गुरुडांगमार (Gurudongmaar) से वापस
अब हमें लाचुंग की ओर लौटना था । सुबह से 70 कि.मी.की यात्रा कर ही चुके थे
। अब 120 कि.मी की दुर्गम यात्रा के बारे में सोचकर ही मन में थकावट हो
रही थी। इस पूरी सिक्किम यात्रा में दोपहर के बाद शायद ही कही धूप के दर्शन
हुये थे। हवा ने फिर जोर पकड़ लिया था। सामने दिख रहे एक पर्वत पर बारिश के बादलों ने अपना डेरा जमा लिया था ।
वापसी में हम थान्गू के पास चोपटा घाटी में थोड़ी देर के लिये रुके । दो विशाल पर्वतों के बीच की इस घाटी में इक पतली नदी बहती है जो जाड़ों के दिनों में पूरी जम जाती है ।
चुन्गथांग करीब 6 बजे तक पहुँच चुके थे। यही से लाचुंग के लिये रास्ता कटता है। चुंगथांग से लाचुंग का सफर डरे सहमे बीता। पूरा रास्ता चढ़ाई ही चढ़ाई थी। एक ओर बढ़ता हुआ अँधेरा तो दूसरी ओर बारिश की वजह से पैदा हुई सफेद धुंध ! इन परिस्थितियों में भी हमारा कुशल चालक 60-70 कि.मी प्रति घंटे की रफ्तार से अपनी महिंद्रा हांक रहा था । अब वो कितना भी चुस्त कयूँ ना हो रास्ते का हर एक यू टर्न हमारे हृदय की धुकधुकी बढ़ाता जा रहा था । निगाहें मील के हर एक बीतते पत्थर पर अटकी पड़ीं थी....आतुरता से इस बात की प्रतीक्षा करते हुये कि कब लाचुंग के नाम के साथ शून्य की संख्या दिखाई दे जाये ।
7.30 बजे शाम को लाचुन्ग (Lachung) पहुँच कर हमने चैन की साँस ली । बाहर होती मूसलाधार बारिश अगले दिन के हमारे कार्यक्रम पर कुठाराघात करती प्रतीत हो रही थी । थकान इतनी ज्यादा थी कि चुपचाप रजाई के अंदर दुबक लिये। प्रातः 5.30 बजे होटल की छत पर सैलानियों की आवाजाही देख कर हमें भी छत पर जाने की उत्सुकता हुई कि माजरा क्या है? देखा दूर- दूर तक बारिश का नामोनिशान तक नहीं है।
पहाड़ के बीचों बीच पतले झरने की सफेद लकीर, चट्टानों के इस विशाल जाल के सामने बौनी प्रतीत हो रही थी। पर असली नजारा तो दूसरी ओर था। पर्वतों और सूरज के बीच की ऐसी आँखमिचौनी मैंने पहले कभी नहीं देखी थी।
पहाड़ के ठीक सामने का हिस्सा जिधर हमारा होटल था अभी भी अंधकार में डूबा था। दूर दूसरे शिखर के पास एक छोटा सा पेड़ किरणों की प्रतीक्षा में अपनी बाहें फैलाये खड़ा था। उधर बादलों की चादर को खिसकाकर सूर्य किरणें अपना मार्ग प्रशस्त कर रहीं थीं।
थोड़ी
ही देर में ये किरणें कंचनजंघा की बर्फ से लदी चोटियों को यूँ प्रकाशमान
करने लगीं मानो भगवन ने पहाड़ के उस छोर पर बड़ी सी सर्चलाइट जला रखी हो।
शायद वर्षों तक ये दृश्य मेरे स्मृतिपटल पर अंकित रहे। अपने सफर के इस
यादगार लमहे को मैं अपने कैमरे में कैद कर सका ये मेरी खुशकिस्मती है ।
हमारा अगला पड़ाव यूमथांग घाटी (Yumthang Valley) था । ये घाटी लॉचुंग से करीब 25 कि.मी. दूर है और यहाँ के लोग इसे फूलों की घाटी के नाम से भी बुलाते हैं । दरअसल ये घाटी रोडोडेन्ड्रोन्स की 24 अलग अलग प्रजातियों के लिये मशहूर है। सुबह की धूप का आनंद लेते हुये हम यूमथांग की ओर चल पड़े। सारा रास्ता बैंगनी रंग के इन छोटे छोटे फूलों से अटा पड़ा था। करीब डेढ़ घंटे के सफर के बाद हम यूमथांग में थे।यूमथांग की सुन्दरता के जितने चर्चे हमने सुन रखे थे उस हिसाब से हमें निराश होना पड़ा ।



इस श्रंखला की सारी कड़ियाँ
- गंगटोक से उत्तरी सिक्किम (Gangtok to North Sikkim )
- गुरुडांगमार झील .. Gurudangmar Lake, North Sikkim
- चोपटा से लाचुंग और फिर यूमथांग घाटी तक का सफ़र Yumthang Valley
- सफ़र छान्गू झील का और कथा बाबा हरभजन सिंह की Changu Lake
- गंगटोक चित्रों में .. In Pictures Gangtok
अद्भुत!!
ReplyDeleteशुक्रिया पसंदगी का
Deleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteNice Blog Thanks to sharing
ReplyDeleteBudget Hotel Booking
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Me bhi gya hun
ReplyDeleteकैसा लगा आपको यूमथांग ?
DeleteBhut sunder jankari & sunder Photo
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