बुधवार, 2 अप्रैल 2014

चीड़ के पेड़ों के साथ कौसानी की धुंध भरी सुबह ! (Pine Forest & Kausani)

दिल्ली की सैर तो आपने कुतुब मीनार और हुमायूँ के खूबसूरत मकबरे के दर्शन से कुछ हद तक कर ली। मार्च के प्रथम हफ्ते में भी दिल्ली जाना हुआ था और इस बार दिन भर के कामों से थोड़ी फुर्सत मिली तो मित्रों की वज़ह से पुराने किले के अद्भुत लाइट एंड साउंड शो को देखने का अवसर भी मिला पर वो वाक़या फिर कभी। वैसे भी गर्मियों ने पूरे भारत में अपनी हल्की हल्की दस्तक देनी शुरु कर दी है तो क्यूँ ना आजआप को एक ठंडी पर बेहद खूबसूरत जगह ले चला जाए।

जी हाँ आज मैं ले चल रहा हूँ उत्तराखंड के एक छोटे व बेहद शांत पर्वतीय स्थल कौसानी की ओर। याद है एक बार आपसे उत्तराखंड की कोसी नदी की कहानी साझा करते वक़्त आपको नैनीताल से अल्मौड़ा और फिर सोमेश्वर तक की यात्रा करवाई थी।

सोमेश्वर से कौसानी तक पहुँचते पहुँचते हल्की बूँदा बाँदी शुरु हो गई थी। कस्बे के मुख्य भाग में जब हम पहुँचे तो एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था। किराने की दुकानों में इक्का दुक्का आदमी दिख रहे थे। दो तीन छोटे जलपानगृह नज़र आए पर पर्यटकों की कमी के कारण उन्होंने अपनी दुकानें पहले से ही बंद कर रखी थीं। आधे घंटे की खोजबीन के बाद थोड़ी चढ़ाई पर हमें ढंग का रेस्ट्राँ मिल सका।

बाद में पता चला कि कौसानी कस्बे के दो हिस्से हैं ऊपरी हिस्से में अनाशक्ति आश्रम और होटल हैं जबकि निचले  इलाके में कस्बे का मुख्य बाजार है। जलपान करने के बाद शाम के साढ़े पाँच बज चुके थे। हमने सोचा गेस्ट हाउस में जाने के पहले एक चक्कर यहाँ के मशहूर अनासक्ति आश्रम का लगा लिया जाए। अनासक्ति आश्रम तक पहुँचते पहुँचते बारिश फिर शुरु हो गई थी। शाम के छः बजे थे और हल्का हल्का अँधेरा आश्रम की शांति को और प्रगाढ़ कर रहा था। आश्रम के मुख्य हॉल में गाँधी जी के कौसानी प्रवास से जुड़ी तसवीरें लगी हुई हैं। महात्मा गाँधी कौसानी के अनासक्ति आश्रम में आए और यहीं रह कर उन्होंने गीता के श्लोकों का सरल अनुवाद करके ‘अनासक्ति योग’ का नाम दिया। बाद में उनके विचारों का संकलन पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुआ। कुछ ही देर में वहाँ भजन का कार्यक्रम शुरु हो गया। थोड़ा वक़्त बिताने के बाद हम वापस अपने गेस्ट हाउस चले आए।

लोग कौसानी मुख्यतः हिमालय पर्वत श्रंख्ला का नयनाभिराम नज़ारा देखने आते हैं। अल्मोड़ा से मात्र 52 किमी उत्तरपश्चिम में समुद्रतल से 1890 मी ऊँचाई पर स्थित है। एक ओर सोमेश्वर तो दूसरी ओर गरुड़, बैजनाथ कत्यूरी घाटियों के बीच बसे इस रमणीक कस्बे से आप हिमालय पर्वतमाला की नंदा देवी, माउंट त्रिशूल, नंदाकोट, नीलकंठ आदि चोटियों का विहंगम दृश्य देख सकते हैं। कौसानी जाने के लिए अक्टूबर का महीना हमारे समूह ने इसीलिए चुना भी था।

पर इस बेमौसम की बारिश ने सुबह सुबह हिमालय के दर्शन की हमारी योजनाओं पर पानी फेर दिया था। वन विश्राम गृह के कमरों में लिहाफ के अंदर घुसने के बाद भी हमारे कान बाहर टपकती बारिश की बूदों पर ही केंद्रित थे। सुबह तीन बजे बाहर लोगों के चलने की आवाज़ सुनाई दी। समझ गए कि जो हाल मेरा है वही वहाँ आए हुए अन्य पर्यटकों का भी है। सब मौसम को बदलते देखना चाहते थे। मैं भी उसी ठंड में बाहर निकला। बारिश तो खत्म हो चुकी थी पर उसके बाद की धुंध दूर दूर तक छाई थी़। बीच बीच में कभी एक आध तारे दिख जाते थे तो उम्मीद बँधती थी कि शायद सुबह तक सब साफ हो जाए।

पर जिस सुबह की हमें उम्मीद थी वो ना आनी थी ना आई। सुबह पाँच बजे धुंध ने और भीषण रूप ले लिया था। दस मीटर से आगे का कुछ नहीं दिख रहा था पर्वतश्रंखला क्या खाक़ दिखती? रात भर जो रतजगा किया था उसकी कमी आठ बजे तक सो कर पूरी की। विश्राम गृह के ठीक सामने से एक रास्ता डोबागाँव की ओर जाता है जो वहाँ से पाँच किमी दूर है। महात्मा गाँधी की शिष्या सरला बेन के नाम पर वन विभाग ने इस रास्ते को सरला नेचर ट्रेल ( Sarla Nature Trail ) का नाम दिया है। हमलोगों ने सोचा क्यूँ ना इस सुबह का आनंद इस नेचर ट्रेल के साथ ही उठाया जाए। जब सुबह साढ़े आठ बजे हम गेस्ट हाउस से निकले तो बाहर के हालात कुछ ऐसे थे।

कुछ ही देर में हम दोनों ओर चीड़ कें जंगलों से घिर गए। चीड़ के ये पेड़ सूर्य की घटती बढ़ती रोशनी के साथ अपना रंग बदलते हैं। सुबह सुबह इनका रंग गहरा हरा था। चीड़ के नुकीले पतों पर ओस की बूँदे चमक रहीं थीं।


प्रकृति के इस रूप को आपने चारों ओर पा कर मन बड़ा प्रफुल्लित महसूस कर रहा था और सुबह चोटियों को ना देख पाने की निराशा क्षीण हो चुकी थी।


रोशनी के बदलाव के साथ ये जंगल अलग अलग रूपों में सामने आते हैं। अब ऊपर और नीचे की चित्रों को देखिए। ऊपर वाला जाते और नीचे वाला करीब एक घंटे बाद लौटते वक़्त लिया गया है।


एक घंटे के भीतर आसमान साफ होने लगा था। धूप के साथ इन चीड़ की इन शंकुधारी पत्तियों का निखार बढ़ता जा रहा था़।


सड़क के किनारे चलते चलते हमे जंगलों के बीच से थोड़ी ऊँचाई पर चढ़ने का मन हुआ। दस मिनटों की जद्दोज़हद के बाद पसीने पसीने होते हुए हम शिखर पर पहुँचे।



 पतले पतले तनों वाले इन पेड़ों को इनके बीच से देखना एक अलग ही अनुभव होता है। बरसात के दिनों में चीड़ की पत्तियाँ लाल रंग की हो कर जब नीचे गिरती हैं तो सारी ढलान और रास्ते सिंदूरी रंग ले लेते हैं। यक़ीन नहीं होता तो यहाँ देखिए।

दो घंटों की इस पदयात्रा को सफलता पूर्वक संपादित करने के बाद हमारे बरख़ुरदार। कौसानी की यात्रा ज़ारी रखते हुए अगली प्रविष्टि में आपको ले चलेंगे यहाँ के ऐतिहासिक मंदिर बैजनाथ में।

तो कैसी लगी आपको ये यात्रा ? अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।

12 टिप्‍पणियां:

  1. Kousani ek dream destination hai mere liye ... bahut padhaa hai iske baare mein

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    1. हाँ भावना हिमालय की पर्वतश्रंखला के चमकते शिखरों को देखना और चीड़ वृक्षों के साथ कदम ताल करना दो अविस्मरणीय अनुभव होते हैं कौसानी में आने वाले आगुंतक के लिए !

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  2. In kausani which type accommodation facility available for tourist?

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    1. Govt. accommodation like KMVN Guest House are most sought after. Then there is Forest Guest House & private hotels with tariff ranging from Rs 1000-2000.

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  3. गहरी साँस भरने में जब सोंधापन आता है तो मन प्रसन्न हो जाता है।

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  4. यहां गोरखपुर में तो दो चीड़ के वृक्ष खोजे मैने और उन्ही के तिलस्म में उलझा हूं मैं।
    आपके चीड़ के चित्र बहुत मोहक हैँ!
    धन्यवाद!

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