कानाताल में हमारा कमरा पश्चिम दिशा की ओर खुलता था। इसलिए हमारी हर सुबह की शुरुआत होती थी चंद्र देव के दर्शन से। पर्वतों पर फैलती सूर्य किरणों की लालिमा हमारे चंदा को संकेत कर देती थीं कि अब तुम्हारी रुखसती का वक़्त आ गया है और चंदा जी भी इशारा समझ धीरे धीरे नीचे खिसकना शुरु कर देते।
अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में पूर्णिमा पास ही पड़ी थी इसलिए चाँद अपनी पूर्णता के साथ हमें रिझा रहा था। हम भी सुबह की ठंड की परवाह किए बिना बॉलकोनी में खड़े होकर चंद्रमा के इस अद्भुत रूप को निहारा करते थे।
फिर वो लमहा भी आ जाता जब चंद्रमा हमें टाटा टाटा बॉय बॉय कह पहाड़ियों के ओट में छुप जाता ।पर जाते जाते अगली सुबह आने का वादा भी कर जाता..
चंद्रमा को विदा करने के बाद मैं और दीपक सुबह की सैर के लिए तैयार हो जाते। रिसार्ट के ठीक सामने ट्रेकिंग मार्ग था। शुरुआत से ही चीड़ और देवदार के पेड़ हमारे साथ हो लेते। ऐसा लगता था मानों ये पेड़ सूर्य किरणों को सबसे पहले अपने आगोश में लेने के लिए एक दूसरे से ऊपर पहुँचने की होड़ में हों...
जंगलों के बीच में कुछ दूर तक छोटे मोटे रिहायशी इलाके भी थे इसलिए पगडंडी चौड़ी थी। पर जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गए हमारा मार्ग संकरा होने लगा और वृक्षों के बजाए हमारा साथ जंगली झाड़ियाँ निभाने लगीं।
पर रास्ते में सिर्फ झाड़ियाँ हों ऐसी बात भी नहीं थी। इन जैसे खूबसूरत बेपरवाह फूल भी दिखे जो अपनी मर्जी से जहाँ तहाँ उग आए थे। जंगल के कई इलाकों को इन्होंने गुलज़ार कर दिया था ।
हमारे पगडंडी मार्ग में जगह जगह पश्चिम की ओर फैली घाटी के मनोरम दृश्य दिख जाया करते थे। सीढ़ीनुमा खेत और उनके बीच में खड़े इक्का दुक्का मकान पूरे मंजर को और हसीन बना रहे थे..
चीड़ देवदारों का सिलसिला खत्म होते ही समतल जमीं का टुकड़ा हमें नज़र आया और वहीं नज़र आए बुलंदी से अपनी जगह खड़े ये महाशय...
हम लोग साढ़े छः बजे कानाताल से निकले थे। आठ बजे हर हाल में वापस होना था। इसलिए साढ़े तीन किमी चलने के बाद हमें मन मसोस कर वापस आना पड़ा। .वैसे कानाताल में हमें जिन कमरों में हमें ठहराया गया था वहाँ की आंतरिक
साज सज्जा का एक खूबसूरत पहलू था टॉवेल आर्ट (Towel Art) यानि तौलिए से बनाई गई मोहक
आकृतियाँ।
देखिए तो क्या इन्हें देख कर ऐसा नहीं लगता कि दो बत्तखें आपस में प्रेमालाप कर रही हों..
सुबह के दस बजे नाश्ता निबटाकर हम सभी फिर रिसार्ट से बाहर निकले। बाहर नीला आसमान और खिली धूप हमारी प्रतीक्षा कर रही थी।
मौसम के इस मिजाज़ को देखते हुए इतनी मुस्कुराहट तो बनती है ना...)
कानाताल की इस यात्रा में हमारा अगला पड़ाव था टिहरी बाँध। इस श्रृंखला की अगली कड़ी में ले चलेंगे आपको टिहरी के सफ़र पर...आप फेसबुक पर भी इस ब्लॉग के यात्रा पृष्ठ (Facebook Travel Page) पर इस मुसाफ़िर के साथ सफ़र का आनंद उठा सकते हैं।
मुसाफिर हूँ यारों, मुसाफिर हूं यारों
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
- Conclay @ Kanatal : पहला दिन लंबी यात्रा और वो शाम की मस्ती!
- Un conference @ Kanatal : कैसा रहा हमारा विचार विमर्श ?
- आइए दिखाएँ आपको गढ़वाल हिमालय (Garhwal Himalayas) के ये शानदार पर्वतशिखर !
- कानाताल (Kanatal) की वो खूबसूरत सुबह !
- टिहरी बाँध (Tehri Dam) : इंजीनियरिंग कार्यकुशलता का अद्भुत नमूना !
- क्यूँ निराश किया हमें धनौल्टी (Dhanoulti) ने ?
- Chick Chocolate मसूरी : आख़िर क्या खास है इस रेस्ट्राँ में ?
टॉवेल आर्ट अच्छा लगा, फ़ोटो जबरदस्त हैं..
ReplyDeleteसराहने के लिए धन्यवाद !
DeleteNice account and even nicer photos Manish ji !
ReplyDeleteI was wondering where the last photo had vanished. :)
I remember you clicking and showing it on your camera but when you returned the SD card, it wasn't in it.
Please send me the last photo, please.
Thanks.
I have downloaded the file from the camera. You will soon find it in ur mailbox :)
DeleteIt feels like it was just yesterday..lovely pics and ive started polishing my Hindi
ReplyDeleteyeah true & thx for revisiting the language thru this blog.
Deleteबेहतर लेखनी !!!
ReplyDeleteशुक्रिया रजनीश !
Deleteचित्र और प्रस्तुतीकरण दोनों ही बहुत अच्छा लगा... शुभकामनायें
ReplyDeleteजानकर खुशी हुई !
Deleteबहुत ही सुन्दर दृश्य..
ReplyDeleteआपको चित्र पसंद आए जानकर अच्छा लगा !
Deleteसंध्या जी ने बिलकुल सही कहा चित्र के साथ प्रस्तुतीकरण दोनों ही बहुत अच्छे हैं
ReplyDeleteतारीफ़ के लिए धन्यवाद सावित्री !
Deletephotos aur description achchhe lage..
ReplyDeleteशुक्रिया शारदा जी !
Deleteकितनी सुन्दर वादियाँ हैं, आपका विवरण पढके वहा जाने का मन कर रहा है। बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आभार।
ReplyDeleteस्वागत है आरती आपका इस ब्लॉग पर ! जरूर जाइए और लौटकर लिखिए अपने अनुभव !
Deleteकानाताल की वादियाँ वाकई में खूबसूरत लगी....| आपकी फोटोग्राफी बहुत बढ़िया लगी...बड़े आकार के चाँद वाला और नीचे पाइन के पेड़ो का फोटो सबसे आकर्षक रहा ....|
ReplyDeleteशुक्रिया रितेश...
Deletewow ji mast jagah hai nice blog :)
ReplyDeleteराधा तुम्हारा घर भी तो गढ़वाल ही में है ना ?
Delete