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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..

केरल के इस यात्रा विवरण में पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि किस तरह मोटरबोट यात्रा का विचार त्याग कर हमने जंगल में दो-ढाई घंटों की ट्रेकिंग का निश्चय किया। पेरियार वाले, वन के अंदर इस भ्रमण को नेचर वॉक (Nature Walk) की संज्ञा देते हैं।


इसके लिए आपको पाँच सौ का पत्ता खर्च करना पड़ता है। एक समूह में पाँच सदस्य हो सकते हैं। जंगल में साथ चलने के लिए एक गाइड रहता है जो आपका जंगल में मार्गदर्शन करता है। आप उसे किसी भी प्रकार से नाराज़ नहीं कर सकते क्योंकि एक बार वन में घुस जाने के बाद, यात्रा शुरुआत करने वाली जगह पर सिर्फ वही आपको पहुँचा सकता है।

आप सोच रहे होंगे के पेरियार के इन घने जंगलों में हम लोगों ने रात भर डेरा डालने या फिर जीप सफॉरी का मन क्यूँ नहीं बनाया? तो हुजूर जवाब सीधा है मन तो तब बने जब जेब साथ दे। अब Thekkady Tourism Devlopment Council (TTDC) की इन दरों पर ज़रा गौर कीजिए

  • जंगल जीप सफॉरी (Forest Jeep Safari) : 2000 रुपये मात्र प्रति व्यक्ति
  • पेरियार टॉइगर ट्रेल (Periyar Tiger Trail) : एक रात दो दिन 3000 रुपये मात्र प्रति व्यक्ति
  • बैम्बू रैफ्टिंग (Bamboo Rafting) :2000 रुपये मात्र प्रति व्यक्ति

अब अगर आप पाँच छः लोग हों तो सारा बजट तो एक दिन ही में बिगड़ जाएगा :) !

ठीक सवा ग्यारह बजे हमारा मलयाली गाइड हमारे सामने था। जंगल में घुसने की पहली हिदायत ये थी कि मोजे के ऊपर से जोंक प्रतिरोधक वस्त्र पहन लें। इस कपड़े को मोजे के ऊपर पहन कर घुटनों तक बाँध लेते हैं (ऊपर पहले चित्र में देखें)। इस तैयारी के साथ हमारा काफ़िला बढ़ चला।


पेरियार के जंगलों में प्रवेश करने के लिए आपको पेरियार झील (Periyar Lake) को पार करना होता है। और झील पार की जाती है बाँस की नौका से। इस नौका को देख कर बच्चों के चेहर खिल उठे। इसे चलाने के लिए चप्पू की नहीं बल्कि रस्से की जरूरत होती है। रस्से के दोनों सिरे अलग अलग दिशाओं में मजबूत पेड़ों से बाँध दिये जाते हैं। बस हाथ से रस्से पर जोर लगाया नहीं कि चल पड़ी हमारी नौका...

कुछ ही मिनटों में हम झील की दूसरी तरफ थे। जंगल के अंदर हमने क्या क्या देखा उसकी झांकी तो आप इस पोस्ट में देख सकते हैं।

जंगल सघन था। थोड़ी दूर चलने के बाद झील दिखनी बंद हो गई। पेड़ अपनी लताओं के साथ हमारे चलने में रुकावट पैदा कर रहे थे।

कुछ पेड़ तो इतने ऊँचे थे कि उनका ऊपरी सिरा दिखता ही नहीं था। कुछ पर परजीवी लताएँ भी अपना आसन जमाए बैठीं थीं। हम चुपचाप बिना आवाज़ किए चलते रहे क्योंकि ऍसा गाइड महोदय का आदेश था।

पेरियार के जंगलों में ३५ प्रजातियों के जानवर और २६५ प्रजातियों के पक्षी मौजूद हैं। पर जानवरों को देखने के लिए जंगल के बहुत अंदर तक घुसना होता है।

एक घंटे चलते-चलते हमें पेड़ों की झुरमुट के नीचे छायादार जगह दिखाई दी। जमीन पर गीली और सूखी पत्तियों का जमाव था। वहाँ दो तीन दिन पहले अच्छी बारिश हुई थी। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद सब चित्र खींचने लगे।

तभी मुझे लगा कि हम इतनी देर एक जगह खड़े रहे तो अपने जूते जाँच लेने चाहिए। मेरा इतना कहना था कि हमारी एक सहयात्री को अपने जूते पर दो जोंकें चलती नज़र आईं। बस फिर क्या था आनन फानन में सब लोग अपने जूते झटकने लगे। उन दो जोकों को तो ठिकाने लगा दिया गया। पूरी यात्रा के बाद जब उन्होंने अपने जूते निकाले तो दो और जोकें जूत के अंदर प्रतिरोधक वस्त्र पर घूमती टहलती नजर आईं।



दो घंटे चलने के बाद हम थकने लगे थे। थकान के पीछे दिन की चढ़ती गर्मी का भी हाथ था। करीब दो बजे हम उन जंगलों से निकल आए थे। दिन का भोजन कुमली में करने के बाद हमें अपने अगले पड़ाव कोट्टायम की ओर कूच करना था जो वहाँ से करीब ११० किमी था। कुमली (Kumli) के बाहर सड़क के दोनों ओर मसालों के बागान हैं। अगर कोई पर्यटक चाहे तो टूरिस्ट गॉइड के साथ इन बागानो की सैर कर सकता है। चाय के बागान अब भी दिख रहे थे पर फर्क ये था कि इन बागानों में सिल्वर ओक (Silver Oak) के पेड़ के साथ काली मिर्च के पौधे भी लगे थे जिन्होंने सिल्वर ओक को अपने बाहुपाश में जकड़ा हुआ था।

रास्ते के चाय बागानों में पहली बार मजदूरों को पत्तियाँ चुनते भी देखने का अवसर मिला। अब हम पूर्व से पश्चिमी दिशा की ओर जा रहे थे, और पश्चिमी घाट की पहाड़ियाँ धीरे धीरे एक एक कर हमारा साथ छोड़ती जा रहीं थीं। कोट्टायम जिले में प्रवेश करते ही रबर के बागानों ने हमें घेर लिया था। कोट्टायम भारत में प्राकृतिक रबर के उत्पादन में प्रमुख स्थान रखता है। भारतीय रबर बोर्ड का मुख्य कार्यालय भी यहीं है। कोट्टायम केरल में शिक्षा और मलयालम साहित्य के विकास का प्रमुख केंद्र रहा है। यहाँ सीरियन क्रिश्चन (Syrian Christan) की अच्छी खासी आबादी निवास करती है। शाम सात बजे के लगभग हम कोट्टायम शहर की चमक दमक के बीच थे।

पैकेज टूर वाले अक्सर थेक्कड़ी से पर्यटकों को कुमारकोम (Kymarakom) ले जाते हैं जो कोट्टायम से मात्र १८ किमी दूर है और पर दिसंबर में वहाँ के बैकवॉटर रिसार्टों (Backwater Resorts) की कीमत आसमान छूती हैं। २८ दिसंबर का दिन हमने केरल के बैकवॉटर को देखने के लिए मुकर्रर किया था। केरल का अगले दिन का रूप बिल्कुल भिन्न प्रकृति का था। पहाड़ों , जंगलों की सैर करने के बाद क्या पृथक था इस रूप में ये जानते हैं इस यात्रा की अगली कड़ी में...


इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

  1. यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
  2. यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
  3. यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
  4. यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
  5. यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
  6. यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
  7. यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
  8. यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
  9. यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
  10. यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
  11. यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
  12. यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
  13. यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातफरी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !

26 दिसंबर की शाम कुमली के बाजारों में बीती। कुमली में मसालों के ढ़ेर सारे बगीचे (Spice Garden) हैं जहाँ इलायची, काली मिर्च, लौंग, दालचीनी, जायफल की खेती की जाती है। इसलिए हमारी खरीदारी का मुख्य सामान मसाले ही थे। अब भला ७० रुपये में सौ ग्राम इलायची मिले तो कौन नहीं लेना चाहेगा। इसके आलावा तरह-तरह के आयुर्वेदिक तेल और हाथों से बनाए चॉकलेट भी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र थे। यहाँ केरल के प्रसिद्ध आयुर्वेदिक तेल मसॉज (Herbal Oil Massage) का आनंद भी आप ले सकते हैं पर हममें से कोई उसके लिए विशेष उत्साहित नहीं था।

होटल के बगल में रात को केरल के शास्त्रीय नृत्य कत्थकली (Kathakali) का आयोजन था। पर एक एक टिकट का मूल्य दो सौ रुपये था और उसे देखने के लिए पर्याप्त संख्या में विदेशी पर्यटक मौजूद थे। दरअसल केरल में जाने पर एक बात स्पष्ट लगती है कि सरकार मुख्य रूप से विदेशी सैलानियों और अमीर भारतीयों को अपनी ओर आकर्षित करना चाहती है और ये बात थेक्कड़ी में सबसे ज्यादा खटकती है। कोचीन में जब हम सरकारी पर्यटन कार्यालय में विभाग द्वारा चलाए गए होटलों के बारे में पूछने गए थे तो वहाँ के कर्मचारी ने हँसते हुए जवाब दिया था कि वो आप लोग नहीं कर पाएँगे क्योंकि वे सारे सितारा होटल हैं। बाद में इस बात की सत्यता जानने के लिए जब इंटरनेट पर के.टी.डी.सी. (KTDC) का जाल पृष्ठ खोला तो पाया कि एक दो को छोड़ दें तो अधिकांश के किराये ही तीन हजार प्रतिदिन से ऊपर हैं।

जिस होटल में ठहरे थे वहाँ हमसे ये कहा गया था कि सुबह झील यात्रा के टिकट की चिंता ना करें वो बड़ी आसानी से मिल जाएगा। पर रात होते होते भारी भीड़ की वजह से हर टिकट पर प्रीमियम की बात होने लगी। सुबह सात बजे निकते तो थे कि आठ बजे फॉरेस्ट गेट पार कर साढ़े आठ बजे वाली नौका को पकड़ लेंगे पर गेट के बाहर ही जंगल में अंदर घुसने के लिए एक डेढ़ किमी लंबी गाड़ियों की पंक्ति लगी थी। गाड़ी को वहीं छोड़ हम गेट पर टिकट लेने पहुँचे। वहाँ भी वही हालत थी। देने वाला एक था और पंक्तियाँ दो थीं। एक विदेशियों के लिए और दूसरी देशियों के लिए। लाइन इतनी मंथर गति से बढ़ी कि हमें गेट पार करने में ही डेढ़ घंटे लग गए। लिहाजा साढ़े आठ की मोटरबोट छूट गई।

पूरी पेरियार झील उस समय सफेद घनी धु्ध में डूबी हुई थी। धु्ध इतनी गहरी थी कि ना तो जंगल दिख रहे थे ना झील। मन ही मन सोचा कि ऐसे में हमें मोटरबोट से शायद ही कुछ दिखाई देता। पेरियार जंगल के अंदर से ही वन विभाग और पर्यटन विभाग की नौकाएँ छूटती हैं। पर बदइंतजामी का आलम ये था कि घंटों पंक्ति में खड़े होकर भी टिकट नहीं मिल रहे थे। टिकट के दलाल पहले ही टिकट खरीद कर 'बोट फुल' की घोषणा कर देते। इस अफरातफरी की वजह से तनाव इस हद तक बढ़ गया कि बात मारा मारी तक पहुँच गई।
(काउंटर पर हंगामे का दृश्य बगल के चित्र में देखें)


घंटों लाइन में खड़े रह कर नौका यात्रा करने का विचार हमने त्याग दिया। हमें लगा कि चार घंटे पंक्ति में खड़े रहने के बजाए अगर हम वो समय जंगल में विचरण करने में लगाएँ तो वो ज्यादा बेहतर रहेगा। बाद में हमारे सहकर्मी (जो वहाँ दो दिन पहले पहुँचे थे) से पता चला कि मोटरबोट से उन्हें एक हिरण के आलावा कोई वन्य प्राणी नहीं दिखा। वास्तव में पेरियार की झील के भ्रमण का पूरा आनंद लेना हो तो कभी सप्ताहांत और पीक सीजन में ना जाएँ। वन्य जीव सामान्यतः सुबह या शाम के वक़्त ही पानी पीने के लिए झील की तरफ आते हैं इसलिए कोशिश करें कि इसी समय की बोट मिले।

पेरियार झील एक मानव निर्मित झील है जो पेरियार नदी पर मुल्लापेरियार बाँध (Mullaperiyar Dam) की वजह से बनी है। पेरियार एक टाइगर रिजर्व है और इसका विस्तार करीब ७७७ वर्ग किमी तक फैला हुआ है। बाघों के आलावा हाथी, हिरण और कई तरह के पशु पक्षी भी इस जंगल के भीतरी भागों में निवास करते हैं। जो भाग डैम के बनने से डूब गया था उसके मृत पेड़ों के सूखे तनों को आप अब भी झील के बीचों बीच निकला देख सकते हैं। बगल के चित्र में देखें..

झील के चारों ओर जिधर भी चहलकदमी करें पेड़ों का जाल दिखाई देता रहता है। साढ़े दस बज रहे थे और हमने एक बजे के नेचर वॉक (Nature Walk) के टिकट ले लिए थे। थोड़ा जलपान कर हम चहलकदमी करते हुए आस पास की हरियाली का आनंद लेते रहे। पास ही कछुआनुमा आकार की एक दुकान दिखी जिसमें पेरियार के अभ्यारण्य और वन्य जीवन से जुड़ी कुछ पुस्तकें मिल रही थीं।

ठीक एक बजे हम अपने जंगल अभियान यानि नेचर वॉक (Nature Walk) के लिए तैयार हो गए। जंगल के अंदर का तीन चार किमी का ये सफ़र करीब तीन घंटों का रहा। कैसा रहा हमारा ये संक्षिप्त जंगल प्रवास ये जानते हैं यात्रा की अगली किश्त में....

इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

  1. यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
  2. यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
  3. यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
  4. यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
  5. यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
  6. यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
  7. यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
  8. यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
  9. यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
  10. यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
  11. यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
  12. यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
  13. यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !