तभी होटल के भोजनालय से नाश्ते की तैयारी की सूचना दी गई। बंगाल में सुबह के नाश्ते में प्रायः आपको लुचि व आलू की रसेदार सब्जी खाने को मिलेगी। अब आप सोच रहे होंगे कि लुचि सब्जी और पूरी सब्जी में क्या फर्क है। लुचि को सिर्फ आटे के बजाए मुलायम आटे में थोड़ा मैदा मिलाकर बनाया जाता है और साथ में हल्का सा नमक भी मिला देते हैं।
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सुबह के सवा नौ बजे तक हम सब भाड़े की सूमो में मंदारमणि की ओर कूच करने के लिए तैयार थे। नए दीघा से मंदारमणि तकरीबन 35 से 40 किमी के बीच की दूरी पर है।
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खड़गपुर से दीघा हम जिस रास्ते से आए थे उसी रास्ते पर रामपुर तक वापस जाना होता है और फिर वहाँ से दीघा कोन्ताई (Contai) मार्ग ले लेना होता है। सुनहरी धूप, हरे भरे खेतों कच्चे पक्के मकानों, बागानों और हवा के हल्के ठंडे झोकों के बीच दीघा से चाउलकोला (Chaulkhola) का शुरु का पच्चीस किमी का रास्ता आसानी से कट गया। वैसे सामान्यतः पर्यटक जब कोलकाता से दीघा आते हैं तो चाउलकोला का ये चौक दीघा से पहले ही पड़ जाता है। यहाँ से मंदारमणि के लिए रास्ता कटता है। कुछ वर्ष पूर्व तक मंदारमणि की ओर जाने वाली ये सड़क कच्ची थी। पर अब इसे पक्का कर दिया गया है। वैसे जब हम दिसंबर में गए थे तब इस सड़क के टूटे हुए हिस्सों में निर्माण कार्य चल रहा था।
चौदह किमी का ये रास्ता बंगाल के गाँवों से होता हुआ निकलता है एक ओर तो हरे भरे नारियलों से घिरे पोखर मन में ताजगी का अहसास जगाते हैं तो वही जब आप गाँवों के उन घरों के पास से गुजरते हैं जहाँ पर मछलियों को सुखा जा रहा होता है तो आप को जल्द ही नाक पर रुमाल लगा लेना होता है। सवा दस के लगभग हम मंदारमणि के समुद्र तट पर आ गए थे। मंदारमणि समुद्रतट तक पहुँचने के लिए अंतिम कुछ किमी में आपकी गाड़ी में बैठ कर ही समुद्रतट का आनंद ले रहे होते हैं। सुनने और महसूस करने में ये बेहद रोमांचक लगता है पर इसका एक दुखद पहलू है जिसके बारे में आपको बाद में बताऊँगा।
बंगाल की खाड़ी में बंगाल के दीघा से लेकर उड़ीसा के चाँदीपुर तक समुद्र तट काफी चौरस और छिछला है। पर नए दीघा, शंकरपुर और मंदारमणि के समुद्रतट छिछले लगभग आधा किमी तक छिछले होने के आलावा ऊपर से ठोस भी हैं। यही वज़ह है कि एक ओर तो इन समुद्र तटों पर काफी अंदर जाने के बावजूद पानी छाती की ऊँचाई से भी कम रहता है और डूबने का खतरा ना के बराबर होता है और दूसरी ओर पर आप आसानी से फुटबाल, क्रिकेट खेल सकते हें या तट पर मज़े से बाइक दौड़ा सकते हैं।
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चित्र में आप देख सकते हैं कि तट से कितनी दूर आकर हमें समुद्र में गोते लगाने पड़ रहे थे। एक घंटे तक पानी में रहने के बाद मैं अपने मित्रों के साथ समुद्र तट के एक सिरे पर स्थित रिसार्टों का चक्कर लेने के लिए चल पड़ा।
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पर पिछली बार न्यू दीघा में जो लाल केकड़े दिखाई दिए थे और जिन्हें देखने की आशा में हम मंदारमणि आए थे, वो यहाँ से हमें नदारद मिले। अब बताइए अगर आपके घरों के ऊपर कार और जीप चलती रहे तो कब तक आप उस घर में रहेंगे। इसलिए शायद लाल केकड़ों ने आपना आशियाना शायद थोड़ा वीराने में कर लिया होगा। पश्चिम बंगाल सरकार को चाहिए कि वो शीघ्र ही होटलों की कतार के समानांतर एक सड़क बना के वाहनों के परिचालन को नियंत्रित करे अन्यथा लाल केकड़े मंदारमणि से बिल्कुल ही गायब हो जाएँगे।
मंदारमणि तट पर करीब तीन घंटे बिताने के बाद एक बजे हम वहाँ से शंकरपुर के समुद्र तट की ओर रुखसत हो लिए जो कि मंदारमणि से दीघा जाने वाले के रास्ते के लगभग मध्य में पड़ता है। दीघा से चौदह किमी दूर शंकरपुर के इस समुद्र तट पर हम पिछली बार हम कुछ ही समय के लिए रुके थे और वहाँ की हरी भरी छटा से मंत्र मुग्ध हो गए थे। दिन के लगभग पौने दो बजे मंदारमणि से चलकर जब हम शंकरपुर पहुँचे तो हमें तब
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और अब की छटा में बड़ा फर्क नज़र आया। समुद्र के तट की ओर निरंतर बढ़ते चले जाने की वजह से बहुत सारे पेड़ पौधे अब वहाँ है हीं नहीं। पिछली बार की हरियाली इस बार बेहद फीकी फीकी सी लगी। पेड़ों को समुद्री कटाव से बचाने के लिए लकड़ी का एक लंबा ढाँचा खड़ा मिला।
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और हम समुद्र तट के अन्वेषण में.... यहाँ भी समुद्रतट उतना ही चौरस है। बगल ही में मछुआरों की बस्ती और एक फिशिंग हार्बर है । फिशिंग हारबर एक बरसाती नदी के मुहाने पर बसा हुआ है। चूंकि नदी में पानी कम था तो मछुआरों की हलचल भी ना के बराबर थी। तब और अब के शंकरपुर में फर्क ये भी आ गया है कि अब तट पर गाड़ियाँ चलनी बंद हो गई हैं।
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मेरे मित्र को थोड़ी दूर पर ये स्टारफिश दिखी
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थोड़ी देर बैठे रहने के बाद मेरा खोजी मन अकेले ही विचरण को हुआ और मैं समुद्र तट से नदी के मुहाने की ओर चल पड़ा। करीब आधे किमी तक आगे चलने के बाद मुझे दूर बालू पर हरक़त सी होती दिखाई दी। कुछ आगे और बढ़ा तो ये छिद्र के सामने अपने को खड़ा पाया। कड़ी धूप में आधे पौने किमी का सफ़र मुझे सार्थक लगने लगा क्यूँकि मुझे पता लग गया था कि जिसकी तलाश में मैं था वो मंजिल पास आ गई है...
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क्या था इस छिद्र का राज और क्या दिखा मुझे आगे उसके लिए देखना ना भूलिएगा इस कड़ी की अगली पोस्ट...
नयनाभिराम चित्र और दिलचस्प वर्णन...आगे क्या हुआ जानने की इच्छा तीव्र हो चुकी है...
जवाब देंहटाएंनीरज
dilchashp.... maneesh ji ....
जवाब देंहटाएंarsh
आप तो वाकई समुद्र तट विशेषज्ञ हैं। मन खुश हो गया।
जवाब देंहटाएंRed Crab dikha aur kya :) Khoob !
जवाब देंहटाएंघुमने के आनंद के साथ ही ज्ञान भी बढाया.
जवाब देंहटाएंअरे वाह..
जवाब देंहटाएंइतनी बढ़िया जानकारी!
सुन्दर चित्रों ने तो मन मोह लिया!
Crabs dikhe aaopko.
जवाब देंहटाएंChitra bahut achhe hain.
शुक्रिया आप सब का अपने विचारों से अवगत कराने के लिए !
जवाब देंहटाएंनिशा हाँ जी क्रैब्स खूब दिखे। कल देखिएगा आपको कराएँगे उनके दर्शन