खैर आप भी सोच रहे होंगे कि उड़ीसा घुमाते घुमाते आखिर आपको पिट्टो के बारे में क्यूँ बताया जा रहा है। तो जनाब नीचे का चित्र देखिए। क्या आपको ये पिट्टो की याद नहीं दिलाता ?
ये चित्र भुवनेश्वर स्थित खंडगिरि के जैन मंदिर (Jain Temple at Khandgiri) के आहाते का है। अब इतना तो पक्का है कि मुसाफ़िर इतनी ऊपर पहाड़ी पर बनें मंदिर पर आ कर पिट्टो तो नहीं खेलते होंगे ? :)
तो बताइए क्या सोचकर पर्यटक और श्रृद्धालु पत्थर और ईंट के टुकड़े को इस तरह सजाते होंगे?
सही जवाब का खुलासा अगली पोस्ट किया जाएगा। हो सकता है उससे पहले ही आप इस गुत्थी को सुलझा लें ....
शायद कोई मन्नत के लिए .? या किसी विशेष प्रार्थना से जुडा हुआ कुछ है
ReplyDeleteये पिट्टो यहाँ पुणे के भीमाशंकर मन्दिर में भी दिखा था मुझे ! मैंने भी फोटो खीच रखी है :-)
ReplyDeleteऔर जहाँ तक मुझे पता है ये मन्नत ही है... लोग ऐसा मानते हैं की ऐसा करने से अगले जन्म (या शायद इसी जन्म) गृह सुख की प्राप्ति होगी, क्यों सही है या नहीं?
हम लोग इसे "पिट्टुल" के नाम से जानते हैं. लेकिन दुर्भाग्य कि हमने इन्हे नहीं देखा. खन्ड गिरी के इस मंदिर में नहीं गये. वैसे इस तरह पत्थरों को जमाने की प्रथा अन्यत्र भी देखी है पर उसके पीछे छुपे कारणों की पड़ताल नहीं की. संभवतः रंजना जी का विचार सही है.
ReplyDeleteअब आप ही बता दीजिए मनीष जी कि ये सब क्यों होता है, अपन जो तुक्का मारने की सोच रहे थे वह रंजना जी ने लिख ही दिए हैं! :)
ReplyDeleteइन्सान अपनी धारणाओँ के लिये क्या नहीँ करता -
ReplyDelete- लावण्या
भाई हम भारतीया लोग मन्नत के सिवा ओर क्या करे गे मन्दिरो मै ??? ओरो की तरह से मेरा भी यही जबाब है मन्नत
ReplyDeleteमै तो जवाब ढूँढने आया था !
ReplyDeleteachhaa vivran. badhaaii
ReplyDelete