मेहरानगढ़ के किले (Mehrangarh Fort) और उसके दौलतखाने (Daulatkhana) को देखने के बाद आइए आपको लिए चलते हैं उसके महलों की सैर पर। तो शुरुआत करते हैं मेहरानगढ़ के शीश महल से। वैसे शीश महलों के निर्माण में सबसे आगे मुगल सम्राट रहे। सत्रहवीं शताब्दी में शाहजहाँ ने लाहौर और आगरे के किले में शीश महल बनाए। राजपूत शासक जब मुगलों के सम्पर्क में आए तो उन्होंने भी शीश महल बनवाने शुरु कर दिए। दशकों पूर्व जयपुर के अम्बर किले में मैंने पहली बार ऐसा ही एक शीश महल देखा था जिसमें हमारे गाइड ने सारे दरवाजे बंद कर के माचिस की तीली जलाकर छत की ओर देखने को कहा था। सच वो मंज़र आज तक नहीं भूलता कि जैसे एक साथ सैकड़ों तारे उस अँधेरे कमरे में टिमटिमा रहे हों।
पर अब तो शीश महलों में अंदर घुसने पर पाबंदी है सो बाहर भीड़ के बीच से ही इसकी झलक लेनी होती है। जब मैं मेहरानगढ़ के शीश महल (Mirror Palace) के सामने पहुँचा तो वहाँ भी यही आलम था। मेहरानगढ़ का शीश महल इस अर्थ में मुगलई शीश महलों से अलहदा है कि यहाँ छत और दीवालों पर शीशे के काम के साथ चटक रंगों में बनी राजस्थानी चित्रकला का सुंदर सामंजस्य बैठाया गया है।
शीश महल के बाद हम जा पहुँचे झाँकी महल (Palace of Glimpses) में जहाँ से राजपूर रानियाँ व उनकी दासियाँ आँगन में हो रही गतिविधियों का जायज़ा लिया करती थीं। शीश महल से उलट झाँकी महल की दीवारें सादी सफेद रंग की हैं। जैसा कि पिछली पोस्ट में आपको बताया था कि आज की तारीख़ में झांकी महल तरह तरह के पालनों का संग्रह है। इन पालनों में बनी परी की तसवीरें और शीशे का काम आपका सहज ही ध्यान आकर्षित करेगा ।