गुरुवार, 30 जून 2016

कोबे शहर की वो शाम.. Kobe Harbour Area, Japan

जापान जाने के पहले मुझे पता नहीं था कि मुझे कोबे जाने का भी  मौका मिलेगा। वैसे भी घूमने वालों की फेरहिस्त में सामान्यतः जापान की जो तीन जगहें आती हैं वो हैं टोक्यो, क्योटो व हिरोशिमा। सही मौसम रहा तो लोग टोक्यो और क्योटो के बीच माउंट फूजी  के दर्शन भी कर लेते हैं। हाँ, ये जरूर है कि कुछ लोग समय रहने पर ओसाका को भी अपनी यात्रा योजना में शामिल करते हैं और यदि आप ओसाका आ गए तो कोबे जाना तो बनता ही है क्यूँकि ये वहाँ से मात्र चौंतीस किमी की दूरी पर है।

A room with a view जब आपकी खिड़की ऐसे दृश्य ले कर खुले !

क्योटो से ओसाका होते हुए हमें बस से कोबे आना था। ओसाका शहर  से तो तो हम किनारे किनारे निकल लिए। पर एक बात जो मुझे दिखी वो ये कि जापान के सारे शहर एक जैसे ही लगते हैं। सारे ऊँची ऊँची गगनचुंबी इमारतों के दूर तक फैले हुए जंगल सरीखे। कहीं कोई पुरानी धरोहर  नहीं। अब इसमें जापान का दोष नहीं कि उनके पास इतिहास के नाम पर क्योटो और नारा जैसी जगहें ही  बची हैं। युद्ध व भूकंप की दोहरी मार झेले हुए इस देश में इतिहास के नाम पर BC नहीं बस AD ही चलता है।

कोबे का बंदरगाह  Kobe Harbour
मध्य जापान के होन्शू द्वीप में स्थित कोबे, जापान का छठा सबसे बड़ा नगर है। एक ओर पहाड़ी और दूसरी और समुद्र से घिरा कोबे शहर अपनी तीन खूबियों के लिए जाना जाता रहा है। पहला तो यहाँ का बंदरगाह, जो कभी जापान का सबसे बड़ा व व्यस्ततम बंदरगाह हुआ करता था । अठारहवीं शताब्दी में पश्चिमी देशों से इसी बंदरगाह के माध्यम से यहाँ व्यापार शुरु हुआ। नतीजन  यहाँ कोरिया, चीन, वियतनाम और अमेरिका से भी  लोग आकर बस गए। वक़्त के साथ कोबे शहर ने इन देशों की संस्कृति को अपने में समाहित करता गया ।

कोबे की दूसरी पहचान एक औद्योगिक शहर की है। मशीनरी व स्टील की बड़ी बड़ी कंपनियाँ यहाँ काम करती हैं और तीसरी ये कि कोबे बीफ़ अपने स्वाद के लिए विश्व भर में जाना  जाता है। अब मेरे जैसे शाकाहारियों के लिए तो ये खासियत किसी काम की नहीं थी तो उस ज़ायके से दूर ही रहे।
कोबे में हमारा ठिकाना JICA Kanshai Centre

ओसाका से चलते समय ही हमें पता चला कि कोबे का अपना ठिकाना एक अच्छी जगह पर है। पर कान्साई के अपने हॉस्टल की नवीं मंजिल से हमें जब ये नज़ारा दिखाई दिया तो मन खुशी से फूला नहीं समाया। हाँस्टल के मुख्य द्वार की तरफ़ बाजार थे और पिछले हिस्से की तरफ़ कोबे का बंदरगाह।

समुद्र और हाँस्टल के बीच एक हरी पट्टी और उसके समानांतर चलती रोड थी जहाँ शाम टहलना बड़ा प्यारा लग रहा था। कुछ बच्चे खेल रहे थे। हमारी तरह चहलकदमी करने वाले वहाँ कम थे और दौड़ने वाले ज़्यादा।
लहरों को काटता एक छोटा जहाज
कोबे प्रवास के अगले दिन हमें बताया गया कि कोबे बंदरगाह का सबसे सुंदर हिस्सा वो है जहाँ से इसका पोर्ट टॉवर दिखता है। लोकल ट्रेन पर चढ़कर हम  हार्बर के पास वाले स्टेशन पर उतरे और उधर पैदल ही चल पड़े।  रास्ते में कुछ देर आगे बढ़े ही थे कि अमेरिकी रॉकस्टार एल्विस प्रिस्ले की ये मूर्ति सामने दिख गई।

बड़ा अचरज़ होता है जापान में आकर कि जिस देश ने इसे परमाणु बम और सैकड़ों हवाई हमलों से छलनी किया, वहीं  की संस्कृति को ही जापानियों से सबसे ज्यादा स्वीकारा। द्वितीय विश्व युद्ध में कोबे शहर में हुए हवाई हमलों में करीब नौ हजार लोग मारे गए। पर युद्ध के बाद अमेरिका ने जिस तरह जापान को अपने पैरों पर खड़े होने में मदद की उससे अमेरिकी लोगों के प्रति यहाँ नज़रिया बदला और उनके तौर तरीकों को यहाँ के लोगों ने तेजी से अपनाया।

पहचाना! कौन हैं ये जनाब?
अब इस फेरिस व्हील का ही उदाहरण लें। इस तरह के झूले की उत्पत्ति भले यूरोप में हुई पर फेरिस व्हील के रूप में ये सबसे पहले अमेरिका में आई। जिस तरह वहाँ के हर शहर में इसका चलन है उसी तरह जापान के हर शहर में मैंने ऐसे झूले देखे।
रंग बिरंगी फेरिस व्हील

स्टेशन से पन्द्रह मिनट पैदल चल कर हम बंदरगाह के उस बिंदु पर थे जहाँ से पूरे इलाके का सबसे शानदार नज़ारा मिलता है। यहाँ से दृश्य को आकर्षक बनाने में बड़ा हाथ है यहाँ के ओरियंटल होटल का। गणित के छात्र ज्यामिति का पैराबोला (Parabola) नहीं भूले होंगे। सफेद रंग की ये इमारत भी उसी आकार में बनाई गई है। 

मेरिकेन पार्क ओरियंटल होटल कोबे है ना खूबसूरत इमारत !
होटल के सामने ही जहाज की शक़्ल में एक  रेस्ट्राँ हैं और हाँ अगर आप सोच रहे हैं कि यहाँ रहना बहुत मँहगा होगा तो जापानी संदर्भ में ऐसा नहीं हैं। पीक सीजन में यहाँ के कमरे दस से पन्द्रह हजार रुपये में मिलते हैं। पर अभी जाएँगे तो सात आठ हजार ही लगेंगे।  इस होटल के बगल में एक और इमारत है जिसे कोबे शहर की पहचान माना जाता है। ये इमारत है यहाँ काा पोर्ट टॉवर।




कोबे बंदरगाह का खूबसूरत इलाका
हायपरबोला की शक्ल में बने इस टॉवर पर आप सुबह नौ से रात नौ बजे तक जा सकते हैं। 109 मीटर ऊँचे इस टॉवर की असली खूबसूरती रात के वक़्त  पता चलती है जब ये लाल पीली रोशनियों से नहा उठता है।  टॉवर के बगल में ही समुद्री जहाजों से संबंधित एक संग्रहालय भी है। संग्रहालय, पोर्ट टॉवर और होटल जब एक साथ प्रकाशमान होते हैं तो वो छटा देखते ही बनती है।


कोबे पोर्ट टॉवर

शाम को तो हमें चाइनाटाउन जाना था सो अँधेरा होने से पहले हम उधर की ओर निकल पड़े। जापान में वहाँ बने सामान इतने मँहगे होते  हैं कि खरीददारी के लिए आपको चाइनाटाउन जैसी जगहों की शरण लेनी पड़ती है।

कोबे का चाइना टाउन
क्या आपको पता है कि हँसता हुआ बुद्ध या प्रचलित भाषा में Laughing Buddha वास्तव में बुद्ध की प्रतिमा नहीं बल्कि दसवी शताब्दी में पैदा हुए चीनी संन्यासी की मूर्ति है जिसे आने वाले बुद्ध (Future Buddha) का प्रतिरूप माना गया। ये चीनी साधु दिखने में मोटा, हँसमुख व प्यारा था। यही वज़ह है कि Laughing Buddha की हर प्रतिमा में एक स्थूल साधु चोंगे में प्रार्थना के मुनके लटकाए दिखता है। उसकी हँसती हुइ भंगिमा आप को भी मुस्कुराने पर मजबूर करती है। चीन व जापान में ऐसी मान्यता है कि इनकी प्रतिमाएँ भग्य और वैभव दोनों लाने में ही सहायक होती हैं। कोबे की एक सड़क पर जब इनके दर्शन हुए तो इनके साथ तसवीर खिंचवाने का मौका गँवाना मैं नहीं चाहता था। नतीजा आपके सामने है
Laughing Buddha हँसता हुआ बुद्ध
आज से लगभग दो दशक पूर्व कोबे में भयंकर भूकंप आया था जिसकी वज़ह से बंदरगाह के आस पास के इलाके को काफी क्षति उठानी पड़ी थी। हर साल दिसंबर में कोबे शहर भूकंप की उस त्रासदी से उबर पाने की खुशी मनाता है। कोबे से हमें अगली सुबह विदा लेनी थी। ढलती शाम में लिया गया कोबे शहर का ये आख़िरी चित्र था। वैसे ये बता दूँ कि कोबे शहर के बाहर गर्म पानी के मशहूर झरने भी हैं पर वहाँ तक जाना समयाभाव की वज़ह से मेरे लिए संभव नहीं हो पाया।

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15 टिप्‍पणियां:

  1. सर ये बताएं, मुझे भी बैकपैकर बनना है क्या करना होगा और इतना ट्रेवल के लिए मनी अरेंजमेंट कैसे होता है। कृपया जवाब जरूर दें।

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    1. पहले तो अच्छी सी नौकरी ढूँढिए पैसे कमाइए पर घर, मकान, गाड़ी से ज्यादा घुमक्कड़ी को प्राथमिकता दीजिए और फिर छुट्टियों में निकल पड़िए एक नई मंजिल की ओर।
      घूमने के खर्चे कम करने हो तो होटल की जगह डारमेट्री, हॉस्टल में रहें। सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें। अनावश्यक खरीददारी से बचें।

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  2. I hardly knew anything about the harbor city Kobe, except a few mentions here and there. Loved this virtual trip with you. The parabolic shaped Oriental hotel and the lovely colors around the port definitely got my eye. And it was interesting to read how the Japanese have also come to adopt American culture.

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    1. Thanks Manjulika for your detailed coment. Hope u are enjoying ur trip in South Africa !

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  3. कुछ वर्ष पहले मेरे भी कोबे के कई चक्कर लगे। वहाँ कावासाकी का एक बड़ा रेल कारखाना है। कावासाकी का एक म्यूज़ियम भी है शहर में। कोबे का बीफ दुनिया भर में मशहूर है। विश्व प्रसिद्ध बास्केटबाल खिलाड़ी कोबे ब्रायंट का नाम भी इसी शहर/बीफ के आधार पर रखा गया है।

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    1. स्टील व मशीनरी में कोबे की महारत जगज़ाहिर है। कोबे बीफ़ की बात भी वहाँ सुनी पर शाकाहारियों के मतलब की तो कोबे की ये खूबी थी नहीं इसलिए वहाँ ये एकस्प्लोर भी नहीं किया। :)

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  4. I have spent two very wonderful and glorious years in Kobe. This post brought those memories back.

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    1. कहाँ दो दिन और कहाँ दो साल ! तब तो आपको इस इलाके के चप्पे चप्पे की जानकारी होगी । Share the link if you have written on those lovely memories of the city. Will love to read that !

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    2. Unfortunately not on my blog ..but I will share the link of the guest post I did http://www.sakshinanda.com/2014/03/guest-post-best-days-of-my-life-by.html

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    3. पढ़ी मैंने वो गेस्ट पोस्ट। जापान में रहते हुए मैंने भी मौसम के साथ प्रकृति के इन बदलते रंगो के बारे में पढ़ा था। मैं उन्हें देख तो नहीं सका पर चित्रों के देख महसूस किया जा सकता है कि वहाँ कितनी खूबसूरती बिखरी पड़ी है।

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  5. शाकाहारी लोगो को तो विदेश मे खाने पीने की दिक्कत होती होगी। विशेष कर भारतीयों को।

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    1. हाँ बिल्कुल होती है इस दिक्कत के बारे में मैंने कभी लिखा था यहाँ

      जापान और शाकाहार : आइए इक नज़र डालें जापानी शाकाहारी थाली पर (Japan and Vegetarianism)
      http://www.travelwithmanish.com/2013/07/japan-and-vegetarianism_23.html

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  6. सहरानीय पोस्ट , बस इसी तरह लेखन जारी रखिये। आप जैसे हिंदी ब्लॉगरस के वजह से यात्रा का वृत्तांत सिर्फ़ हिंदी जानने वाले लोगो तक पहुंच पा रहा है। और आपके ब्लॉग ने मुझ जैसे अनेक लोगों को हिंदी में ब्लॉग लिखने के लिए प्रेरित किया है।

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