पिछले महीने आपको अपनी इटली यात्रा की पहली कड़ी में फेरारी के संग्रहालय की सैर कराई थी। उस सुबह संग्रहालय देखने से ज्यादा रोमांच दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक पीसा की मीनार देखने का था। मारानेल्लो जहाँ फेरारी का संग्रहालय है से पीसा की दूरी करीब दो सौ किमी की है।
यूँ समझ लीजिए कि हमें इटली के उत्तर मध्य इलाके से उसके पश्चिमी तटीय इलाके की ओर रुख करना था। इटली का उत्तरी चौरस भाग जहाँ फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी और आस्ट्रिया जैसे देशों से घिरा हुआ है वहीं दक्षिणी भाग के लंबे पतले सिरे के दोनों ओर समुद्र हैं। दक्षिण पूर्वी इटली की सीमाएँ एड्रियाटिक सागर तय करता है जबकि दक्षिण पश्चिम में टीरेनियन। नेपल्स की तरह पीसा और रोम टीरेनियन से बिल्कुल सटे ना होकर थोड़े ही दूर हैं जबकि वेनिस इसके पूर्वी तट की शान हैं।
हरी भरी पहाड़ी के बीच छिपा इटली का एक गाँव |
मारानेल्लो के इलाके से निकलते ही हमारी बस हमें हरे भरे पहाड़ों के बीच ले आई। ये मंज़र ज्यादा देर हमारे साथ नहीं रहा और आधे घंटे के अंदर हम इटली के मध्यवर्ती मैदानी इलाके में थे। कुछ देर सड़क के दोनों ओर छोटे छोटे घरों के चारों ओर एक ही फसल की बुआई किए गए बड़े बड़े फार्म दिखाई देने लगे। भारत की तरह यूरोप में छोटे खेत आप शायद ही देखेंगे। अगर इटली की बात करूँ तो यहाँ हर किसान के पास औसतन आठ हेक्टेयर की ज़मीन है।
ग्रामीण क्षेत्रों के खेत खलिहान |
इटली में घूमते हुए मुझे एक बात खास लगी वो ये कि यहाँ के ग्रामीण इलाकों के अधिकांश घरों का रंग रोगन क्रीम या पीले से मिलते जुलते रंगों से ही किया जाता है। छतें अवश्य खपरैल के गेरुए भूरे रंग की दिखाई दीं।
साँप की तरह लहराते पौधे और गमलों में पॉम की एक नस्ल |
गाड़ी चलाने वाला भटक ना जाए इसके लिए सामान्य साइनबोर्ड के आलावा पूरी सड़क पर ही बड़े बड़े अक्षरों में मुख्य शहरों की ओर जाती सड़कों को प्रदर्शित करने का यहाँ चलन हैं यानी दूसरे शब्दों में कहें तो यहाँ की सड़कें अपने आप में ही पथप्रदर्शक का काम करती हैं।
सीधी सड़क रोम को और दाँयी ओर रास्ता जा रहा है पीसा को |
करीब ढाई घंटे के सफ़र के बाद हमारा समूह पीसा के छोटे से शहर में दाखिल हो चुका था। पीसा में जहाँ झुकी मीनार है वो यहाँ के कैथेड्रल यानी बड़े गिरिजाघर परिसर का हिस्सा है। इस परिसर मैं फैली इमारतों को यहाँ का चमत्कारिक मैदान यानी Field of Miracles भी कहा जाता है। मुख्य सड़क से एक पतली सी राह परिसर के मुख्य दरवाजे तक लाती है। इस सड़क के दोनों ओर यहाँ सोविनियर बेचती छोटी छोटी दुकाने हैं। परिसर में घुसते ही आपको दाँयी ओर कुछ संग्रहालय और पर्यटक सूचना केंद्र मिलेगा जबकि बाँयी ओर एक हरे भरे मैदान के बीच यहाँ की बैपटिस्ट्री दिखाई देगी।
पीसा बैपटिस्ट्री Pisa Baptistery |
अगर आप ईसाई धर्म के रीति रिवाज़ों से परिचित हैं तो ये जानते ही होंगे कि दूसरे धर्मों के लोगों और बच्चों को ईसाई धर्म अंगीकार करने की शुरुआत बैपटिज्म नामक प्रथा से की जाती है। ये आयोजन जिस भवन में होता है उसे ही बैपटिस्ट्री कहते हैं। अगर आप इस आलेख के पहले चित्र को देखेंगे तो इस बैपटिस्ट्री को भी दाँयी ओर ज़रा सा झुका पाएँगे। बैपटिस्ट्री में अंदर जाने का अलग से टिकट लगता है जो मैंने नहीं लिया और यहाँ के मुख्य गिरिजाघर की ओर चल पड़ा।
Pisa Cathedral |
इस परिसर की सबसे पुरानी इमारत यहाँ का गिरिजाघर है। गिरिजे का ऊपरी भाग चारा समानांतर खंभों की कतारों पर टिका है। अंदर की दो कतारों के बीच बैठने के लिए लकड़ी के बेंच लगे हैं जिसके बीचो बीच चलकर आप जीसस की छवि के पास पहुँच सकते हैं। छत पर लकड़ी के फ्रेम पर नक्काशी कर सोने के पानी चढ़ा दिया गया है।
जीसस की छवि के ठीक ऊपर छत पर वर्जिन मेरी को अन्य संतों के साथ दिखाया गया है। किनारे की दीवारें चित्रित हैं पर ऊँचे ऊँचे खंभों की दीवारें बिना किसी नक्काशी के हैं। रोशनदानों की काँच पर रंग बिरंगी आकृतियाँ जरूर उकेरी गयी हैं जो आकर्षक लगती हैं। मुझे याद आया कि काँच पर ऐसी चित्रकला मैंने पहले राजस्थान के महलों में भी देखी थी। हमारे धनी रजवाड़े बड़े शौक़ से अपने महलों में काँच का काम यूरोप से कराते रहे हैं।
जीसस की छवि के ठीक ऊपर छत पर वर्जिन मेरी को अन्य संतों के साथ दिखाया गया है। किनारे की दीवारें चित्रित हैं पर ऊँचे ऊँचे खंभों की दीवारें बिना किसी नक्काशी के हैं। रोशनदानों की काँच पर रंग बिरंगी आकृतियाँ जरूर उकेरी गयी हैं जो आकर्षक लगती हैं। मुझे याद आया कि काँच पर ऐसी चित्रकला मैंने पहले राजस्थान के महलों में भी देखी थी। हमारे धनी रजवाड़े बड़े शौक़ से अपने महलों में काँच का काम यूरोप से कराते रहे हैं।
गिरिजे का प्रार्थना कक्ष |
पीसा का बडा गिरिजा Pisa Cathedral |
चूँकि ये भवन ग्यारहवीं शताब्दी में बनना शुरु हुआ इसकी संरचना रोमन स्थापत्य कला पर आधारित रही। परिसर के अंदर दो खंभों के बीच अर्ध चंद्राकार मेहराबें तो हैं ही, इसके प्रवेश द्वार पर भी इस शैली की अमिट छाप है।
गुंबद पर बना जीसस का चित्र, किनारे की दो कतारों के खंभों के बीच से दिखता दृश्य |
गिरिजाघर के ठीक पीछे यहाँ का घंटा घर है जिसे हम पीसा की झुकी मीनार के नाम से जानते हैं। कौन जानता था कि इंजीनियरिंग की एक भूल इस मीनार का शुमार दूनिया के सात अजूबों में करने में सफल हो जाएगी। इस घंटाघर का निर्माण गिरिजाघर और बैपटिस्ट्री के बनने के बाद बारहवीं शताब्दी में हुआ। इंजीनियरिंग में भवन बनाने के पहले उस स्थान की Soil Bearing Capacity मापी जाती है जो ये बताती है कि इमारत की नींव प्रति वर्ग मीटर कितना वजन सह पाएगी। कई बार बिना परीक्षण किए भी आस पास की भूमि के पहले से उपलब्ध आँकड़ों पर ये काम होता है।
बारहवीं शताब्दी में किस प्रक्रिया का अनुसरण किया गया ये तो पता नहीं पर हुआ ये कि मीनार के एक तरफ की भूमि अपेक्षाकृत मुलायम निकली जिससे मीनार उस ओर झुकने लगी। दूसरे तल्ले के बनने के बाद निर्माण का दोष सबकी नज़र में आया और काम वहीं रोक देना पड़ा। फिर लगभग एक शताब्दी तक पीसा के युद्ध में फँसे रहने की वजह से काम आगे नहीं बढ़ पाया। आपको जान कर ताज्जुब होगा कि निर्माण शुरु होने के लगभग दो सौ साल के बाद इस मीनार में वो घंटियाँ लगाई गयीं जिसके लिए ये घंटाघर बना था।
इंजीनियर क्या नींव ठीक करेंगे? कैमरे का कमाल इसे पल भर में सीधा कर सकता है। 😀 |
एक ओर से निरंतर धँसते रहने की वज़ह से एक समय इस पूरी इमारत के गिरने का खतरा उत्पन्न हो गया। नब्बे के दशक में इस इमारत को पर्यटकों के लिए बंद कर इसके पुनरुद्धार का काम शुरु हुआ। नींव की मजबूती के बाद अब अभियंताओं का दावा है कि ये मीनार दो सौ साल तक आसानी से इस अवस्था में संतुलित रह सकती है।
56 मीटर ऊँची पीसा की ये सात मंजिला मीनार सादगी और शालीनता की प्रतिमूर्ति लगती है। मेहराबों की एकरूपता और इसका सफेद रंग मन में निर्मलता जगाता है। । इन इमारतों के पीछे की कहानियाँ तो हम बाद में जानते हैं पर इन्हें नज़दीक से आँखों में भर कर जब भी देखते हैं तो एक अलग ही अहसास तारी होता है... शांति का सुकून का। कुछ पल के ही लिए ही सही अपने आप को भूल जाने का..। मन करता है बैठे रहें इस अहसास को पकड़ कर.. निहारते रहें कुशल कारीगरों के बनाए इन अद्भुत प्रतिमानों को ...पर इस मशीनी युग में इतनी फुर्सत कहाँ दी है हमने अपने आप को।
प्रथम तल पर की गयी नक्काशी |
कुतुब मीनार से उलट पीसा की मीनार में अतिरिक्त टिकट लेकर आप अंदर जा सकते हैं पर एक समय मीनार के अंदर एक निश्चित संख्या में ही लोग प्रवेश कर सकते हैं। यही वज़ह है कि अगर टिकट लें तो ये देख लें कि आपके पास कुछ अतिरिक्त समय है या नहीं? मीनार के बगल से एक रास्ता इस परिसर के बाहर बनी रंगीन इमारत को जाता है। इन इमारतों में एक ज़माने में यहाँ काम करने वाले कारीगर और कर्मचारी रहा करते थे। आज इसका इस्तेमाल आपेरा हाउस की तरह होता है। इन इमारतों से लगा यहाँ एक प्राचीन समाधि स्थल भी है।
नृत्यशाला की छाँव में आराम करते पर्यटक (Opera House) |
पीसा की मीनार से बाहर निकलते ही भगवा कपड़ों में लिपटे इन तथाकथित योगियों को हवा में लटके देख के आपको भारत की याद आ जाएगी। विश्व में भारतीय संतों के पानी पर चलने, हवा में तैरने की कहानियाँ इतनी प्रचलित हैं कि यहाँ कुछ भारतीय हवा में लटकने का करतब दिखा कर पैसे इकठ्ठा करते हैं। पीसा के चमात्कारिक मैदान के बाहर इन्हें देख कर मैं भी सकते में आ गया। बाद में पता चला कि ये सारा कारनामा इनके कपड़ों में छिपी छड़ों और प्लेटों की संरचना से संभव होता है यानी ऊपर हवा में लटकता व्यक्ति एक प्लेट पर बैठा होता है और उसका संतुलन एक दूसरी प्लेट से होता है जिसके ऊपर नीचे वाला व्यक्ति बैठा है।
योग का छलावा है ना मजेदार |
तो कैसी लगी आपको पीसा की ये यात्रा? इटली यात्रा की अगली कड़ी में ले चलेंगे आपको इटली की ऐतिहासिक राजधानी रोम में। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो Facebook Page Twitter handle Instagram पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें।
इटली यात्रा में अब तक