रविवार, 20 नवंबर 2016

यादें यूरोप की : कैसा दिखता है आकाश से लंदन? Aerial View , London

जब यूरोप का मैं कार्यक्रम बना रहा था तो लंदन मेरी सूची में ऊपर नहीं था। ऐसा नहीं कि हमारे अतीत से इतनी नज़दीकी से जुड़े इस शहर से मेरा कोई बैर था पर मन में ये बात अवश्य थी कि लंदन तो बाद में भी कभी जाया जा सकता है। क्यूँ  ना इसकी जगह कहीं और अपने रहने का ठिकाना बढ़ा दें? पर अंततः ये शहर हमारे कार्यक्रम में  शामिल हो गया और यहाँ बिताये दो दिनों में  इतना तो जरूर समझ आया कि बतौर एक देश ब्रिटेन काफी अलग है अन्य यूरोपीय देशों से।

इतिहास के पन्नों को कुछ देर के लिए भूल जाएँ तो इंग्लैंड से मेरा पहला लगाव क्रिकेट व रेडियो की वज़ह से हुआ था। बचपन में जब घर में टीवी नहीं हुआ करता था तो सारा परिवार रेडियो के सामने बीबीसी  की सांयकालीन हिंदी सेवा के कार्यक्रम जरूर सुना करता था। रेडियो कमेन्ट्री के उस दौर में क्रिकेट से भी खासी रुचि हो गयी थी। 
और कर लिया हमारे विमान ने इंग्लैंड में प्रवेश !
टाइम्स आफ इंडिया के खेल पृष्ठ को पढ़ पढ़ कर सारी इंग्लिश काउंटी के नाम मुजबानी याद हो गए थे। मसलन हैम्पशायर, डर्बीशायर, लंकाशायर, वारविकशायर, एसेक्स, केन्ट, सरी, समरसेट, मिडिलसेक्स और ना जाने क्या क्या! अस्सी के दशक में विजय अमृतराज और रमेश कृष्णन जैसे खिलाड़ियों के विंबलडन में   अच्छे प्रदर्शन वजह से ये प्रतियोगिता देखना एक सालाना शगल बन गया। विबंलडन के माध्यम से लंदन की छवियाँ देखते रहे। फिर नब्बे के आसपास बूला चौधरी ने इंग्लिश चैनल को तैर के पार कर सनसनी फैला दी थी। फ्रांस से समुद्र में कुलांचे भरते इंग्लैंड पहुँच जाना तब एक भारतीय के लिए बड़ी उपलब्धि थी।

अपनी पुरानी यादों को सँजोते हुए मैं टकटकी लगाए विमान की खिड़की से नीचे के खेत खलिहानों को देख रहा था। हमारा विमान अस्ट्रिया के बाद जर्मनी और फ्रांस के ऊपर से उड़ते हुए लंदन की ओर जा रहा था। मैं तो तैयार था कि जहाँ समुद्र की अथाह जलराशि दिखनी शुरु हुई समझो कि इंग्लैंड की सीमा करीब ही है। जैसे ही इंग्लैंड के तटीय इलाके  में हमारे विमान ने प्रवेश किया हरे भरे खेतों के बीच सर्पीली चाल से चलती हुई कई नदियाँ पतली पतली धाराओं में विभक्त हो सागर में मिलती दिखाई देने लगीं ।

बलखाती थेम्स नदी
पर लंदन का शहर तो थेम्स नदी के तट पर बसा है। आकाश से ये नदी कैसी  दिखती हैं ये जानने की उत्सुकता थी और ये मुलाकात कुछ मिनटों में दक्षिण पूर्वी लंदन के ग्रीनविच इलाके में ही हो गई। थेम्स इंग्लैंड में बहने वाली सबसे लंबी नदी है। लंदन के बीचो बीच से गुजरती ये नदी उत्तरी सागर में मिलती है। लंदन में बहती ये दुबली पतली नदी अपने सफ़र के दौरान कई घुमाव लेती है। ऊपर  चित्र के बाँयें कोने में गुम्बदनुमा संरचना दिख रही है वो दरअसल यहाँ की एक मशहूर इमारत है जिसका नाम है ओ टू एरीना (O2 Arena)। इसका इस्तेमाल खेलों के आलावा संगीत से जुड़े बड़े आयोजनों के लिए होता रहा है।

विंबलडन, लंदन
थेम्स नदी तो कुछ ही क्षणों में आँखों से ओझल हो गयी। लंदन का एक इलाका और था जिसे देखने की तमन्ना मैंने मन में बना रखी थी। वहाँ मैं जा तो नहीं सका पर आकाश से उसे निहारने का अवसर भगवन ने अनायास ही दे दिया। ये इलाका था विंबलडन पार्क का। विंबलडन के सेंटर कोर्ट में  हो रहे मुकाबलों के दौरान कई बार आपने देखा होगा कि विमान की आवाज़ की वजह से खिलाड़ी  अपनी सर्विस रोक दिया करते थे। पर मुझे ये बात दिमाग में पहले नहीं आई थी कि हीथ्रू हवाई अड्डे जाते हुए हमारा विमान भी विंबलडन के इलाके से गुज़रेगा। विंबलडन का इलाका पार्क के एथलेटिक्स ट्रेक से दिखना शुरु हुआ, फिर आई झील और गोल्फ कोर्स। गोल्फ कोर्स से सटा हुआ यहाँ का सेंटर कोर्ट है और जो गोलाकार स्टेडियम आप देख रहे हैं वो कोर्ट नंबर एक है। बाकी के कोर्ट सेंटर कोर्ट से आगे की तरफ़ हैं।
रिचमंड पार्क गोल्फ कोर्स
विबलडन से हीथ्रो के बीच रिचमंड का शाही पार्क दिखाई पड़ा। शाही इसलिए कि सत्रहवीं शताब्दी में यहाँ के राजा चार्ल्स प्रथम ने इसके बगल में अपना डेरा जमाया था । वो इस हरे भरे इलाके का प्रयोग हिरणों के शिकार के लिए किया करते थे। तब आम जनता को इसमें घूमने की आजादी नहीं थी।  बाद में जब ये सरकार के नियंत्रण में आया तो ये बंदिश खत्म हुई। अब गाड़ी वालों को दिन में और पैदल चलने वालों व साइकिल सवारों के लिए ये हमेशा खुला रहता है।

इस पार्क को लंदन के सबसे बड़े पार्क होने का गौरव प्राप्त है और ये लगभग हजार हेक्टेयर से थोड़े कम क्षेत्र में फैला हुआ है। पार्क में ही एक खूबसूरत गोल्फ कोर्स भी है।


दक्षिण पूर्व लंदन से पश्चिमी लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे तक बहुमंजिली इमारते कम दिखीं। जितने भी रिहाइशी इलाके दिखे उनमें ज्यादातर मकान दुमंजिले तिकोनी छतों के साथ थे। इटली या डेनमार्क के कुछ शहरों की तरह रंगों की तड़क भड़क लंदन के इन इलाकों में दिखाई नहीं दी। सफ़ेद व  हल्के  भूरे रंग में रेंज इन मकानों का स्वरूप ब्रिटिश संस्कृति में सौम्यता के महत्त्व को दर्शाता है।


भरी दुपहरी में हम लंदन के हीथ्रो हवाई अड्डे पे दाखिल हो चुके थे।  बाहर मौसम खुशगवार था। ना ज्यादा ठंड ना गर्मी। सामान के साथ बाहर निकल कर सबसे पहले हीथ्रो के अहाते में फोटो की औपचारिकताएँ पूरी की गयीं।

हीथ्रो का हवाई अड्डा

हीथ्रो हवाई अड्डे का मुख्य द्वार
पहली समस्या अपने होटल तक पहुँचने की थीं। बुकिंग की उलटपुलट की वज़ह से थॉमस कुक ने हमें अपने समूह से अलग कर दिया था। एयरपोर्ट से अपने होटल तक पहुँचने का इंतज़ाम हमें ख़ुद करना था। भाषा की समस्या थी नहीं तो पूछने  पर पता चला कि बस या टैक्सी के दो विकल्प हमारे पास हैं। बस के हिसाब से हमारा  सामान ज्यादा था सो दस पाउंड में एक एक टैक्सी की गई। दिखने में  हट्टे कट्टे अंग्रेज ड्राइवर बातों में बड़े व्यवहार कुशल निकले। कुछ ही क्षणों में  तीन परिवारों के सामानों को उन्होंने दो टैक्सियों में बाँटा और हमारा काफिला अपने होटल की ओर चल पड़ा।

हमारा होटल प्रीमियर इन हीथ्रो हवाई अड्डे से ज्यादा दूर नहीं था। प्रीमियर इन ब्रिटेन के बजट होटल की सबसे बड़ी श्रंखला है। ब्रिटेन में इस समूह के सात सौ होटल हैं। होटल के कमरे ज्यादे बड़े तो नहीं पर साफ़ सुथरे एवं आरामदेह थे। इतनी लंबी यात्रा के बाद कमरे में पड़े लिहाफ को देखते ही सफ़र की थकान फिर उभर आई। पर यूरोप की धरती पर उतरने का उत्साह इतना था कि नींद नहीं आई और मैं चल पड़ा अगल बगल के इलाकों में चहलकदमी करने।

लंदन का हमारा ठिकाना
थोड़ी देर बाद हमारे एक परिचित वहाँ आए और उन्होंने लंदन के बाहरी इलाकों की सैर करने का प्रस्ताव रखा। घंटे भर उनकी गाड़ी लंदन के शांत इलाकों से गुजरती रही। पर बाहर के दृश्यों से ज्यादा उनकी बातें दिलचस्प लगने लगीं। उन्होंने बताया कि आजादी के बाद यहाँ भारत से आने वाले लोगों  संख्या बढ़ी। उस वक़्त यहाँ आने वाले लोगों में  पंजाबियों की संख्या अच्छी खासी थी। इन लोगों ने हीथ्रो के आसपास अपना अड्डा जमाया। हीथ्रो में आज भी काफी संख्या में भारतीय काम करते हैं। अपने उद्यम और मेहनत से आज इस इलाके की बहुतेरी संपत्तियों के वे मालिक बन बैठे हैं।

हीथ्रो के पास का रिहाइशी इलाका जहाँ भारतीय आज काफी संख्या में है
शाम की इस सैर के बाद पेट में चूहे दौड़ रहे थे। रात में जब हम इस भारतीय रेस्ट्राँ में पहुँचे तो जान में जान आई।


होटल में सुबह का नाश्ता शानदार था। तरह तरह के ब्रेड, दूध,फल, जूस, अंडा,चाय कॉफी, केक पेस्ट्री से टेबुल भरी पड़ी थी। यूरोप यात्रा में लंदन जैसा स्वादिष्ट और विविधता से भरपूर ब्रेकफॉस्ट हमें नहीं मिला।



सुबह तक इस यात्रा में भारत के अन्य हिस्सों से आए लोग भी मिले। अगले दो हफ़्तों के लिए ये सभी लोग हमारी टूर बस के हमसफ़र होने वाले थे। कैसा रहा हमारा लंदन में पहले दिन का अनुभव? वो कौन सी मुसीबत थी जिससे हमारा समूह पहले ही दिन से दो चार होने वाला था? जानिएगा इस श्रंखला की अगली किश्त में ।

पूरे समूह के साथ बस पर मैं
 यूरोप यात्रा में अब तक


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19 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर और उत्सुकता जगाता लेख

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    1. धन्यवाद !कोशिश रहेगी कि आपकी उत्सुकता बरक़रार रहे।

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  2. यूरोप जा कर लंदन जाना तो जरुरी ही हुआ

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    1. खासकर तब जब बार बार जाना नसीब में ना हो।

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  3. The London is looking awesome in sky, thank you for sharing the great blogs and images, well done.

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  4. यात्रा जानदारऔर शानदार है।

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  5. मज़ा आ गया. हम अभी तक लन्दन की जमीं पर नहीं उतरे...जब कभी विमान से उतरेंगे आपका ये लेख जरूर याद आएगा. बेहतरीन कलमकारी !

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    1. जानकर खुशी हुई कि आपको ये वृत्तांत पसंद आया..आशा है आपके लिए ये मौका शीघ्र आए

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  6. हमेशा की तरह उत्सुकता जागता सुंदर लेख !

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  7. For me England was Lord's cricket ground until eighties and all it produced was chocolate as I used to receive a chocolate box on Xmas from a relative studying there. Small minds, small pleasures

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    1. आप खुशनसीब थीं कि आपकी पहुँच छोटौ उम्र में ही ब्रिटिश चॉकलेट तक हो गई थी। दस बरस तक मेरा तो यही सपना था कि काश एक परचून की दुकान अपनी भी हो जिस में कैडबरी के चॉकलेट बेच सकूँ और जब मन चाहे खा भी लूँ।

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  8. बहुत ही शानदार ब्लॉग है मनीष जी
    आम आदमी की तरह विवरण लिखा हुआ है
    अप्रतिम

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