पिछली पोस्ट में आपने मेरे साथ लंदन शहर की परिक्रमा की और मिले मैडम तुसाद के पुतलों से । चलिए आज आपको दिखाते हैं लंदन की एक और पहचान से और ले चलते हैं आपको लंदन की आँख यानि London Eye पर।
लंदन आई के प्रतीक के सामने बैठे स्कूली बच्चे |
लंदन के शहर की पहचान के तौर पर अब तक मैंने आपसे यहाँ के लाल रंग के टेलीफोन बूथ और डबल डेकर बसों का जिक्र किया। अब इनका ये लाल रंग दशकों तक रहे ना रहे पर लंदन की एक और पहचान है जो शायद सबसे दीर्घकालिक रहे और जिसे आप लंदन की सड़कों से गुजरते हुए हर समय देखेंगे़। ये पहचान हैं यहाँ की लंदन प्लेन ट्री। आपको बता दूँ कि शहरी लंदन के आधे से ज्यादा पेड़ लंदन प्लेन के ही हैं।
वैसे लंदन प्लेन के इतिहास को देखें तो पाएँगे कि ये पेड़ लंदन के लिए बहुत पुराना भी नहीं सत्रहवीं शताब्दी में ये पेड़ पहली बार इस शहर में देखा गया। विशेषज्ञ इस पेड़ को अमेरिकी सिकामोर और यूरोप के ओरियंटल प्लेन का संकर मानते हैं। पर इतनी बड़ी तादाद में लंदन में ये पेड़ आए कैसे? औद्योगिक क्रांति से लंदन में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए बड़ी संख्या में इन पेड़ों को लगाया गया। इन पेड़ों की खासियत है कि ये वातावरण की गंदगी को अपने में समा लेते है और फिर अपनी गिरती छाल से वो गंदगी पेड़ के बाहर भी चली जाती है।
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लंदन प्लेन London Plane tree |
इस पेड़ की पत्तियों को देखकर आप सहज ही मेपल की पत्तियों से धोखा खा जाएँ। पर दोनों में क्या अंतर है ये नियाग्रा आन दि लेक के सफ़र में मैंने आपको बताया था। लंदन प्लेन की पत्तियाँ मेपल की तरह पतझड़ में लाल ना होकर पीली भूरी ही रहती हैं। तीस मीटर तक की लंबाई हासिल करने वाला ये पेड़ हर तरह की मिट्टी में उग आता है और इसकी जड़ें ज्यादा फैलती भी नहीं।
लंदन प्लेन ट्री आज के लंदन की एक और पहचान Leaves of London Plane |
तकरीबन आधे घंटे के सफ़र के बाद हम लंदन आई के सामने थे। अब आपको दूर से ते ये अपने मेलों में लगने वाला एक साधारण सा झूला नज़र आएगा। दरअसल ये है भी वही 😄। पश्चिमी जगत में ये फेरीज़ व्हील के नाम से मशहूर है। जापान और कनाडा में इसके नमूने मैं पहले भी देख चुका था। हमारे झूलों और विदेशों की इन फेरीज़ में दो मुख्य अंतर हैं। हमारे यहाँ इस तरह के झूले रोमांच पैदा करने के लिए गति से घुमाए जाए जाते हैं जबकि विदेशों में इनका मूल उद्देश्य ऊँचाई से शहर के दृश्यों का अवलोकन करना होता है। इसलिए इन्हें बिल्कुल मंथर गति से घुमाया जाता है।
लंदन आई फेरीज़ व्हील |
अगर लंदन आई की बात करूँ तो ये एक सेकेंड में मात्र 26 सेमी का सफ़र तय करती है। 120 मीटर व्यास वाला इसका चक्र बनने के समय विश्व में सबसे ऊँचा था । अब भी इसे यूरोप की सबसे ऊँची व्हील का सम्मान प्राप्त है। वैसे अंग्रेजों को लंदन आई बनाने का ख्याल कहाँ से आया? अब करते भी क्या ? चिरकालिक प्रतिद्वन्दी फ्रांस मे उन्नीसवी शताब्दी के अंत में एफिल टॉवर बनाकर मैदान पहले ही मार लिया था । लंदन ने जवाब में एक फेरीज़ व्हील बनाई जिसे Giant Wheel का नाम दिया गया था। 94 मीटर ऊँचे इस घूमते पहिये की उम्र जब बीस साल की थी तो इसे हटा लिया गया। पर लंदनवासियों को कोई तो बिंदु चाहिए था जिसकी ऊँचाइयों से वो शहर के केंद्र को देख सकें। लिहाज़ा एक नई फेरीज़ व्हील बनाई गई सत्रह साल पहले जो आजकल कोका कोला लंदन आई के नाम से जानी जाती है।
लंदन आई के बैठने का कक्ष London Eye's Capsule |
हमारे झूलों की तरह इन फेरीज़ में बैठने का हिस्सा खुला नहीं रहता। आप शीशे
के खाँचे में बंद रहते हैं। लंदन आई में ये खाँचा वातानुकूलित है। इसमें
एक साथ दो दर्जन लोग बैठ और घूम भी सकते हैं।
हंगरफोर्ड ब्रिज Hungerford Bridge |
लंदन आई थेम्स के दक्षिणी किनारे पर बनी है। ऊपर उठते हुए इसके दक्षिण पूर्व में सबसे पहले हमें हंगरफोर्ड ब्रिज नज़र आया जो कि एक रेलवे ब्रिज है। स्टील ट्रस संरचना पर आधारित ये पुल दूर से दिखने में बेहतरीन लगता है। इसके और आगे वाटरलू सड़क ब्रिज है। थेम्स नदी यहाँ से टॉवर ब्रिज की तरफ़ घुमाव लेती है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है इस पुल की नींव वाटरलू के युद्ध की जीत की खुशी में पड़ी थी।
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वाटरलू पुल के पास घुमाव लेती थेम्स Waterloo Bridge |
लंदन आई से सबसे खूबसूरत नज़ारा जुबली गार्डन का मिलता है। रानी एलिजाबेथ
द्वितीय के शासन की सिलवर जुबली के उपलक्ष्य में इस पार्क को बनाया गया था।
दो हजार बारह में लंदन ओलंपिक के ठीक पहले इस पार्क को इसकी गोल्डन जुबली के अवसर पर
और खूबसूरत बनाने की क़वायद शुरु हुई और नतीजा आपके सामने है।
जुबली पार्क Jubilee Gardens |