क्योटो भ्रमण में अब तक आप मेरे साथ हीयान के शिंतो पूजा स्थल, शिंतो और हिंदू सोच में समानता, सान जू सान गेन के बौद्ध मंदिर में वायु और वरूण जैसे भगवानों को अलग रूप में देख चुके हैं। क्योटो के मंदिरों से जुड़ी इस आख़िरी कड़ी में देखिए क्योटो के प्राचीनतम और बेहद पवित्र समझे जाने वाले कियोमिजू मंदिर की कुछ झलकियाँ। जापानी भाषा में कियोमिजू (Kiyomizu dera)का अर्थ होता है साफ पानी का मंदिर (Clear Water Temple)। ये मंदिर माउंट हिगाशियामा ( Mount Higashiyama ) के आँचल में अपने आप को पसारे हुए है और इसी पहाड़ी से होता हुआ झरना भी मंदिर परिसर से हो के बहता है जिसकी वज़ह से मंदिर का ये नाम पड़ा। वैसे इस मंदिर का इतिहास क्योटो शहर से भी पुराना है। जापानी सम्राट कम्मू (Kammu) द्वारा नारा से क्योटो को राजधानी बनाए जाने के छः वर्ष पूर्व ही सन 788 में इस मंदिर की नींव रखी गई। वैसे इस मंदिर के बनने की कहानी बहुत कुछ हमारे किलों और मंदिरों जैसी ही है।
इस मंदिर के बनने की कहानी सुनते हुए मुझे जोधपुर के मेहरानगढ़ की याद हो आई। किवदंती है कि नारा के एक पुजारी ने सपना देखा कि उसे किसी पहाड़ी पर साफ पानी का झरना मिलेगा और वहीं उसे एक मंदिर का निर्माण करना होगा। जब वो पुजारी इन पहाड़ियों पर पहुँचा तो उसे झरने के आलावा वहाँ एक साधू भी नज़र आया जो उसे देखते ही बोला कि मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा हूँ। अब जबकि तुम यहाँ मंदिर की स्थापना के लिए आ गए हो मैं दूसरी जगह जाता हूँ।
साधू ने पुजारी को लकड़ी का एक टुकड़ा दिया और उस पर बोधिसत्व का रूप गढ़ने को कहा। बाद में वो पुजारी जब पहाड़ी के शिखर पर पहुंचा तो उसे संत की पादुकाएँ मिलीं। वो समझ गया कि संत के रूप में उसकी मुलाकात बोधिसत्व के ही एक रूप से हुई है। पुजारी ने वहाँ प्रतिमा तो स्थापित कर दी पर कालांतर में तत्कालीन सम्राट और उनके सेनापतियों द्वारा दान में दिए अपने महलों की लकड़ी की दीवारों से मंदिर का परिसर बना। जैसा कि जापान के अधिकांश मंदिरों के साथ होता आया है सन 1629 में यहाँ आग लगी जिसकी वज़ह से इसका पुनर्निर्माण करना पड़ा।
साधू ने पुजारी को लकड़ी का एक टुकड़ा दिया और उस पर बोधिसत्व का रूप गढ़ने को कहा। बाद में वो पुजारी जब पहाड़ी के शिखर पर पहुंचा तो उसे संत की पादुकाएँ मिलीं। वो समझ गया कि संत के रूप में उसकी मुलाकात बोधिसत्व के ही एक रूप से हुई है। पुजारी ने वहाँ प्रतिमा तो स्थापित कर दी पर कालांतर में तत्कालीन सम्राट और उनके सेनापतियों द्वारा दान में दिए अपने महलों की लकड़ी की दीवारों से मंदिर का परिसर बना। जैसा कि जापान के अधिकांश मंदिरों के साथ होता आया है सन 1629 में यहाँ आग लगी जिसकी वज़ह से इसका पुनर्निर्माण करना पड़ा।
क्योटो के इस मंदिर परिसर के बाहर जब हमारी बस ने प्रवेश किया तो दिन के एक बज रहे थे। धूप थी पर बारिश के मौसम वाली उमस नदारद थी। मंदिर परिसर के बाहर उतरने से पता चल गया कि हम जिस मंदिर में आए हैं वो स्थानीय और बाहरी लोगों में कितना लोकप्रिय है। तोक्यो के सेंसो जी के बाद पहली बार इतनी भारी भीड़ देखने को मिली थी। मंदिर तक पहुँचने के लिए आधा पौना किमी हल्की चढ़ाई चढ़नी होती है। संकरी सी वो सड़क Ninnen Zaka और Sannen Zaka कही जाती है। क्योटो से जुड़ी पिछली पोस्ट में आपको बताया था कि जापान में एक, दो, तीन..को इचि, नी और सान कहा जाता है। यहाँ ऐसी धारणा है कि जो Ninnen Zaka पर चलते हुए लड़खड़ाया उसके दो साल बुरे गुजरेंगे वहीं Sannen Zaka पर ये दुर्भाग्य तीन साल तक चलेगा। बहरहाल हमें तो उस सड़क पर चलते हुए ये पता था नहीं सो अपने समूह के साथ तेज कदमों से भीड़ के बीच से अपने गाइड के साथ रास्ता बनाते हुए चल रहे थे।
सड़क के दोनों ओर भाँति भाँति के सोवेनियर और स्थानीय व्यंजन परोसते रेस्त्राँ थे। पर समय कम होने के कारण हम अपना ज्यादा वक़्त वहाँ नहीं दे पाए। पाँच मिनट तक तेजी से चलते हुए हम मंदिर के मुख्य द्वार Nio Mon (Gate of the Deva Kings) पहुँचे।
मंदिर के द्वार के दोनों तरफ़ एक शेर नुमा जानवर की प्रतिमाएँ थी। चित्र
में दाँयी ओर जो सिंह दिख रहा है उसका मुँह खुला है वहीं दूसरी ओर बंद
मुँह वाला शेर विराजमान है। जानते हैं क्यूँ ? बौद्ध ग्रंथों के हिसाब से ये
शेर संस्कृत के 'अ' और 'ओम' का उच्चारण कर रहे हैं इसीलिए एक का मुँह खुला और दूसरे का बंद है।
मंदिर के मुख्य द्वार के दाहिने एक तीन मंजिला पैगोडा है। फिर दो तीन इमारतों को पार करने के बाद मंदिर का मुख्य कक्ष आता है जहाँ बोधिसत्व की प्रतिमा स्थापित है। मुख्य कक्ष से सटा हुआ एक बड़ा सा बरामदा है जिस पर खड़े हो कर आप आस पास के नज़ारों का आनंद उठा सकते हैं। मंदिर परिसर से सटे ढेर सारे चेरी ब्लॉसम और मेपल के पेड़ हैं जो बदलते मौसम के साथ मंदिर को कभी गुलाबी तो कभी लाल नारंगी रंगों से ढक देते हैं।
मंदिर के सबसे मुख्य आकर्षण यहाँ के झरने तक पहुँचने के लिए हरे भरे जंगलों के बीच से जाना होता है। रास्ते में मंदिर परिसर की कुछ इमारते भी हैं।
पहाड़ियों की दूसरी तरफ़ तेजी से बढ़ता और बदलता क्योटो शहर दिखाई देता है। स्टेशन के पास बना क्योटो टॉवर (Kyoto Tower) नए शहर की पहचान है। क्योटो शहर के बदलते स्वरूप को देख जापानियों में चिंता है इसीलिए सरकार ने अब निश्चय किया है कि मंदिरों से लगी बची हुई इमारतों के स्वरूप से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी।
मंदिर के मुख्य कक्ष से आगे की ढलान पर चलते हुए हम सात आठ मिनट में पंखों की सी आवाज़ करने वाले झरने ( Sound of feathers Waterfall) जिसे स्थानीय भाषा में Otawa No Taki कहा जाता है तक पहुँच जाते हैं। पर्यटकों की भारी भीड़ वहाँ पहले से ही मौज़ूद थी और पवित्र जल से अपनी प्यास बुझाने के लिए लोग लंबी कतार में थे। ऐसा कहा जाता है झरने से निकल कर बहती तीन धाराओं का जल पीने से अलग अलग परिणाम होते हैं। एक से धन , दूसरे से स्वास्थ और तीसरे से जीवन में प्रेम बढ़ता है। तुरंत हमारे समूह में से एक प्रश्न उभरता है कि अगर तीनों को मिला कर पिया जाए तो ? गाइड इस भारतीय सोच पर मुस्कुराते हुए कहता है तब कुछ नहीं मिलेगा।
कतार में लगने का मेरे पास वक़्त नहीं था और ना ही पंक्ति तोड़ने का कोई इरादा। गाइड की डेडलाइन से जो थोड़ा मोड़ा समय बचा वो मैंने वहाँ ये देखने में बिताया कि आख़िर लोग कौन सी जलधारा का चुनाव कर रहे हैं। वैसे क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि ज्यादातर जनता कौन सी धारा को प्रश्रय दे रही होगी ?
वापस मुख्य गेट तक पहुँचने और थोड़ा समय जापानी गुड़िया की दुकानों में बिताने के बाद अपनी बस पर पहुँचने वाले कुछ अंतिम यात्रियों में से हम एक थे। अगले दिन हमें क्योटो से अपने अगले गंतव्य कोबे (Kobe) कूच कर जाना था। पर क्या पता था कि आने वाली रात हम जापान के अपने प्रवास के पहले धार्मिक महोत्सव का हिस्सा बन जाएँगे।
यादें क्योटो की
- हीयान मंदिर : क्या समानता है शिंतो पूजा पद्धति व हिंदुत्व में ?
- सान जू सान गेनदो : जहाँ हिंदू देवता रक्षा करते हैं बोधिसत्व की
- साफ पानी का मंदिर : कियोमिजू
- क्योटो के दस अविस्मरणीय क्षण
क्योटो से विदा लेने से पहले इस यात्रा के दस सबसे यादगार लमहों को याद करेंगे अगली पोस्ट में। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
बहुत सुन्दर मंदिर है। दर्शन कराने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteअपने विचार यहाँ देने के लिए आभार !
Deletethats amazing , I never heard about this temple before , Its really beautiful , beautiful capture
ReplyDeleteThx.. but kindly do not post any external links with your comment which is not related to the post. They will be promptly deleted.
Deleteजापान ही उतना सुन्दर है और उसके मंदिर सच में अद्भुत हैं , आपकी यात्रा वर्णन यूनिक होते हैं मनीष जी ! घूमते रहिये , घुमाते रहिये
ReplyDeleteधन्यवाद अपनी पसंदगी ज़ाहिर करने के लिए !
DeleteNice blog,is very informative for .Keep posting blog with us.
ReplyDeleteThx but no outside links please.
Deleteबहुत सुन्दर और अद्भुत है मन्दिर एवं झरने से बहती तीनो जलधारा, बहुत बहुत धन्यवाद .
ReplyDeleteमुझे इस मंदिर का सबसे रोचक पक्ष वही लगा था।
DeleteVery good
DeleteVery nice
ReplyDeleteशुक्रिया !
DeleteNic......
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