वैसे क्या ये प्रश्न आपके दिमाग में नहीं घूम रहा कि झेलम, चेनाब, रावी, सतलज और व्यास के तटों को छोड़कर, पंजाब से इतनी दूर इस गंगा भूमि में गुरु गोविंद सिंह का जन्म कैसे हुआ? इस प्रश्न का जवाब देने के लिए इतिहास के कुछ पुराने पन्नों को उलटना होगा।
इतिहासकार मानते हैं कि 1666 ई में सिखों के नवें धर्मगुरु गुरु तेग बहादुर धर्म के प्रचार प्रसार के लिए पूर्वी भारत की ओर निकले. 1666 ई के आरंभ में वो पटना पहुँचे और अपने अनुयायी जैतमल (Jaitmal )के यहाँ ठहरे। पास के इलाके में ही सलिस राय जौहरी की संगत (Salis Rai Johri''s Sangat) थी जिसके कर्ताधर्ता घनश्याम, गुरु का आशीर्वाद लेने के लिए उन्हें अपने परिवार सहित इस संगत में ले आए। बाद में गुरु तेग बहादुर अपनी पत्नी माता गुजरी को यहाँ छोड़ बंगाल और आसाम की ओर निकल पड़े। 23 दिसंबर 1666 को इसी सलिस राय चौधरी संगत में बालक गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ।
ये गुरुद्वारा एक विशाल हिस्से मे् फैला हुआ है। मुख्य गुरुद्वारे के चारों ओर दूर से आए हुए भक्तों के रहने की व्यवस्था है। गुरुद्वारे के ठीक सामने और पिछवाड़े में खुला हिस्सा है जहाँ भक्तगण बैठ सकते हैं। गुरुद्वारे के मुख्य द्वार को पार कर हम सीधे चल पड़े। नीचे चित्र में दिख रहा है प्रागण के अंदर से मुख्य द्वार की तरफ का नज़ारा...
तेज धूप में फर्श बुरी तरह जल रही थी। चप्पल उतारते ही हम छायादार चादर के नीचे बने रास्ते की ओर भागे। संगमरमर की सीढ़ियों पर कदम रखते ही तलवों के नीचे की गर्मी गायब हो गई. बगल से स्वादिष्ट हलवे का प्रसाद ले कर हम जन्मस्थान की ओर बढ़े।
गुरुद्वारे में घुसने के पहले ही इस पीले रंग के इनक्लोसर में कुछ पात्र रखे थे और गुरुमुखी में कुछ लिखा था। इसका क्या मतलब था ये तो कोई इस लिपि को जानने वाला ही बता सकेगा।
मुख्य द्वार से दिखती हुई गुरुद्वारे की पूरी इमारत। फिलाहल इसकी गुंबद में कुछ काम चल रहा था।
और ये हैं हमारे सुपुत्र जो सामने के खुले प्रागण में कबूतरों के साथ चित्र खिंचाने के लिए जलते तलवों की परवाह किए बिना दौड़े चले आए।
तो जब भी पटना आएँ तो इस पवित्र स्थल की सैर अवश्य करें और अगर खास इसी को देखने आ रहे हों तो पटना स्टेशन पर ना उतर कर अगले स्टेशन पटना साहेब पर उतरें। वहाँ से ये मात्र एक किमी की दूरी पर है।
वाह गुरु, वाह गुरु। गुरुजी का खालसा, गुरुजी की फ़तह!
ReplyDeleteगुरुद्वारों से हमें पवित्र-स्थलों की सफ़ाई और स्वच्छता सीखने चाहिए।
Jo bole so nihaal Satt siri Akaal ! Sacrifice of Sikh Gurus is unparalleled in entire world history ! U have done a marvelous job Manish !
ReplyDeleteयह सफ़र तो बहुत बढ़िया रहा, अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर!
ReplyDeletewahe-guruji da khalsa
ReplyDeletewahe-guruji di fatah
बहुत बढ़िया. एक बात रह गयी. वहां लंगर है की नहीं. अरे भैय्या वही मुफ्त का स्वादिष्ट भोजन
ReplyDeleteye safar bhi achha raha apke sath...
ReplyDeleteबढ़िया सैर कराइ आपने.
ReplyDeleteइतनी बार गयी पटना पर,आज तक यहाँ जाना न हो पाया..आभार आपका जो इतनी महत जानकारियां दी.एक तरह से आपने सैर ही करा दी.लेकिन अब कभी गयी तो अवश्य जाउंगी..
ReplyDeletesee the arms of Guru Sahib in my post today .
ReplyDeleteयह गुरुद्वारा कभी जा न पाया था, आज आपके साथ घूम लिया. कबूतरों के साथ खुद भी चहक रहे है आपके सुपुत्र.
ReplyDeleteWhoa! I would love to be here someday.
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