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रविवार, 3 मार्च 2013

रंगीलो राजस्थान : मेहरानगढ़ के महलों की दुनिया (The Palaces of Mehrangarh)

मेहरानगढ़ के किले (Mehrangarh Fort)  और उसके दौलतखाने (Daulatkhana) को देखने के बाद आइए आपको लिए चलते हैं उसके महलों की सैर पर।  तो शुरुआत करते हैं मेहरानगढ़ के शीश महल से। वैसे शीश महलों के निर्माण में सबसे आगे मुगल सम्राट रहे। सत्रहवीं शताब्दी में शाहजहाँ ने लाहौर और आगरे के किले में शीश महल बनाए। राजपूत शासक जब मुगलों के सम्पर्क में आए तो उन्होंने भी शीश महल बनवाने शुरु कर दिए। दशकों पूर्व जयपुर के अम्बर किले में मैंने पहली बार ऐसा ही एक शीश महल देखा था जिसमें हमारे गाइड ने सारे दरवाजे बंद कर के माचिस की तीली जलाकर छत की ओर देखने को कहा था। सच वो मंज़र आज तक नहीं भूलता कि जैसे एक साथ सैकड़ों तारे उस अँधेरे कमरे में टिमटिमा रहे हों। 

पर अब तो शीश महलों में अंदर घुसने पर पाबंदी है सो बाहर भीड़ के बीच से ही इसकी झलक लेनी होती है। जब मैं मेहरानगढ़ के शीश महल (Mirror Palace) के सामने पहुँचा तो वहाँ भी यही आलम था। मेहरानगढ़ का शीश महल इस अर्थ में मुगलई शीश महलों से अलहदा है कि यहाँ छत और दीवालों पर शीशे के काम के साथ चटक रंगों में बनी राजस्थानी चित्रकला का सुंदर सामंजस्य बैठाया गया है।


शीश महल के बाद हम जा पहुँचे झाँकी महल (Palace of Glimpses)  में जहाँ से राजपूर रानियाँ व उनकी दासियाँ आँगन में हो रही गतिविधियों का जायज़ा लिया करती थीं। शीश महल से उलट झाँकी महल की दीवारें सादी सफेद रंग की हैं। जैसा कि पिछली पोस्ट में आपको बताया था कि आज की तारीख़ में झांकी महल तरह तरह के पालनों का संग्रह है। इन पालनों में बनी परी की तसवीरें और शीशे का काम आपका सहज ही ध्यान आकर्षित करेगा ।

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

रंगीलो राजस्थान : मेहरानगढ़ - सफ़र श्रृंगार चौक से दौलतखाना का..

पिछली प्रविष्टि में मेहरानगढ़ का किला तो बाहर से आपने देख लिया। आइए आज आपको ले चलते हैं इसके दौलतखाने में। वैसे इस नाम से 'कन्फ्यूजिया' मत जाइएगा। हुजूर अब स्वर्ण मुद्राओं वाली दौलत कहाँ इन पुराने किलों को नसीब होनी है वो तो आज किसी बैंक की शोभा बढ़ा रही होगी। एक ज़माना था जब यहाँ खजाना रखा जाता था और उसके बाद इसका उपयोग शाही आभूषणों को रखने में किया जाने लगा। आज की तारीख में मेहरानगढ़ का दौलतखाना राठौड़ शासकों के शौर्य, रहन सहन,राजपूत संस्कृति से जुड़ी श्रेष्ठ कलात्मक वस्तुओं का एक संग्रहालय है। 

पर इससे पहले कि मैं आपको दौलतखाने की ओर ले चलूँ , एक नज़र मेहरानगढ़ के श्रृंगार चौक के संगमरमर के बने इस राजसिंहासन की ओर। श्रृंगार चौक तीन तरफ़ से लाल पत्थरों से नक़्काशीयुक्त झरोखों वाले महल से घिरा हुआ है। इसीलिए इसे झाँकी महल भी कहा जाता था। यहीं से राजमहल की स्त्रियाँ श्रृंगार चौक पर हो रहे राठौड़ राजकुमारों का राज्याभिषेक को देख पाती थीं।



मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

रंगीलो राजस्थान : नीले शहर जोधपुर की पहचान मेहरानगढ़ (Mehrangarh)


अगली सुबह सवा नौ बजे तक हमारा समूह जोधपुर के मेहरानगढ़ किले पर धावा बोलने के लिए तैयार था। बाहर नवंबर के तीसरे हफ्ते की चमकती धूप और नीला आसमान हमारा इंतज़ार कर रहा था। पौने दस बजे तक मैं मेहरानगढ़ के विशाल अभेद्य किले के सामने खड़ा था। राठौड़ राजाओं की शान कहा जाने वाला 122 मीटर ऊँचा ये किला राजस्थान के विशाल किलों में से एक है। राठौर नरेश राव जोधा (Rao Jodha) ने 1459 ई में जब इसे बनाया था तब ये इतना बड़ा नहीं था, पर जैसे जैसे राठौड़ शासकों की ताकत बढ़ती गई ये किला फैलता चला गया। शुरुआती दो द्वारों से बढ़कर आठ द्वार हो गए। आज का मेहरानगढ़ उन सारे बदलावों को अपने हृदय में समेटे हुए है जो पाँच सौ सालों के राठौड़ शासन के दौरान आए।

मेहरानगढ़ के पहले राठौड़ शासकों की राजधानी मण्डोर (Mandore) हुआ करता था जो इस किले से करीब 9 किमी की दूरी पर है। सुरक्षा की दृष्टि से भोर चिड़िया की पथरीली पहाड़ी के ऊपर एक किला बनाना राव जोधा को श्रेयस्कर लगा। पर एक प्रश्न सहज ही मन में आता है? वो ये कि चित्तौड़ के नाम से चित्तौड़गढ़, वही राणा कुंभ के नाम से कुंभलगढ़ तो फिर राव जोधा को इस किले का नाम मेहरानगढ़ (Mehrangarh) रखने की क्या सूझी? कहानियाँ कई हैं पर इतिहासकारों की मानें तो 'मिहिर' का मतलब सूर्य से है जो राजस्थानी में 'मेहर' भी कहा जाता है। राठौड़ शासक अपने को सूर्यवंशी मानते थे और संभवतः इसी वजह से इस किले का नाम मेहरानगढ़ पड़ा।