इस रिसार्ट के ठीक सामने रोड पर खड़े होकर आप आनाईरंगल झील (Anayirangal Lake) का नज़ारा देख सकते हैं (बगल के चित्र में देखें)। हमारी कॉटेज के चारों ओर पहाड़ियों का खूबसूरत जाल था और उस पर बिखरे थे टाटा के चाय बागान। थोड़ी देर में हम आनाईरंगल झील के रास्ते में थे। चाय बागानों के बीच से जाती राष्ट्रीय राजमार्ग ४९ (NH 49) की ये सड़क तमिलनाडु के मदुरई शहर तक चली जाती है। इलायची के पेड़ों के झुंड और टाटा के चाय कारखाने को पार कर शीघ्र ही हम चेक डैम तक पहुँच चुके थे। संयोगवश डैम पर और कोई पर्यटक दल मौजूद नहीं था। सांझ आ चुकी थी और झील का पानी खुले गेट से तेज प्रवाह के साथ गिर रहा था। शांत वातावरण में हमने कुछ पल वहाँ प्रकृति के साथ बाँटे और फिर वापस अपने रिसार्ट की ओर मुड़ गए।
वापस रास्ते में सूर्य अपनी रक्तिम लालिमा लिये पहाड़ियों की ओट में जाता दिखाई दिया। हमारे दुमंजिला कॉटेज की ऊपरी बॉलकोनी पश्चिम दिशा की ओर खुलती थी। इसलिए हम सभी जल्द से जल्द वहाँ पहुँच कर इस मनोरम दृश्य को कैमरे में कै़द कर लेना चाहते थे। भागते दौड़ते जब तक वहाँ पहुँचे तो थोड़ी देर हो चुकी थी।
पहाड़ियों की श्रृंखला अँधेरे में गुम हो चुकी थी। बचा था तो, उनकी ओट से आता लाल नारंगी प्रकाश। हम सारे टकटकी लगाए तब तक प्रकृति की लीला को निहारते रहे जब तक अंधकार ने रहे सहे प्रकाश पर अपनी विजय पताका ना फहरा ली।
शाम से रिसार्ट में चहल पहल बढ़ने लगी थी। तीन चार बसों में भर कर किशोरियों का दल वहाँ क्रिसमस ईव मनाने आ पहुँचा था।
रात्रि के आठ बजे हम रिसार्ट का चक्कर मारने निकले। चाँद अपने पूरे शबाब के साथ पूर्ण वृताकार रूप में आसमान की शोभा बढ़ा रहा था। थोड़ी देर में ही हम रिसार्ट की सबसे ऊँची इमारत पर जा पहुँचे जिसमें अभी निर्माण कार्य चल रहा था । ईट पत्थरों को कूदते फाँदते जब हम उस कक्ष की बालकोनी तक पहुँचे। सामने जो दृश्य था उसे मैं शायद अपने जीवन में कभी भूल नहीं पाऊँगा।
हमारे सामने पहाड़ियों का अर्धवृताकार जाल था जिसमें लगभग समान ऊँचाई वाले पाँच छः शिखर थोड़ी थोड़ी दूर पर अपना साम्राज्य बटोरे खड़े थे। चंद्रमा ने अपना दूधिया प्रकाश, इन पहाड़ों और उनकी घाटियों पर बड़ी उदारता से फैला रखा था। मूनलिट नाईट के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था पर उसी दिन महसूस कर पाए कि चाँद ना केवल खुद बेहद खूबसूरत है वरन वो अपने प्रकाश से धरती की छटा को भी निराली कर देता है। केरल की दस दिनों की यात्रा का मेरे लिए ये सबसे खूबसूरत लमहा था जिसे हम अपने कैमरे में कम प्रकाश और त्रिपाद (tripod) ना रहने की वज़ह से क़ैद नहीं कर सके। दिल कर रहा था कि रात यहीं बिता दें पर इमारत में काम कर रहे मजदूर रात्रि के भोजन के लिए निकल रहे थे सो हमें वहाँ से मन मसोस कर आना पड़ा।
नीचे संगीत का शोर बढ़ता सा मालूम हो रहा था। वहाँ पहुँचे तो पाया कि होटल की तरफ से बॉन फॉयर (Bon Fire) का इंतजाम था। सारे बच्चे अपने शिक्षकों की देखरेख में आग के चारों ओर हाथ में हाथ थामे घेरा लगा कर खड़े थे। कुछ बच्चों ने सान्ताक्लॉज की टोपियाँ पहन रखी थीं। थोड़ी देर में गीत संगीत के साथ नृत्य शुरु हुआ। पहले बच्चों ने जम कर डॉन्स किया फिर उनके शिक्षकों ने। बच्चों को यूँ सबके साथ मिल जुल कर मस्ती करते देखना अच्छा लगा।
वापस अपने कमरे में लौटे तो ये निर्णय लिया गया कि सुबह साढ़े पाँच बजे ही हम सब सूर्योदय देखते हुए टहलने निकल जाएँगे। साढ़े पाँच बजे उठ तो गए पर बाहर अभी भी घुप्प अंधकार था। छः बज गए फिर भी हालत वही रही। अब हमें लगा कि और रुकने से कोई लाभ नहीं। चल कर बाहर देखते हैं कि या इलाही ये माज़रा क्या है। सुबह सवा छः बजे भी चाँद अपनी पूरी चमक के साथ नीले आकाश का सिरमौर बना हुआ था।टहलते हुए हम रिसार्ट के पूर्वी किनारे पर जा पहुँचे। वहाँ हमारी तरह ही, सूर्य किरणों के स्वागत के लिए लोग प्रतीक्षारत मिले। थोड़ी ही देर में आकाश ने गिरगिट की तरह अपने रंग बदलने शुरु किए। पहले नीले और फिर लाल नारंगी की मिश्रित आभा से पूरा आसमान बदल गया। नीला नारंगी आसमान और उसके नीचे झील के उपर तैरते बादल ! बड़ा कमाल का दृश्य था वो भी। सूर्योदय सामने की ऊँची पहाड़ियों की वज़ह से जब दिखाई नहीं पड़ा तो हम चाय बागानों में टहलने निकल पड़े।
चट्टानों को छोड़ दें तो पहाड़ की कोई ढलान शायद ही बची थी जहाँ चाय के पौधों की कालीननुमा पट्टियाँ ना दिखती हों। हम सड़क पर थोड़ी दूर चलकर शीघ्र ही एक चाय बागान में उतर गए। आखिर सुबह सुबह ऍसी खूबसूरत हरियाली देखने को कहाँ मिलती है। सो चाय के पौधों की कतारों के बीच से उतरते-उतरते हम कब काफी नीचे तक पहुँच गए ये पता ही नहीं चला। वहाँ से ऊपर का दृश्य चित्र में देखिए। चोटी पर जो तिमंजिला निर्माणाधीन इमारत दिख रही है, रात्रि में हम वहीं थे। चाय के बागानों में बीच-बीच में जो पेड़ दिख रहा है वो सिल्वर ओक का है। आप जरा सोचिए ये क्यूँ लगाया जाता है ?
ग्यारह बजे तक हमें चाय बागानों को छोड़ कर खास मुन्नार शहर रवाना होना था। चांसलर रिसार्ट की पिछली रात तो बेहद सुकून देने वाली थी पर अगली रात ऍसी निकली कि अपना सोना भी मुहाल हो गया। क्यूँ हुआ ऐसा ये जानते हैं इस यात्रा वृत्तांत की अगली किश्त में....
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
- यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
- यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
- यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
- यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
- यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
- यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
- यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
- यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
- यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
- यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
- यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
- यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
- यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !
खूबसूरत वृत्तांत… सचमुच भाग्यशाली हैं आप्…
ReplyDeletemaza aa gaya...
ReplyDeleteखूबसूरत तस्वीरें हैं
ReplyDeleteधन्यवाद
kiya khubsurat sabdo me aapne keral kai sundarta ka bakhan kiya hai, Man jaye sir aapke sabdo me vo jadu hai jo har pathar chij ko mom bana sakta hai.RAM
ReplyDeleteThe second sunset is for sure beautiful.
ReplyDeletevery nice post
ReplyDeleteआपके चित्रों और वर्णन ने मन मोह लिया... भाग्यशाली हैं जो ऐसे अद्भुत नज़ारे देखने को मिले...बहुत दिलचस्प श्रृंखला...
ReplyDeleteनीरज
Mridula The photo you are refering is taken at the time of sunrise and not sunset.
ReplyDeleteमुन्नार गये ही हैं तो लगे हाथ वालपरई भी घूम आयें.. मुन्नार से अधिक सुकून मिलेगा.. वहीं पास में ही है.. मुन्नार से 4-5 घंटे कि दूरी पर..
ReplyDeleteमुन्नार अब पूरी तरह से व्यवसायिक केद्र बन गया है, जबकी वालपरई अभी तक लोगों से अनछुवा और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है..
वैसे चित्र अच्छे आये हैं.. :)
PD मैं तो वहाँ दो साल पहले गया था। मुन्नार सिटी के मुख्य केंद्र का भले ही व्यवसायीकरण हो गया हो पर मुन्नार से थेक्कड़ी जाने वाले मार्ग में पहाड़ों की ढलानों पर मनमोहक चायबागान बिछे हुए हैं और वहाँ का सौंदर्य देखते ही बनता है। इस सड़क पर दूर दूर तक आप हरियाली के आलावा कुछ और नहीं पाएँगे। हमलोग ने अपने पहले दो दिन मुन्नार में नहीं बल्कि उससे २५ किमी दूर हरी भरी वादियों की गोद में बने रिसार्ट में बिताए।
ReplyDeleteओह! फिर सच में बढ़िया रहा होगा.. वैसे मैं मुन्नार दो बार जा चुका हूं, और अभी पिछले साप्ताहांत पर तीसरी बार वालपरई से होकर आया हूं.. मेरे साथ तो अब यह हालात बन गये हैं कि मुझे कोई घूमने चलने को कहता है तो बस मैं वालपरई का नाम लेता हूं..
ReplyDeleteछोटा सा शहर.. सीधे-साधे लोग.. कैमरा किसी भी तरफ घूमा कर आंख बंद कर फोटो लो, और फोटो कुछ ऐसा आयेगा जैसे किसी प्रोफेशनल ने लिया हो.. सच में उधर के चाय बागानों कि बात ही कुछ और है.. :)
मुझे एक मेल करना भाई.. मुझे आपका ई पता नहीं मिल रहा है..
Email ID mil gaya.. :)
ReplyDeleteWe have been arranging tour packages to all these destinations since years, but such a beautiful write-up is amazing to read, as well enjoying the beauty of Kerala.
ReplyDeletewww.revelationholidays.in