जिस तरह हमारे शहर कंक्रीट के जंगलों में तब्दील होते जा रहे हैं वैसे वैसे हमारा जुड़ाव अपने आस पास की प्रकृति से कम होता जा रहा है। अगर आपका घर किसी बहुमंजिली इमारत का हिस्सा है तो फिर आपके लिए हरियाली घर में लगाए पौधों से ही आ सकती है। महानगरों में ये समस्या काफी बड़ी है पर छोटे शहर, कस्बे और यहाँ तक की गाँव भी घटती हरियाली से अछूते नहीं रहे हैं। और जब पेड़ ही नहीं रहेंगे तो पक्षी दिखेंगे कैसे?
यही वज़ह है कि आज की पीढ़ी के ज्यादातर लोग कौए, कबूतर और अपनी पुरानी गौरैया के आलावा शायद ही दस से ज्यादा पक्षियों के नाम गिना सकें। लेकिन जिन लोगों के घरों के पास थोड़ी बहुत हरियाली है भी वे भी इस बात की शिकायत करते हैं कि हमें तो बिल्कुल पक्षी दिखाई नहीं देते और अगर दिखते हैं तो पहचान ही नहीं पाते। आज का मेरे ये आलेख ऐसे ही लोगों के लिए है जिसमें मैंने तीन दर्जन उन पक्षियों से आपको मिलवाना चाहा है जिसे आप अपनी बॉलकोनी या छत से बैठे बैठे ही देख सकते हैं। मैंने जान बूझ कर पानी के आस पास रहने वाले पक्षियों को इस सूची में शामिल नहीं किया है हालांकि इनमें से कुछ उड़ते हुए घर से भी गाहे बगाहे दिख ही जाते हैं।
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नर व मादा कोयल |
तो सबसे पहले बात कोयल की जिसके गाने के चर्चे आपने बचपन से सुन रखे हैं। पक्षियों के संसार से भले परिचित हों ना हों पर कोयल का नाम तो सुना ही होगा। हाँ इसकी नर और मादा में क्या अंतर है ये सब लोग तो नहीं ही जानते। ज्यादातर लोग ये जानते हैं कि कोयल काली होती है और बहुत सुरीला गाती है।

बाकी कौए के घोंसले में अंडे डालने का काम तो नर और मादा मिल कर करते हैं। नर ध्यान हटाता है और तभी मादा चुपके से अपना अंडा डाल कर फुर्र हो जाती है। संदेह ना हो इसलिए कौए का एक अंडा हटाने से भी नहीं चूकती।
महोख / भारद्वाज |
कोयल पपीहे की बिरादरी में एक और लंबा चौड़ा सा पक्षी है जिसे हम सब अपने घरों के इर्द गिर्द अक्सर देखते हैं। अगर आपने इसे ना भी देखा हो तो इसकी पुक पुक पुक करती आवाज़ जरूर सुनी होगी। कोयल की तरह ही इसकी आदत पेड़ों के अंदर छुप कर बैठने की है। वैसे अगर इसे अच्छी तरह देखना हो तो सूर्योदय के तुरंत बाद चौकस रहिए ये जनाब धूप सेंकने तभी किसी पेड़ की फुनगी पर अकेले या अपने जोड़ीदार के साथ विराजमान मिलेंगे।
भूरे नारंगी मिश्रित पीठ और काले पंखों वाला ये पक्षी ऊँची उड़ान भरने में कुशल नहीं है। कोयल पपीहे से उलट आप इसे हमेशा ज़मीन पर उतरते देख सकते हैं। कीड़े मकोड़ों के आलावा पक्षियों के अंडों पर भी इसकी नज़र रहती है। अब इसने भारद्वाज ॠषि का नाम पाया है तो कुछ अच्छे लक्षण भी तो होने चाहिए इसमें। मुझे तो एक अच्छी बात ये दिखी कि अपनी प्रजाति के अन्य बदनाम सदस्यों के विपरीत महोख अपने बच्चों का पालन पोषण ख़ुद करते हैं।
कबूतर, कौए या गौरैया के बाद अगर सबसे ज्यादा आपका परिचय किसी से होगा तो वो है तोता या मैना। वैसे एक डाल पर तोता बैठे एक डाल पर मैना वाला गाना जिसने भी सुना है वो इन्हें भूल कैसे सकता है? भारत में तोते की ढेर सारी प्रजातियाँ मौज़ूद हैंऔर आपको कौन सा तोता ज्यादा दिखता है ये निर्भर करता है कि आप भारत के किस भू भाग में रहते हैं? आम तौर पर जो तोता पूरे भारतवर्ष में दिखता है वो है लाल कंठी तोता जिसे प्यार से हम मिट्ठू के नाम से भी बुलाते हैं। । ऐसा नाम इसके गले के पास की लाल गुलाबी धारी की वजह से है जो काली और नीली धारी से घिरी होती है। मादा में ऐसी धारी नहीं होती। पहाड़ी तोता इससे आकार में बड़ा होता है और उसके उदर के पास एक लाल निशान होता है।
लाल कंठी तोता
आपके घर के आस पास तोता भले एक या दो किस्म का हो पर मैना की आपको अनेक किस्में दिख जाएँगी। देशी मैना (Common Myna) व अबलक मैना (Asian Pied Starling) सबसे ज्यादा दिखती हैं। उसके बाद नंबर आता है भूरे ललाट और काली चोटी वाली ब्राह्मणी (Brahmini Myna) व स्याह रंग की गंगा मैना (Ganga Myna) का। धूसर सिर मैना (Grey Headed Myna) मेरे मोहल्ले में सिर्फ एक बार आई और गुलाबी मैना (Rosy Starling) तो प्रवासी है। दिखेगी तो पूरे दल बल के साथ पर जाड़ों के मौसम में।
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अबलक, देशी, गंगा, ब्राह्मणी, धूसर सिर और गुलाबी मैना |
बुलबुल की गायिकी से भी तो आप परिचित होंगे ही। मैं तो डैस कोस सिंगल बुलबुल मास्टर वाले खेल से ही बचपन में इनके नाम से परिचित हो गया था पर इन्हें ढंग से पहचानना काफी दिनों बाद ही आया। पूँछ के नीचे लाल और काले सिर वाली वाली गुलदुम बुलबुल (Red Vented Bulbul) और कानों के पास खूबसूरत लाल निशान से सिपाही बुलबुल (Red Whiskered Bulbul) दूर से ही पहचान ली जाती हैं। पेड़ों की ऊपरी शाखा पर बैठना इन्हें भाता है। पहाड़ों में हिमालयी बुलबुल व काली बुलबुल और उत्तर भारत के मैदानों में सफेद गाल वाली बुलबुल भी आपकों नज़र आएँगी।
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सिपाही और गुलदुम बुलबुल |
कोतवाल (Drongo) को कौन नहीं जानता ? घर के आस पास देखे जाने वाले इस पक्षी के बहादुरी के नमूने आपने देखे ही होंगे। जैसे ही किसी शिकारी पक्षी को आस पास मँडराता देखता है उसको खदेड़ने के लिए पूरा ज़ोर लगा देता है। अपने से दुगनी तिगुनी चील को भी मैंने इससे बिना पंगा लिए अपनी राह बदलते देखा है। कई पक्षी इसकी इसी बहादुरी के कारण उसी पेड़ पर अपना आशियाना बनाते हैं जहाँ इसका घर होता है। अपनी ये आक्रामकता ये छोटे पक्षियों के लिए भी दिखाता रहता है। शाम को जब मैं कार्यालय से आता हूँ तो सबसे बाद तक जिस पक्षी का गान सुनाई देता है वो कोतवाल ही है। अपनी दोनों ओर घुमाव लेती पूँछ की वज़ह से ये भुजंग नाम से भी जाना जाता है।
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कोतवाल / भुजंग |
अपने मोहल्ले में आम पक्षियों से थोड़ा हटकर पहला पक्षी जो मैंने देखा था वो सुनहरा पीलक (Golden Oriole) ही था। अक्सर मैंने इसे पेड़ में थोड़ा छिपकर बैठे ही देखा है। मध्य एशिया से भारतीय उपमहाद्वीप तक पाया जाने वाला ये पक्षी जब अपने पीले काले रंगों के पंखों से उड़ान भरता है तो इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है। हो सकता है कि आपके यहाँ इसका सहोदर काले सिर वाले पीलक ज्यादा संख्या में हो। वहीं पहाड़ों में कत्थई पीलक भी दिखाई देता है।
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सुनहरा पीलक |
रंगों की दुनिया किसे नहीं भाती? प्रकृति ने जितने रंगों का जोड़ बनाया है उसकी हम कल्पना ही नहीं कर सकते। दुनिया में एक से एक रंग बिरंगे पक्षी हैं पर उनको देख पाना इतना आसान नहीं है। उसके लिए आपको जंगलों की खाक छाननी होगी और उतना सब करने पर भी ये गारंटी नहीं कि जनाब दर्शन देंगे या नहीं।
पर हमारा ये छोटा बसंता (Coppersmith Barbet) ऐसा नहीं है। ये हरे भरे बाग बगीचों में अक्सर आ जाकर अपनी खूबसूरती से सबको अचंभित करता रहता है। ठठेरे की सी आवाज़ ऐसी मानो चक्की चल रही हो । अगर आपके सामने पीठ कर के बैठा हो तो कई बार आपको लगेगा ही नहीं कि पत्तों के बीच में कोई पक्षी है।
छोटा बसंता |
इसके भी कई खूबसूरत बड़े भ्राता हैं जो देश के अलग अलग हिस्सों में दिखाई देते हैं।
हरे रंग के पक्षियों में एक नाम आता है पतरंगे का। हमारे मोहल्ले में ये अक्सर जाड़ों में दिखाई देते हैं। जिस डाल से उड़ेंगे वहाँ लौट कर आना इनकी फितरत में शामिल है। हवा में उड़ती ड्रैगन फ्लाई को धर दबोचना इनके लिए बाँए हाथ का खेल है।
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पतरंगा Green BeeEater |
नर दहियर बड़ा ही सामान्य पक्षी है। लगभग हर रोज़ अपनी उपस्थिति दर्ज कराया करता है पर जून के उस आख़िरी हफ्ते की बात कुछ खास थी। ये अपनी नई नवेली मिसेज को साथ लेकर इधर उधर आशियाने की तलाश में घुमा रहे थे।
अब नर दहियर भले ही आराम से आपको दिख जाएँ पर इनकी स्याह गले और वक्ष वाली मादा थोड़ी पर्दानशीं हैं। दिखती हैं पर कम कम।बांग्लादेश का ये राष्ट्रीय पक्षी वाचाल किस्म का है। एक बार मूड में आ जाए तो तरह तरह की बोलियों में आपको घंटे भर अपना गायन सुनाकर ही दम लेगा।
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दहियर /काली सुई |
महालत (Rufous Treepie) यूँ तो काक परिवार का सदस्य है पर भगवान ने इस की लहराती पूँछ के साथ इसे नारंगी, सफेद और काले रंग की जो मिश्रित छटा वारी है उसकी वजह से इसे कोई कौए की तरह अनाकर्षक होने का तमगा नहीं दे सकता है। हाँ, बोली के मामले में ये जब ये शोर करने पर उतर जाता है तो मत पूछिए कान बंद करने को जी करने लगता है।
हालांकि इसकी एक बोली और है जिसे खींच खाँच कर आप मधुर कह सकते हैं। सूर्यास्त के समय ही इन्हें अपना राग अलापने की तलब मचती है। अक्सर आप इन्हें शाम के धुँधलके में कोतवालों के साथ संगत मिलाते हुए सुन सकते हैं। फल फूल से लेकर छोटे मोटे जीवों को अपने भोजन का ग्रास बनाने वाले महालत पर दूसरे पक्षियों के अंडों को चट करने के भी इल्जाम लगते रहे हैं।
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महालत / टकाचोर |
इस चिड़िया को पीला रामगंगरा यानी इंडियन येलो टिट (Indian Yellow Tit) के नाम से जाना जाता है। इसकी चोंच से आँखों के बीच का हिस्सा जिसे अंग्रेजी में lore कहते हैं काला होता है इसीलिए इसे Indian Black Lored Tit के नाम से भी बुलाते हैं। इसके परिवार के दो और रंग रूप में मिलते जुलते सदस्य है एक पीले गालों वाला रामगंगरा (Yellow Cheeked Tit ) और दूसरा हिमालय में रहने वाला रामगंगरा (Himalayan Black Lored Tit)।
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पीला रामगंगरा |
हिंदी में पिद्दी अत्यंत छोटे या तुच्छ प्राणियों के लिए प्रयोग किया जाने वाला शब्द है वो मुहावरा तो आपने सुना ही होगा..क्या पिद्दी क्या पिद्दी का शोरबा जिसका अभिप्राय अर्थहीन बातों के आधार पर आगे बात बढ़ाने से है। ज़ाहिर है पक्षी संसार के इस छोटे पक्षी का नाम अपने रंग और आकार के आधार पर हरी पिद्दी (Greenish Warbler) रख दिया गया हो। गुजराती से आया एक और नाम फुटकी भी हिंदी में अपनाया गया है तो इसे हरी फुटकी भी कह सकते हैं।
वैसे हिंदी में इसी से मिलते जुलते Common ChiffChaff को भी पिद्दी या बादामी फुटकी से बुलाते हैं। हरी पिद्दी का थोड़ा और चटक प्रतिरूप दक्षिण पश्चिम भारत के तटीय इलाके में मिलता है जिसे अंग्रेजी में Green Warbler के नाम से जानते हैं। Warbler की अनेक प्रजातियों को एक दूसरे से अलग कर पाने में विशेषज्ञों के भी पसीने छूट जाते हैं।
इस पक्षी को पहचानने में एक दिक्कत तो ये आती है कि ये सारे पक्षी आकार में छोटे और रंग रूप में हल्के काही और पीले का मिश्रण होते हैं। अब शरीर भले अँगुली भर का हो, इनकी चहचहाहट इतनी जबरदस्त होती है कि आप चाह कर भी इनकी आवाज़ से पीछा नहीं छुड़ा सकते। हरे हरे पत्तों के बीच इन्हें ढूँढ पाना और फिर इनकी तस्वीर खींचना टेढ़ी खीर होती है। इनके कदम एक फुनगी पर दो तीन सेकेंड से ज्यादा नहीं रुकते।
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हरी पिद्दी |
मुझे ये छोटी सी चिड़िया बड़ी प्यारी लगती है। अक्सर मैंने इसे समूह में ही उड़ते देखा है। अन्य छोटी चिड़ियों की तरह ही ज्यादा देर एक जगह रहना इसकी फितरत में नहीं है। बबूना (Indian White Eye) के आलावा लोग इसे चश्मेवाला और श्वेतनयन के नाम से भी बुलाते हैं।
कबूतर से थोड़े छोटे आकार के इन पक्षियों का समूह फाख्ता, पंडूक या कपोतक (Dove) के नाम से जाना जाता है। गर्दन के पास के अलग अलग नमूनों से आप इनके बीच के अंतर को समझ सकते हैं। घरों के पास सबसे ज्यादा चितरोखा (Spotted Dove) और छोटा फाख्ता (Laughing Dove) नज़र आते हैं जबकि पहाड़ों में पाया जाने वाला फाख्ता घुघूति (Oriental Turtle Dove) के नाम से भी मशहूर है। गर्मी में भारत प्रवास करने एक और फाख्ता आता है जिसे गेरुई फाख्ता (Red Collered Dove) कहते हैं।
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चितरोखा, छोटा फाख्ता, गेरूई फाख्ता, पहाड़ी फाख्ता, |
अनाज और छोटे मोटे कीड़े खाने वाले इस छोटे से पक्षी को आम जन कई बार गौरैया समझ लेते हैं। वैसे मुनिया परिवार बेहद बड़ा है। इसके किसी ना किसी सदस्य से आपकी मुलाकात जरूर हुई होगी। इन्हें पहचानने का सबसे आसान तरीका इनकी छोटी मोटी चोंच की एक सी बनावट है मुनिया नामकरण अंग्रेजों को इतना पसंद आया कि उन्होंने इसे अंग्रेजी में भी अपना लिया है। श्वेतकंठी मुनिया (Indian Silverbill) और चित्तीदार मुनिया (Scaly Breasted Munia) घरों के आसपास सबसे ज्यादा दिखती हैं।
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चित्तीदार और श्वेत कंठ मुनिया |
दर्जिन पक्षी और स्याह फुटकी (Ashy Prinia) में एक समानता ये है कि ये दोनों द्रुत गति से अपनी बोली से पूरा वातावरण गुंजायमान कर देते हैं। पेड़ों पर तो कभी कभार पर झाड़ियों में अक्सर इनकी आवाजाही बनी रहती है। दर्जिन चिड़िया (Tailor Bird) तो पत्तों को अपनी सिलाई से जोड़कर घर बनाने के लिए विख्यात है ही।
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धूसर फुटकी और दर्जिन |
मनुष्यों में तो प्रजनन काल में सिर्फ स्त्रियों में शारीरिक परिवर्तन आते हैं, पर पक्षियों की दुनिया हमारे जैसी कहाँ? अब शकरखोरा को ही लीजिए जिसका अंग्रेजी में सामान्य नाम Sunbird है। उत्तर भारत में सबसे ज्यादा बैंगनी शकरखोरा यानी Purple Sunbird की प्रजाति पाई जाती है । मज़े की बात ये है कि यहाँ संतान पैदा होने के पहले मादा के बजाए नर ही के रूप में परिवर्तन होते हैं और इसी वक़्त ये अपने पूर्ण नीले बैंगनी स्वरूप में दृष्टिगोचर होता है।
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नर शकरखोरा (Purple Sunbird) |
घर के आस पास भूरे रंग के मिलते जुलते हुए पक्षियों में मादा रॉबिन (Indian Robin) और पत्थर चिड़ी (Rock Chat) प्रमुख हैं। रॉबिन को पत्थर चिड़ी से पहचानना हो तो उसके पूँछ के निचले हिस्से पर ध्यान दीजिए। अगर वो नारंगी है तो वो रॉबिन है अन्यथा पत्थर चिड़ी।
पक्षियों में सबसे ज्यादा सामाजिकता निभाने वाला पक्षी सतभाई या सतबहनी (Jungle Babbler) है जो अक्सर छः सात के झुंड में ज़मीन के इर्द गिर्द अड्डा जमाए बैठा रहता है।
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मादा काली चिड़ी, पत्थर चिड़ी और सतभाई |
तीन शिकारी पक्षी जिनके घर के आस पास आते ही बाकी पक्षी एक साथ चिल्ल पों मचाते हुए घोषणा कर देते हैं कि सावधान खतरा मँडरा रहा है। शिकरा इनमें सबसे खूबसूरत होता है और आकार में छोटा भी। चील के झपट्टे से तो आप सभी वाकिफ़ होंगे ही।
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कपासी चील, शिकरा, काली चील |
ये तो थी घर के आस पास आने वाले तीन दर्जन पक्षियों से आपकी मुलाकात। ऐसे ही अनेक और पक्षी हैं जो आपके शहर की भौगोलिक स्थिति के हिसाब से अपके घर आँगन और बगीचे में दिख सकते हैं। इन्हें इतने स्पष्ट रूप से देखने के लिए या तो आपके पास एक अच्छी दूरबीन होनी चाहिए या हाई ज़ूम वाला कैमरा। ऊपर जितनी भी तस्वीरें हैं सब की सब मैंने किसी जंगल में जाकर नहीं बल्कि घर बैठे ही खींची हैं। आशा है पक्षियों की दुनिया से आपकी ये मुलाकात आपको रुचिकर लगी होगी। अगर इस संबंध में आपका कोई प्रश्न हो तो जरूर पूछें। मुझे आपका संशय दूर करने में खुशी होगी।
मनीष जी मेरे लिए बिल्कुल अंजान विषय है ये....इतना समझता ही नहीं है पक्षियों के बारे में...लेकिन फीर भी आपकी पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा
ReplyDeleteजानकर खुशी हुई। :)
Deleteकाफी मेहनत करके सचित्र विवरण दिया है जो नये नये पक्षी प्रेमियों और बच्चों के लिए बहुत उपयोगी है। यह उन लोगों का भ्रम भी दूर कर देगा जो कहते हैं पक्षियों को देखने जंगल में कहां जाएं।
ReplyDeleteजी आपने बिल्कुल सही कहा घर के आस पास भी बहुत कुछ अनदेखा रह जाता है। जंगल के साथ साथ हमें अपने घर के आस पास की प्रकृति से जुड़ने और उनके संरक्षण की जरूरत है। पिछले दो महीने से सोच रहा था कि ऐसा कोई आलेख लिखूँ ताकि शुरुआती पक्षी प्रेमियों को नाम और पहचान के बारे में थोड़ी आसानी हो जाए। धीरे धीरे थोड़ा थोड़ा कर के कल जाकर ये काम पूरा हुआ।
Deleteवाह! बहुत ही उपयोगी है,उनके लिए जो हमेशा दिखने वाले पक्षी भी नहीं पहचान पाते।
ReplyDeleteबस ऐसे ही लोगों के लिए ये लेख लिखना जरूरी लगा।
Deleteवाह बहुत सुंदर, शानदार जानकारी
ReplyDeleteधन्यवाद आप की सराहना के लिए।
Deleteशानदार
ReplyDeleteधन्यवाद 😊
DeleteSunder sahj ore bahut sattik janakri ore photo's bhi utani hii sunder sadhuwad
ReplyDeleteइस तारीफ के लिए शुक्रिया। मेरी ये कोशिश सार्थक हुई 😊
Deleteबहुत अच्छे...लिखते तो आप अच्छा हैं ही..
ReplyDeleteधन्यवाद आपका 😊😊
DeleteVery Informative
ReplyDeleteThanks.
DeleteEk sath 36 pakshi dekhana ek durlabh yog hai.
ReplyDeleteजी, आज ये सुलभ हो गया 😊
DeleteNice knowledge of birds.
ReplyDeleteThanks !
Deleteरोचक जानकारी
ReplyDeleteधन्यवाद !
Deleteशानदार।
ReplyDeleteशुक्रिया !
Deleteबहुत सुंदर, जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है।
ReplyDeleteमजेदार, में इसे शेयर कर रहा हूँ ताकि औरो को भी इसे पढ़कर आनंद और ज्ञान की अनुभूति हो...��
पिछले दो महीने से एसा आलेख लिखने की सोच रहा था। थोड़ा थोड़ा करके इस हफ्ते कार्य पूर्ण हुआ। आपको रुचिकर लगा जानकर खुशी हुई। साझा करने का शुक्रिया। 😊😊
Deleteकहते है न कि ज्ञान बाटने से बढ़ता है, लेकिन अगर उसका प्रस्तुतीकरण इस तरह से हो तो सोने पे सुहागा...। इस तरह ही पोस्ट न सिर्फ ज्ञान, जानकारी बल्कि कई लोगो की सामान्य जिज्ञासा को भी संतृप्त करती है। कृपया भविष्य में भी ऐसे लेख लिखते रहिएगा।
DeleteJankari bhari aapki post..Iske liye shukriyaa sir.
ReplyDeleteआपको पसंद आई जानकर अच्छा लगा। :)
DeleteAchchha beeda uthaya aapne...dhanyavad
ReplyDeleteआप लोगों को ध्यान में रखकर ही उठाया है।😃
Deleteबहुत बढ़िया जानकारी, पेज भी खूबरसूरत लग रहा
ReplyDeleteशुक्रिया 🙂💐
Deleteबहुत बढ़िया ! बहुत उपयोगी जानकारी बड़ी सुंदरता से ������
ReplyDeleteसराहने के लिए हार्दिक आभार !
Deleteबहुत अच्छा और रोचक वर्णन किया। जानकारी हेतु धन्यवाद।
ReplyDeleteआलेख आपको रुचिकर लगा जानकर प्रसन्नता हुई।
DeleteI love....birds... specially...maah favorite one is...sparrow... and... you described it very beautyfully...and...me also got to know awesome knowledge about beautiful birds... from your post
ReplyDeleteNice to know that. These days nos. of our good old sparrow is dwindling.
DeleteThanks for your appreciation.
बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने।
ReplyDeleteशुक्रिया।
DeleteBohot hi umda.
ReplyDeleteधन्यवाद !
DeleteBharat desh ke baccho ke liye �� bird jankari hai thanks for your help.
ReplyDeleteYou are always welcome.
DeleteThank You for posting these beautiful images of the Birds.Very Beautiful. Very Beautiful. Very Beautiful. Very Beautiful. Very Beautiful.
ReplyDeleteThank you Sir for your appreciation😊
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।धन्यवाद।
ReplyDeleteखूबसूरत धरा को स्वार्थी मानव ने डस्ट बीन बनाकर सीमेंट कंक्रीट के जंगल खडे कर दिए हैं।अन्य प्राणियों के अस्तित्व के प्रति रवैया हमेशा उदासीन रहा है।परिणामस्वरूप कई प्रजातियां या तो लुप्त हो गई हैं या विलुप्ति की कगार पर हैं।
मानव के प्रादुर्भाव के पूर्व ये धरा निश्चित ही स्वर्ग से भी सुंदर रही होगी।
सही कह रहे हैं। मानव ने प्रकृति का इतना ज्यादा दोहन कर लिया है कि उसकी नैसर्गिक सुंदरता टुकड़ों में सिमटी रह गयी है। विकास की हमारी अवधारणा में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
Deleteबहुत सुंदर पोस्ट।
ReplyDeleteधन्यवाद !
DeleteBeautiful information. Thanks for sharing.
ReplyDeleteHappy to note that you found it useful
Deleteबहुत सारे हिंदी नाम जाने। शुक्रिया
ReplyDeleteदूसरे सनबर्ड्स की फोटो नहीं दिखी। वे भी कॉमन हैं।
हर अंचल में शकरखोरे की अलग अलग प्रजातियां मौजूद हैं। हमारी तरफ जामुनी शकरखोरा ही ज्यादा दिखता है घरों के आस पास जबकि मध्य व पश्चिम भारत में Purple Rumped Sunbird और Crimson backed Sunbird (Western Ghats) में प्रचुरता से दिखते हैं।
Deleteजानकारी भरी बढ़िया पोस्ट ।
ReplyDeleteधन्यवाद 🙂
Deleteबढ़िया जानकारी.
ReplyDeleteधन्यवाद.
Deleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद ।
DeleteVery informative.
ReplyDeleteThanks Uday jee !
Deleteअत्यन्त रोचक व उपयोगी जानकारी मनीष जी । मेरी पक्षियों के नामों की जानकारी आपसे जुड़ने के बाद बढ़ी है। धन्यवाद इसे साझा करने के लिये।
ReplyDeleteआलेख आपको रुचिकर व उपयोगी लगा जानकर खुशी हुई। 😊
Deleteआपका आलेख बहुत ही उपयोगी है।कुछ सामान गुण वाली चिड़ियाओं को एक फ्रेम में रखने से उनके अंतर को समझना आसान हो गया। जैसे विभिन्न मैनाएँ ,कालचिड़ी- पत्थर चिट्टा, दरजिन - फुटकी आदि आदि।
ReplyDeleteयदि पक्षी को वास्तव में देखा नहीं हो तो केवल किताब
पढ़कर सही जानकारी नहीं मिल पाती है। कुछ जिज्ञासाएँ होती हैं जिनका समाधान कोई गुरु ही कर सकता है ।
भारतीय पक्षी से जुड़कर और आप और अन्य पक्षी प्रेमियों के आलेख पढ़ कर मुझे काफी जानकारी मिली है।मैं अब पक्षियों को देखने के साथ साथ उनकी आदतों को ढूंढने की भी कोशिश करता हूं।जिस दिन कोई नई बात पता चलती है तो आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता होती है। कुछ बातें आपसे साझा कर रहा हूं।
1) पथर चिट्टा जल्दी उठने वाली चिड़िया है यह 4 -
5 बजे की बीच ही उठ जाती है और मधुर आवाज में गति है। यह अन्य चिड़ियाओं से दूरी बनाकर रखती है।नाम के अनुरूप पथरचिट्टा का घोंसला छोटे छोटे पत्थरों / कंकडों पर बनाया जाता है। पत्थर चिटा जिसका एक नाम साँवाँ भी है पत्थरो का आधार बनाकर उसके ऊपर आधे कप नुमा घोंसला घास /तिनकों /हल्के परों से बनाती है।
मेरे घर की छत पर बने खुले कमरे के रोशनदान में पत्थर चिड़ा ने ऐसे ही नीड बनाया था। यह बड़ी सनकी चिड़िया है ।यदि इसे मालूम पड़ जाए कि इसका घोंसला देख लिया गया है तो यह घोंसला छोड़ देती है
2)अधिकतर चिड़ियाएं नमकीन बहुत पसंद करती है।शायद उन्हें प्रोटीन पसन्द हो।
3)देसी मैना जब उड़ान भर्ती है तो उसके कंठ से *उहाँ*
जैसी आवाज निकलती है जैसे जोड़ो के दर्द से पीड़ित व्यक्ति खड़े होते समय करता है।
4) दरजिन ,फुदकी शकरखोर को केले के बड़े पत्तों पर पड़ी पानी की बूदों में लिपट कर नहाना अच्छा लगता है।
5)बुलबुल भी जल्दी जग जाती है और समधुर आवाज में *उठजा* *उठजा* की टेर लगाती है। मेरी पत्नी को तो ऐसा ही लगता है ।
6)अधिकतर पक्षी अलग अलग समय पर मिजाज के अनुसार अलग अलग आवाज निकलते हैं।
7) कौया अन्य पक्षियों की तुलना में अधिक बुद्धिमान है।कोई भी खाद्य सामग्री जो थोड़ी सी भी सख्त है उसे पामी में डुबोकर मुलायम कर खाता है। कोई भी खाद्य पदार्थ देखते अपने साथियो को आवाज देकर बुलाता है।
8) घोंघाई ( सातबहिन) अपने पंजे में सख्त खाद्य सामग्री को पकड़ कर चोंच से तोड़कर खाती है।
राकेश भारतीय जी आपका ये संस्मरण बेहद रोचक है। आपने विस्तार से अपने अनुभवों को यहाँ साझा किया उसका हार्दिक आभार। पक्षी प्रेमियों के लिए ये जानकारी बेहद उपयोगी है। आपने बिल्कुल सही कहा कि बतौर समूह हमें एक दूसरे से सीखने में बेहद मदद मिलती है।
Deleteबहुत खूब. कई दिनों से इस लेख को फ़ुर्सत में पढ़ने के लिए सेव कर रखा था. अच्छी जानकारी मिली. पक्षियों के बारे में वाकई हममें से अधिकांश की औसत जानकारी काफी कम है. शुक्रिया
ReplyDeleteअत्यन्त गहन शोध। पहाड़ों पर रहने के बावजूद भी इतनी पक्षियो की पहचान नही है। अच्छा लगा, पक्षियो पर विस्तारित आलेख।
ReplyDelete