नीचे जो चित्र आप देख रहे हैं वो चित्र है हमारे एक अराध्य देव का। इसे चट्टानों को काट कर बनाया गया है। जंगलों के बीच इस स्थान तक पहुँचने के लिए सूर्य देव की कृपा होनी अतिआवश्यक है। यानि अगर आप सुबह दस बजे के पहले यहाँ पहुँचे तो घने अंधकार के बीच इन शिल्पों को देख पाना काफी कठिन है।
(इस चित्र के छायाकार हैं इजरायल के युवल नामन ।)
चित्र देख लिया आपने तो अब ये बताइए कि ये शिल्प हमारे किस अराध्य देव का है और जहाँ ये शिल्प अवस्थित है वो जगह कौन सी है?
सही उत्तर था : ये भगवान शिव हैं और इस जगह का नाम उनाकोटि (Unakoti) है। वैसे उनाकोटि का शाब्दिक अर्थ है एक करोड़ से एक कम। अब आएँ संकेतों की तरफ जो इस प्रश्न के उत्तर तक पहुँचने के लिए दिए गए थे...
संकेत 1 : कुछ इतिहासकार लगभग १० मीटर ऊँचे इस शिल्प को सातवीं से नवीं शताब्दी के आस पास का बताते हैं जबकि कुछ का मत है कि इस इलाके में पाए जाने वाले कुछ शिल्प बारहवीं शताब्दी के बाद बनें।
उनाकोटी (Unakoti) में दो तरह की मूर्तियाँ हैं। एक जो चट्टानों को काटकर उकेरी गई हैं और दूसरे पत्थर की मूर्तियाँ। यहाँ चट्टानों पर उकेरी गई छवियों में सबसे सुंदर शिव की ये छवि है जिसे उनाकोटि काल भैरव (Unakoti Kaal Bhairav) के नाम से जाना चाता है। करीब ३० फीट ऊँचे इस शिल्प के ऊपर १० फीट का एक मुकुट है जो चित्र में दिखाई नहीं दे रहा। उन दोनों की बगल में शेर पर सवार देवी दुर्गा और दूसरी और दूसरी तरफ संभवतः देवी गंगा की छवियाँ हैं। शिल्प के निचले सिरे पर नंदी बैल का जमीन में आधा धँसा हुआ शिल्प भी है। इसके आलावा यहाँ गणेश, हनुमान और भगवान सूर्य के भी खूबसूरत शिल्प हैं। इतिहासकार मानते हैं कि भिन्न भिन्न मूर्तियों से भरा पूरा ये इलाका करीब ९ से १२ वीं शताब्दी (9th-12th Century) के बीच पाल राजाओं के शासनकाल में बना। यहाँ के शिल्प में शैव कला के आलावा तंत्रिक, शक्ति और हठ योगियों की कला से भी प्रभावित माना गया है।
संकेत 2 : जिस पहाड़ी पर ये शिल्प बनाया गया है वो भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से बेहद करीब है। (चलिए आपकी मुश्किल थोड़ी कम कर देते हैं । आपको पूर्वी भारत का रुख करना होगा़। यानि नेपाल, भूटान, चीन, बर्मा और बाँगला देश में से किसी एक के करीब।)
उनाकोटी बाँगलादेश की सीमा से महज कुछ किमी दूरी पर है। उनाकोटी पहुँचने के लिए आपको कोलकाता से त्रिपुरा की राजधानी अगरत्तला (Agartala) जाना होगा। वहाँ से उत्तरी त्रिपुरा (North Tripura) का रुख करना होगा। अगरत्तला से कैलाश ह्वार (Kailsahwar) मात्र १८० किमी दूर है और बस या कार से यहाँ पहुँचा जा सकता है। उनाकोटी का अंतिम आठ किमी का रास्ता घने जंगलों के बीच से होकर जाता है।

संकेत 3: हमारी लोक कथाओं, मुहावरों में कुछ नाम बेहद मशहूर रहे हैं । लोक कथाओं में अक्सर इन नामों के साथ पेशा भी जोड़ दिया जाता था। जैसे कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली ! इसी तर्ज पर आज बिल्लू बॉर्बर बनाया गया तो वो आज की स्थिति के हिसाब से सही नहीं समझा गया। इन सब बातों का जिक्र मैं इस लिए कर रहा हूँ कि किवदंती के हिसाब से इस शिल्प को जिस कारीगर ने बनाया था वो नाम भी कुछ इसी तरह का है और हिंदी के 'क 'अक्षर से शुरु होता है। :)
इन शिल्पों को किस कलाकार ने बनाया और क्यों बनाया ये अभी तक इतिहासकारों के लिए गूढ़ प्रश्न बना हुआ है। पर इस स्थान के बारे में अनेकों किवदंतियाँ हैं। यहाँ की जनजातियों में प्रचलित कथा को माने तो इन शिल्पों की रचना कल्लू कहार (Kallu Kahaar) ने की थी जो शिव और पार्वती का परम भक्त था और उनके साथ ही कैलाश पर्वत जाना चाहता था। देवी पार्वती कल्लू की भक्ति से प्रसन्न थीं और उसे साथ ले जाने के लिए उन्होंने शिव जी से अनुरोध किया। शिव जी ने कल्लू से पीछा छुड़ाने की गरज से शर्त रखी कि तुम्हें मेरे साथ चलने के लिए एक रात में एक करोड़ प्रतिमाएँ बनानी होंगी। कहते हैं कल्लू ने इस कार्य में पूरी जान लगा दी पर एक करोड़ से एक मूर्ति कम बना पाया और शिव भगवान उसे छोड़कर चलते बने। इसीलिए इस जगह का नाम उनाकोटि (एक करोड़ से एक कम) पड़ा।
संकेत 4 : चलिए आज एक बात और बताते हैं इस जगह के बारे में। अक्सर हम अपने बच्चों को सुबह उठने की सलाह देते है। अगर प्राचीन कथाओं की मानें तो ये जगह अपने अस्तित्व में ही नहीं आई होती अगर हमारे देवी देवता इस सलाह को मान उस दिन सुबह उठ गए होते :)
उनाकोटी के बनने के बारे में सबसे प्रचलित कथा और भी मज़ेदार है। शिव जी के साथ एक करोड़ देवी देवताओं का काफ़िला काशी की तरफ़ जा रहा था। यहाँ से गुजरते वक़्त रात हो आई तो भगवान शिव ने सारे अन्य देवी देवताओं को यहीं रात्रि विश्राम करने को कहा और साथ में एक सख्त हिदायत भी दी कि सुबह पौ फटने के पहले ही हम सब यह जगह छोड़ देंगे। सुबह जब भगवन तैयार हुए तो देखा कि सारे देवता गण सोए पड़े हैं। अब भगवन का मिज़ाज़ तो सर्वविदित है ..हो गए वो आगबबूला और सारे देवों को पत्थर का बना कर काशी की ओर बढ़ चले और फलस्वरूप यहाँ एक करोड़ से एक कम मूर्तियाँ रह गईं।
किसने दिया सही जवाब ?
मेरे ख्याल से इन संकेतों की सहायता से उत्तर तक शीघ्र ही पहुँच जाएँगे तो देर किस बात की जल्दी लिखिए अपना जवाब। सही जवाब, इस खूबसूरत जगह के बारे में कुछ और रोचक जानकारियों के साथ 6th अगस्त की शाम इसी पोस्ट में बताए जाएँगे।
मेरा ख्याल गलत निकला । मुझे लगा था कि ये विषय सुब्रमनियन जी की रुचि का है इसलिए वो तो जरूर बता पाएँगे। पर ये पहेली आप सभी के लिए कठिन साबित हुई। यहाँ तक की अब तक के सबसे ज्यादा सही उत्तर देने वाले अभिषेक ओझा ने भी हथियार डाल दिये। पर एकमात्र सही हल बताया समीर लाल जी ने हालाँकि उन्होंने जगह के साथ भगवन का नाम नहीं बताया। शायद पूरा प्रश्न उन्होंने नहीं देखा। तो समीर जी को हार्दिक बधाई और बाकी लोगों को अनुमान लगाने के लिए धन्यवाद।
तो चलते चलते उनाकोटि की सैर नहीं करना चाहेंगे आप? लीजिए आपकी ये ख्वाहिश भी पूरी किए देते हैं NDTV पर प्रसारित इस वीडिओ के ज़रिए। आशा है इस जगह को जानना आपके लिए आनंददायक रहा होगा।
6th अगस्त को ही जान लेंगें जी
ReplyDeleteप्रणाम
As usual I am completely clueless but would come back to see your answer!
ReplyDeleteachcha darshniya chitr hai ..par mere liye muskil hai ki yeah sthan kahan hai...
ReplyDeletemai uttar ka intzaar karunga..
dhanywaad..
Unakoti
ReplyDelete-170km away from Agartala.
Unakoti, Tripura.
ReplyDeleteअनदेखा है और बहुत ही सुन्दर है ।
ReplyDeleteअन्तर्राष्ट्रीय सीमा किस पड़ोस वाली होगी इसका अनुमान पहले लगाना पड़ेगा।
चलिए आपकी मुश्किल थोड़ी कम कर देते हैं अफ़लू भाई। आपको पूर्वी भारत का रुख करना होगा़। यानि नेपाल, भूटान, चीन, बर्मा और बाँगला देश में से किसी एक के करीब। मुश्किलें बढ़ तो नहीं गईं :)
ReplyDeleteye to ji mere aaradhya dev hain. aap nepal, bhutan kee kya baat kar rahe ho, ye to in sabhi deshon me lokpriy hain.
ReplyDeleteasal me mujhe bhi nahin pata ki inka naam kya hai?
ReplyDeleteइन देशों की बात इसलिए की नीरज जी कि इन्हीं देशों मे से किसी एक की सीमा के पास ये इस रूप में विराजमान हैं। और आप इनके भक्त हैं इसमें तो कोई शक नहीं :)
ReplyDeleteQuite interesting to know the stories .:)Thanks.
ReplyDeleteThey resemble the South American MAYAN sclupter of Machchu - picchu
ReplyDeleteHow striking !!
May be the Assamese Tripura natves
traveled to South Americas & established the INCA civilization ?
Who knows --
INDIA truly is the MOTHER of world civilization .
Nice find & post Manish bhai
warm rgds ,
- LAVANYA
इस बार नेपाल से आगे हम सोच ही नहीं पाए. नॉर्थ ईस्ट तक लग तो रहा था लेकिन त्रिपुरा थोडा ज्यादा दूर हो गया :)
ReplyDeleteCould have never ever guessed it!
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