजा की छुट्टियों के समय मेघालय की ओर रुख करने की सबसे बड़ी समस्या रहने की होती है। चेरापूँजी में ज्यादा ढंग के होटल नहीं है और जो हैं वो महीनों पहले पूरी तरह आरक्षित हो जाते हैं। इसलिए अपने मेघालय प्रवास का केंद्र मुझे मजबूरन शिलांग बनाना पड़ा।

कोलकाता से शिलांग पहुँचने के दो रास्ते हैं। कोलकाता से गुवहाटी की उड़ान लीजिए और फिर वहाँ से सड़क मार्ग से सौ किमी की दूरी तीन घंटे में सड़क मार्ग से तय कीजिए। दूसरा तरीका ये है कि कोलकाता से शिलांग की सीधी उड़ान भरिए। पर इसके लिए आपको आरक्षण काफी पहले से कराना होगा  क्यूँकि इस मार्ग पर सिर्फ एयर इंडिया का विमान ही उड़ान भरता है। हमारे समूह में कुछ लोग गुवहाटी होकर आ रहे थे जबकि मुझे कोलकाता से शिलांग की सीधी उड़ान भरनी थी।

At Kolkata Airport नेताजी सुभाष चंद्र बोस एयरपोर्ट कोलकाता
करीब पौने एक बजे हमने कोलकाता से उड़ान भरी। गंगा डेल्टा को पार किया। पर मेघालय की सीमा तक पहुँचने में तकरीबन घंटे भर का समय लग गया। डेढ़ घंटे की उड़ान के आख़िरी आधा घंटे में नज़रें एक बार खिड़की से क्या चिपकी, फिर तो चिपकी ही रह गयीं। मेघालय एक ऐसा राज्य है जहाँ बारिश बहुतायत में होती है। राज्य का सत्तर प्रतिशत इलाका जंगलों से भरा पूरा है। पठार की समतल भूमि पर धान की खेती भी खूब होती है। सो जिधर भी देखिए वहाँ हरियाली ही हरियाली नज़र आती है।

Aerial View, Meghalaya मेघालय के आकाशीय नज़ारे