आज से करीब दो सौ साल पहले कुन्नूर में इंसानों की कोई बस्ती नहीं थी। अंग्रेज सेना के कुछ अधिकारी वहां 1834 के करीब पहुंचे। चंद कोठियां भी बनी, वहां तक पहुंचने का रास्ता भी पर पूरे कस्बे की आबादी हज़ार की सीमा लांघने में अगले बीस साल लग गए।
आम जनता पास के कोयंबटूर से तांगे या बैलगाड़ी से तब कुन्नूर पहुंचती थी। कस्बे की व्यवस्थाओं का ये हाल था कि अंग्रेजों को एक अदद पावरोटी के लिए कोयंबटूर का मुंह देखना पड़ता था। अंग्रेजों को जब कुन्नूर की आबोहवा रास आने लगी तो उन्हें लगा कि यहां जमने के लिए कुछ ऐसा करना होगा जिससे जीविका का कुछ स्थाई समाधान निकले।
दो सौ सालों के बाद भी अंग्रेजों ने जो आधारभूत संरचनाएं यहां निर्मित की उनमें से कुछ आज भी जस की तस हैं। यहां के सारे पर्यटक स्थल किसी न किसी अंग्रेज के नाम पर हैं जैसे Lamb's Rock, Sim's Park, Lady Canning Seat, Law waterfall. वैसे ये बात अगर मुझे पहले पता चल जाती तो मैं Lamb's Rock पर जाकर उसकी आकृति का भेड़ से मिलान करने की मूर्खता न करता।
नीले आसमान और बागान की हरियाली के बीच मैं
चाय बागानों तक जाने वाले सिकुड़े सिमटे रास्ते जंगलों से लटकती लताओं को चूमते से फिरते हैं। चलते चलते उनके साये में आते ही घना अंधेरा छा जाता है। बादलों के झुंड कब इन सड़कों पर आ कर सुस्ताने लगें इसका अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल है। ऐसे में इन पहाड़ी घुमावदार रास्तों पर आप पल भर में खनकती धूप से घने कोहरे में दाखिल हो सकते हैं जो आम चालक की हालत पतली कर देता है।
कोहरे से लिपटी सड़कें
पर अंग्रेजों को कोहरे में डूबता उतराता हरा भरा कुन्नूर का यही मौसम बेहद भाया होगा। हालांकि दूर दराज से कुछ दिन के लिए यहां आने वालों को मौसम की इन शरारतों का खामियाजा भुगतना पड़ता है जब उन्हें किसी शानदार व्यू प्वाइंट पर पहुंचने के बाद कोहरे की सफेद चादर के अलावा कुछ नहीं दिखता।
मैं खुशकिस्मत रहा कि मुझे कुन्नूर ने अपने दोनों रंग दिखाए एक ओर तो कोहरे से लदे-फदे तो दूसरी ओर सुनहरी धूप के बीच चाय बागानों की हरीतिमा से मन को मोहते हुए।
कुन्नूर के मनमोहक चाय बागान
कुन्नूर की खूबसूरती यहाँ के चाय बागानों में ही समायी है। ऊटी से आने वाले वेलिंगटन से होते हुए कुन्नूर में प्रवेश करते ही सबसे पहले सिम पार्क पहुँचते हैं। उसके पास ही यहाँ की मशहूर नीलगिरी पर्वतीय रेलवे का स्टेशन भी है। ऊटी से कुन्नूर आते और जाते वक़्त आप इस ट्रेन का लुत्फ उठा सकते हैं।
चूँकि Lamb's Rock जाने का रास्ता थोड़ा संकरा है इसलिए ज्यादातर वाहन चालक सबसे पहले वहीं जाना चाहते हैं ताकि भीड़ का सामना न करना पड़े। चाय बागानों में बीच बीच में रुकते चलते जब Lamb's Rock के पास पहुँचे तो हमारे मेहमान नवाज़ी के लिए बादलों का झुंड भी साथ हो लिया।
चाय पत्ती बनाने का कारखाना
लॉ साहब ने कुन्नूर घाट की सड़क बनाने का बीड़ा उठाया तो उनके शागिर्द कैप्टन लैंब कैसे पीछे रह जाते। उन्होंने इतने घने जंगल के अंदर से एक ऐसा रास्ता ढूंढ निकाला जो पहाड़ के एक कोने से कोयंबटूर के मैदानों और कैथरीन जलप्रपात से गिरती पानी की पतली लकीर को आपकी आंखों के सामने ला सके। लिहाजा वो चट्टान जहां से वो दृश्य दिखता था Lamb's Rock के नाम से मशहूर हुई।
चूँकि Lamb's Rock जाने का रास्ता थोड़ा संकरा है इसलिए ज्यादातर वाहन चालक सबसे पहले वहीं जाना चाहते हैं ताकि पार्किंग में होने वाली दिक्कतों का सामना न करना पड़े। चाय बागानों में बीच बीच में रुकते चलते जब Lamb's Rock के पास पहुँचे तो मेरी मेहमान-नवाज़ी के लिए बादलों का झुंड भी साथ हो लिया।
जंगल के बीच से छन कर आती धूप
आधा पौन किलोमीटर के इस रास्ते में जंगल की सघनता ऐसी है कि ऊपर चमकता सूरज भी जमीन तक पहुंचने के लिए आड़े तिरछे रास्ते ढूंढा करता है। शिखर तक पहुंचते हुए अंधेरे से उजाले और उजाले से फिर अंधेरे में वापस लौटने का ये खेल चलता रहता है।
एक ओर धूप तो दूसरी ओर छाँव
नर्म कोहरों के बीच से अपनी जगह बनाती सूर्य किरणें मुझे साहिर की लिखी इन पंक्तियों की याद दिला गई।
उफ़क़ के दरीचे से किरनों ने झांका
फ़ज़ा तन गई, रास्ते मुस्कुराये
सिमटने लगी नर्म कुहरे की चादर
जवां शाख़सारों ने घूंघट उठाये
लैंब रॉक तक जाने के दो रास्ते हैं। दोनों जंगल के बीच से जाते हैं। पर रास्ता इतना सीधा है कि आप यहाँ मौजूद गाइड की सहायता के बिना भी अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। अकेले चलता हुआ जब मैं पर पहुँचा तो एक ओर नीला आसमान पहाड़ियों के साथ दिखाई दे रहा था तो दूसरी ओर बादलों का जमावड़ा ऐसा था कि कैथरीन फाल तो दूर, बगल की तीखी ढलान भी नहीं दिख रही थी।
कोहरे का खेल
Lamb's Rock से Dolphin Nose तक का रास्ता
हल्का फुल्का जलपान करने के बाद जब मैं सिम पार्क पहुँचा तो मौसम एकदम साफ हो चुका था। सिम पार्क में जाने के लिए मेरे मन में खासा उत्साह था क्यूँकि मैंने सुन रखा कि वहाँ पेड़ पौधों के अलावा पक्षियों से भी मुलाकात हो सकती है। जब से पक्षियों के प्रेम में पड़ा हूं तबसे घूमते हुए वे जगहें और प्यारी लगने लगती हैं जहां इन का बसेरा हो। नई जगह जाने पर पहले उद्यानों को सबसे आख़िर में निबटाते थे पर अब आलम ये है कि वहां से जल्दी निकलने का मन नहीं करता। कब अचानक कौन सा पखेरू दर्शन दे दे।
लगभग बारह हेक्टेयर में फैला ये उद्यान एक पहाड़ी ढाल पर आज से डेढ़ सौ साल पहले अस्तित्व में आया था। तब तत्कालीन सरकार में सचिव के पद पर कार्य कर रहे जे डी सिम ने इसकी स्थापना में अपना योगदान दिया था इसीलिए ये पार्क उनके नाम से जाना जाता है। पार्क में बेहद पुराने और विविध प्रजातियों का संग्रह है। ढलान से नीचे उतरने के बाद के समतल हिस्से में बच्चों के खेलने के लिए एक पार्क और छोटी सी झील भी है।
सिम पार्क का सबसे प्राचीन पेड़ Red Gum Tree
पार्क का एक चक्कर लगाने के बाद मैंने अपना ज्यादा समय पक्षियों को ढूँढने में बिताया। सबसे पहले मेरी मुलाकात नाचन यानी Fantail से हो गई। ये चिड़िया जब अपने पंखों को फैलाकर ठुमकती हुई चलती है तो इसके पंखों का स्वरूप लकड़ी के पंखे की तरह हो जाता है। नृत्य की इन्हीं मुद्राओं की वज़ह से इसे नाचन का नाम मिला है। नाचन के आलावा कुछ अन्य रंग बिरंगे माखीमार भी अपने जलवे बिखरते दिखे। नीलिमा और धूसर सिर वाले पीले माखीमार को देख तबियत खुश हो गयी। सुबह का समय होता तो शायद कुछ अन्य पक्षियों से भी मुलाकात का संयोग बनता।
सिम पार्क के आकर्षण सिर्फ विविध पेड़ नहीं बल्कि उनमें रहने वाले बाशिंदे भी हैं।
जाड़े के महीने में फूलों की जितनी किस्मों को देखने की उम्मीद थी वो तो नहीं दिखे पर नीली लिली मैंने यहाँ पहली बार देखी। कुन्नूर में मैं तो एक ही दिन रह पाया पर मुझे यहाँ आकर लगा कि कम से कम यहाँ दो दिन बिताए जाने चाहिए जिसमें एक दिन यहाँ की वादियों में निरुद्देश्य भटकने के लिए हो। तो कैसी लगी आपको मेरी कुन्नूर यात्रा ? इस जगह से जुड़ा कोई प्रश्न आपके मन में हो तो यहाँ या इस ब्लॉग के फेसबुक पेज पर आप पूछ सकते हैं।
I visited sim park quite long ago. May be 15 years back. A park with inclined land scape. Unique in itself.
जवाब देंहटाएंAshok Kar True a unique park in terms of shape and varieties of rare trees though the landscaping is much better in Ooty's botanical garden🙂
हटाएंभारत हमेशा से चाय प्रेमी नहीं रहा है। Duncan ने ट्रेन स्टेशनों पर मुफ़्त पिला कर आदत डलवाई है।
जवाब देंहटाएंहां, पहले तो खेती भी नहीं होती थी। अंग्रेजों के ज़माने से शुरू हुई तो चस्का भी उस समय में चाय बगान के मालिकों ने ही लगवाया होगा।
हटाएंवाह ! क्या करूँ आपकी हरेक पोस्ट पर मेरा कमेन्ट वाह से ही शुरू होता है । आपकी पोस्ट होती ही ऐसी हैं व मुझे तो लगता है कि धरती पर आपका आगमन वाहवाही के लिए ही हुआ है । क्या अलमस्त फोटो खिंचवाने का अंदाज़ है । क्या कमाल का लिखते हैं जैसे - बादलों के झुंड का सड़कों पर सुस्ताना । कितने खूबसूरत ख़्याल आते हैं आपके मन में । वाक़ई आपने सुन्दर कन्नूर को और भी सुन्दर बना दिया है ।
जवाब देंहटाएंमुझे बेहद प्रसन्नता है कि आप जैसे प्रबुद्ध व्यक्तित्व को मेरा लिखा पसंद आता है। आप के इन उत्साह वर्धक शब्दों के लिए दिल से शुक्रिया। आगे भी कोशिश रहेगी कि आपकी वाहवाही बटोरता रहूं 😊।
हटाएंबहुत ही रोमांचक वर्णन। कन्नूर के ऐतिहासिक एवं प्राकृतिक विवरण को आपकी आकर्षक लेखन शैली में पढ़कर आनंद आ गया। Lamb's Rock को भेड़ की आकृति जैसी समझने की भूल वाली बात पढ़कर तो बहुत हंसी आयी। इसी तरह लॉ वाटरफाल से भी क्या कानून की धाराएं निकलती हैं?
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा छायांकन एवं उम्दा पोस्ट ।
Harendra Srivastava दरअसल Lamb की तरह Law भी अंग्रेजों का एक टाइटल है। आपने स्टुअर्ट लॉ का नाम सुना होगा। ऑस्ट्रेलिया की ओर से क्रिकेट खेलते थे। कुन्नूर से ऊटी और कोयंबटूर की ओर जो सड़क बनी उसकी मरम्मत का काम अंग्रेज लेफ्टिनेंट लॉ ने कराया इसलिए रास्ते में पड़ने वाले इस छोटे से जलप्रपात का नाम उनके नाम पर कर दिया गया।
हटाएंआलेख पसंद करने के लिए शुक्रिया।😊
बेहद आकर्षक लेख ❤
जवाब देंहटाएंधन्यवाद 😊
हटाएंजीवन तो साहब आप ही का है। मदमदाते विहंगम दृश्यावलियों का रस पान करते रहते हो। सुन्दर सुस्पष्ट वृतान्त।
जवाब देंहटाएंकामकाज के बीच जितना भी समय निकल पाता है उसका सदुपयोग कर लेते है। आलेख पसंद करने का आभार।
हटाएंकुन्नूर का अच्छा अनुभव। कुन्नूर के इतिहास के बारे में आपकी व्याख्या बहुत जानकारीपूर्ण है। मुझे चाय बागान के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं थी। आपके के ब्लॉग से मुझे चाय बागान की अच्छी जानकारी मिली। यह ब्लॉग मुझे अपनी यात्रा योजनाओं को बदलने के लिए प्रेरित करता है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंआपके सारे यात्रा वृतांत किताब के रूप मे
जवाब देंहटाएंप्रकाशित हुए है ?
नहीं मनोज जी अभी तक नहीं। :)
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