मेरी मेघालय यात्रा की पहली कड़ी में आपने देखा आसमान से दिखते शिलांग के आस पास के हरे भरे इलाकों को। रात को पूजा की गहमागहमी के बाद जब अगली सुबह उठे तो मौसम बिल्कुल साफ था। रात को ही पता चला था कि वहाँ के किसी स्थानीय समूह ने मेघालय बंद का आह्वान किया है। गाड़ीवाला जिसे हम गुवहाटी से लाए थे हमें ऐसी हालत में चेरापूँजी चलने की ताकीद कर रहा था। शायद दूसरी गाड़ियों में उसके मित्र भी उस दिशा में जा रहे थे। पर बंदी के दिन राजधानी से बाहर निकलने का हम खतरा नहीं उठाना चाहते थे सो हमने वहाँ के सुरक्षाकर्मियों से बात चीत करने के बाद शिलांग शहर के अंदर ही घूमने का निश्चय किया।
मेघालय एक जनजातीय इलाका है। यहाँ की तीन प्रमुख पहाड़ियों गारो, खासी व जयंतिया के नाम पर यहाँ की तीन प्रमुख जनजातियों के नाम हैं। इस मातृ प्रधान समाज में आदि काल से लोग जानजातीय रीति रिवाज़ को मानते रहे पर उन्नीस वीं शताब्दी में जब अनुकूल मौसम को देखते हुए ब्रिटिश यहाँ दाखिल हुए तो उन्होंने यहाँ के लोगों में ईसाई धर्म का खूब प्रचार प्रसार किया। उसी की बदौलत आज राज्य के तीन चौथाई लोग इस धर्म का पालन करते हैं।
![]() |
Cathedral of Mary कैथडरल आफ मैरी |
ज़ाहिर है इतनी बड़ी तादाद के लिए पूजा स्थल यानि चर्च भी काफी संख्या में
बनाए गए। शिलांग में भी खूबसूरत चर्चों की बहार हैं पर इनमें सबसे सुंदर
चर्च कैथडरल आफ मैरी को माना जाता है। सो सुबह सुबह हम सबसे पहले इसी के
दर्शन को चल पड़े। कहते हैं कि इसी स्थान पर कभी जर्मन मिशनरीज़ ने एक कैथलिक
चर्च बनाया था। पर 1936 में गुड फ्राइडे के दिन लकड़ी का वो चर्च आग में
जलकर राख हो गया। उसी साल यहाँ कैथडरल आफ मैरी की नींव रखी गई। चर्च को
बनने में ग्यारह साल लग गए। पहली नज़र में ही मुझे ये बड़ी शानदार इमारत
लगी। सड़क से चर्च तक पहुँचने के लिए दोनों तरफ से चौड़ी चौड़ी सीढ़ियाँ बनाई
गयी हैं। चर्च के दोनों ओर आसमान छूते लंबे लंबे पेड़ हैं जिनके बीच ये इमारत और खिल उठती है।
यहाँ के लोग कहते हैं कि इस चर्च को बनाते समय यहाँ की चट्टानों को काटकर उनमें रेत भरी गई। यानि इस इमारत की नींव चट्टानों पर ना टिकी हो कर रेत की मोटी चादर पर टिकी है। ऐसा इसलिए किया गया ताकि ये इमारत भूकंप के झटकों को बर्दाश्त कर सके।
चर्च के चारों ओर काफी खुला समतल इलाका है। चर्च के अंदर तो तसवीर खींचने
की मनाही थी। वैसे अंदर की दीवारों पर म्यूनिख के कलाकारों द्वारा टेराकोटा
की कलाकृतियों में ईसा मसीह को दी गई यातना को दर्शाया गया है। बाहर आहाते
में यीशू की माँ मैरी की प्रतिमा है जिनके नाम पर इस चर्च का नामाकरण हुआ
है।
चर्च के अंदर थोड़ा वक़्त बिताकर हमारा समूह शिलांग के सबसे मशहूर जलप्रपात एलिफेंट फॉल्स की ओर चल पड़ा। अब आप अगर ये सोच रहे हैं कि इस जलप्रपात की शक्ल सूरत देख के आप इसके नाम के रहस्य का पर्दाफाश कर लेंगे तो आप मुगालते में हैं। शहर के केंद्र से मात्र बारह किमी दूर पूर्वी खासी पहाड़ियों पर स्थित ये जलप्रपात यहाँ के स्थानीय लोगों में Ka Kshaid Lai Pateng Khohsiew के नाम से जाना जाता था। अब इसे हिंदी में उच्चारित करना मेरे बस की बात तो नहीं पर सरल शब्दों में इसका अर्थ है 'तीन पड़ावों में गिरता जलप्रपात' और यही इसकी असली पहचान है।
अब मुझे इस नाम को लेने में तकलीफ़ हो रही है तो ब्रिटिश कितने कष्ट से गुजरे होंगे ये आप भली भांति समझ सकते हैं। लिहाज़ा उन्होंने इस जलप्रपात की दूसरी पहचान ढूँढनी शुरु की। जलप्रपात के आख़िरी पड़ाव पर जा कर उन्हें लगा कि बगल की चट्टान का आकार हाथी जैसा है। अब उनका ये आकलन कितना सही था वो हम और आप तो बता नहीं सकते क्यूँकि आज से करीब एक सौ बीस साल पहले वो चट्टान भूकंप में नष्ट हो गयी।
Elephant Falls : First Step एलिफेंट फॉल पहला पड़ाव |
![]() |
Elephant Falls : Second Step एलिफेंट फॉल दूसरा पड़ाव |
जो भी हो इस जलप्रपात की सबसे बड़ी खासियत है इसके बेहद करीब तक पहुँचने की सहूलियत और वो भी बिना ज्यादा चले हुए। टिकट कटाने के बाद पाँच मिनट भी नहीं होते हैं जब पहले झरने के सामने यात्री अपने आप को पाते हैं। आगे का रास्ता जलप्रपात के बगल से गुजरता है। यानि रेलिंग के साथ उतरते हुए ये फॉल भी हमसफ़र की भांति साथ बहता हुआ चलता है। इस चौड़े मुँह वाले प्रपात का सबसे खूबसूरत हिस्सा इसका आखिरी पड़ाव है जो किसी अच्छी फिल्म के क्लाइमेक्स की तरह आपको मोहित कर जाता है।
![]() |
Elephant Falls : Final step, एलिफेंट फॉल तीसरा पड़ाव |
जलप्रपात की दूसरी तरफ़ एक उद्यान भी है ।
एलिफेंट फॉल के जाने के रास्ते में थोड़ा पहले ही एक रास्ता यहाँ की सबसे ऊँची चोटी शिलांग पीक की ओर मुड़ता है। वास्तव में ये चोटी शिलांग की ही नहीं बल्कि मेघालय का सबसे ऊँचा शिखर है। शिलांग पीक की ऊँचाई समुद्रतल से दो हजार मीटर से थोड़ी कम है। यहाँ पहुँचने के लिए आपको वायु सैनिकों की रिहाइशी कॉलोनी से होकर गुजरना पड़ता है।
पर यहाँ से दिखने वाला नज़ारा आपको मंत्रमुग्ध कर देता है। चीड़ के पेड़ों से
भरी शिलांग की ये चोटी अपने समतल पठारी हिस्से का भी दर्शन कराती है जिसमें
शिलांग का विशाल शहर बसा हुआ है। शहर को पार कर जब आगे नज़र जाती है तो
खासी की पहाड़ियाँ दिखती हैं।
इस चोटी और शहर का नाम शिलांग क्यूँ पड़ा इसकी भी अपनी एक दंत कथा है। कहते हैं यहाँ से चौदह किमी दूर एक गाँव में अविवाहित स्त्री ने एक मृत बच्चे को जन्म दिया । मरे हुए बच्चे को उसने ज़मीन में गाड़ दिया। बात आई गयी हो गई। दशकों बाद एक रात जब हल्ले की आवाज़ सुन उस स्त्री ने जब घर का दरवाजा खोला तो देखा कि बाहर एक युवक खड़ा है। युवक ने कहा... माँ मैं वही बच्चा हूँ जिसे तुमने पृथ्वी के हवाले कर दिया था। आज में यहाँ वापस लोकतंत्र व न्याय के शासन को स्थापित करने आया हूँ। इस अनहोनी को देखकर इस इलाके के लोगों ने उस युवक को अपना अराध्य मान लिया और उसका नाम U Lum Shyllong (यानि वो जो प्रकृति में फलता फूलता है) रख दिया। इसी वज़ह से इस शहर व चोटी का नाम भी शिलांग पड़ गया।
चोटी पर शिलांग बंद का कोई असर नहीं दिख रहा था। काफी गहमागहमी थी और ये जनाब तो परंपरागत खासी पोशाक में तलवार चलाते गजब ढा रहे थे।
शिलांग शहर के इन बाहरी स्थलों को देख कर हम वापस शहर की ओर मुड़ गए। भोजन करने के बाद लगा कि आस पास थोड़ी चहलकदमी करनी चाहिए तो पास के लेडी हैदरी पार्क में चले गए जो अविभाजित असम के पहले राज्यपाल की पत्नी के नाम पर बना है।
ये उद्यान ज्यादा बड़ा नहीं पर सलीके से इसका रख रखाव किया गया है यानि एक पौन घंटे तो आप यहाँ बैठकर मजे से बिता सकते हैं।
शिलांग में एक गोल्फ कोर्स भी है जिसे एशिया के कुछ बड़े गोल्फ कोर्स में शुमार किया जाता है। पर आंगुतक सिर्फ बाहर से इसके हरे भरे उतार चढ़ावों का नज़ारा ही ले सकते हैं। पहले दिन तो हमने शिलांग ने इतना ही कुछ देखा और बाकी आख़िरी दिन के लिए छोड़ दिया। शिलांग में बिताया दूसरा दिन मेरी ज़िंदगी का यादगार दिन रहा क्यूँकि उसी दिन मैंने अपने पहले ट्रैवल कैमरे से अपनी आख़िरी तसवीर खींची। क्यूँ हुआ ऐसा जानियेगा इस श्रंखला की अगली कड़ी में..
अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
As usual beautiful post !
ReplyDeleteशुक्रिया महेश !
Deletethank sir jaankari dene k liye time milne pr when jayenge...
Deleteये जल प्रपात तो नियाग्र से कही अधिक सुन्दर व मनमोहक लगा।
ReplyDeleteहर जगह की अलग खूबसूरती होती है। आपको ये जलप्रपात ज्यादा मनमोहक लगा जान कर खुशी हुई। नियाग्रा की गणना विश्व के सबसे सुंदर जलप्रपातों में होती है और वो इतना विशाल है कि उसमें दर्जनोंं एलिफेन्ट फॉल समा जाएँ।
DeleteEnjoy with real nature
ReplyDeleteOff course the trip was pretty enjoyable in our lush green surroundings.
DeleteNice post sir
ReplyDeleteThanks Nayan
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (28-03-2016) को "होली तो अब होली" (चर्चा अंक - 2293) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार !
DeleteBhut shandar sir ji wese travel camera ki story janne k liye nxt post ka intzar rhega 😆
ReplyDeleteहाँ जरूर, साथ बने रहने का शुक्रिया !
DeleteNever been to Shillong. Your pictures, and more than that your writing always make me smile. :)
ReplyDeleteAnd of course, you enjoyed it with full fervor. :)
Thx Nisha ji, Happy that my write up provided you some lighter moments.
Deletevery beautiful article , sirji . i have read this article around 10 times , but still it feels refreshing to read again, it has been written very beautifully . Thanks a lot.
ReplyDeleteThanks Ajay for your appreciation.
Delete