बुधवार, 10 मार्च 2010

यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की

कोवलम का समुद्री तट धनुष के आकार है। वैसे तो कहने को ये तीन छोटे-छोटे समुदी तटों में बँटा हुआ है पर इसके दक्षिणी सिरे पर जो 'लाइट हाउस बीच' (Lighthouse Beach) है वही यहाँ का मुख्य समुदी तट है। सारी दुकानें, कुछ होटल और भोजनालय इसी तट पर स्थित हैं। पर कोवलम जैसे समुद्री तट पर जो कि विश्व विख्यात है, पीक सीजन में आप इन होटलों में रहने या भोजनालय में खाने का जोखिम नहीं ले सकते। आपने कई बार मेलों में बच्चों के लिए डोरी घुमा कर पलास्टिक की छोटी बॉल में प्रकाश पैदा करते देखा होगा। हमारी आँखों के सामने ये खिलौना १०० से २०० रुपये में बिकता पाया और जब हमने उसका दाम पूछा तो वो सीधे दस रुपये पर आ गया।

इसी की बगल के मध्य सिरे में एक और तट है जहाँ हम अपने होटल से उतर कर सीधे पहुँचे थे, इसे हव्वा बीच (Eves Beach) के नाम से जाना जाता है।
ऍसा क्यूँ हैं ये जानने के लिए यहाँ देखें..



लाइटहाउस बीच पर विदेशी सैलानी बहुतायत में देखे जा सकते हैं। पर उसके बगल वाली बीच में भी लोग नहाते दिखते हैं हालांकि वहाँ हमें समुद तट में ढलाव ज्यादा महसूस हुआ। लाइटहाउस दिन में दो से चार बजे ही खुलता है पर अगर आपको इस पूरे धनुषाकार समुद्री तट का नज़ारा देखना हो तो आपको समय निकालकर वहाँ जाना चाहिए। ये बात हमें वहाँ से वापस लौटकर पता चली जब हमारे कार्यालय के सहयोगी, जो वहाँ हमसे दो तीन दिन पहले पहुँचे थे ने लाइटहाउस के ऊपर से क़ैद किए कुछ अद्भुत दृश्य हमें दिखाए। लाइटहाउस के ऊपर से लिए हुए पूरे इलाके के कुछ और हसीन नज़ारे आप यहाँ देख सकते हैं। जैसा कि मैंने आपको पिछली पोस्ट में बताया कि समुद्र में नहाने का सुख तो हम २९ की शाम को ही ले चुके थे। इसलिए तीस दिसंबर की सुबह हम समुद्र के साथ सुबह की ताज़गी का आनंद लेने निकल लिए।



समुद्र की ऊँची उठती लहरें तट से टकरा कर गर्जना कर रही थीं कि ज्यादा करीब आकर हमारी ताकत से लोहा लेने की कोशिश मत करो। उत्तरी समुद्री तट के पास ही मछुआरों की बस्ती है। मछुआरे सुबह सुबह अपनी नौका में सवार होकर समुद्र में अपना जाल बिछाने में लगे हुए थे। जाल को चारों तरफ फैला लेने के बाद अंतिम क़वायद पंक्तिबद्ध होकर जोर लगा के हइजा.. करने की थी जिस में हमारे सहयात्री भी शामिल हुए।


यूँ तो कोवलम सुंदर है पर जब मैं इसकी तुलना अंडमान के हैवलॉक या गोवा के कलंगूट समुद्री तट से करूँ तो ये इन दोनों के सामने नहीं ठहरता। हैवलॉक समुद्री तट के आस-पास की प्राकृतिक सुंदरता और स्वच्छता के सामने कोवलम नहीं टिकता, वहीं इसके पास कलंगूट जैसी विशालता भी नहीं। समुद्री तट से लौटकर हमें अपना चार बजे तक का समय त्रिवेंद्रम में बिताना था। अबकि हम जहाँ ठहरे थे वहाँ एक तरणताल भी था सो समुद्र तट से वापस आकर बच्चों के साथ सीधे ताल में घुस लिया।

त्रिवेंद्रम शहर कोवलम से करीब २५ किमी की दूरी पर है। यहाँ का पद्मनवा स्वामी मंदिर आस्था की दृष्टि से बेहद पवित्र माना जाता है। हमारे कार्यालय के सहयोगियों ने बता रखा था कि यहाँ महिलाओं को सिर्फ साड़ी पहनकर ही मंदिर में आने दिया जाता है। सो वहाँ जाते वक़्त हमारी तैयारी वैसी ही थी पर जब वहाँ पहुँचे तो पता चला कि महिलाओं के आलावा पुरुषों के लिए भी वस्त्र निर्धारित थे। हमें सिर्फ धोती पहननी थी जो कि शायद वहाँ 25 से 30 रुपये में उपलब्ध थी। अब हमने तो अपनी जिद में शादी के समय भी धोती नहीं पहनी थी तो वहाँ क्या पहनते। सो हम बाहर ही रह गए। वैसे मुझे इस तरह के ड्रेस कोड का औचित्य समझ नहीं आया कि धोती के आलावा बाकी के वस्त्रों में क्या खराबी है जिसे पहन कर जाने से मंदिर की पवित्रता नष्ट हो जाएगी?



पद्मनवा स्वामी मंदिर भगवान विष्णु का मंदिर हैं। यहाँ पर रखी हुई विष्णु की प्रतिमा विश्व में विष्णु की सबसे बड़ी प्रतिमा कही जाती है। अंदर विष्णु अनंतनाग के फन की शैया पर चिरनिद्रा में लीन दिखाई देते हैं। ये मंदिर कब बना इसके बारे में पुष्ट जानकारी नहीं है। पर ऍसा वहाँ के लोग कहते हैं कि इसकी आधारशिला ईसा पूर्व 3000 में रखी गई थी और इसे बनाने में 4000 मजदूरों को मिलकर छः महिने का समय लगा था।
मंदिर परिसर से हमें तिरुअनंतपुरम के संग्रहालय, चित्रालय और चिड़ियाघर देखते हुए वापस एलेप्पी की ओर कूच करना था। कैसा खत्म हुई हमारी केरल यात्रा ये जानते हैं इस श्रृंखला की समापन किश्त में....

इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

  1. यादें केरल की : भाग 1 - कैसा रहा राँची से कोचीन का 2300 किमी लंबा रेल का सफ़र
  2. यादें केरल की : भाग 2 - कोचीन का अप्पम, मेरीन ड्राइव और भाषायी उलटफेर...
  3. यादें केरल की : भाग 3 - आइए सैर करें बहुदेशीय ऍतिहासिक विरासतों के शहर कोच्चि यानी कोचीन की...
  4. यादें केरल की : भाग 4 कोच्चि से मुन्नार - टेढ़े मेढ़े रास्ते और मन मोहते चाय बागान
  5. यादें केरल की : भाग 5- मुन्नार में बिताई केरल की सबसे खूबसूरत रात और सुबह
  6. यादें केरल की : भाग 6 - मुन्नार की मट्टुपेट्टी झील, मखमली हरी दूब के कालीन और किस्सा ठिठुराती रात का !
  7. यादें केरल की : भाग 7 - अलविदा मुन्नार ! चलो चलें थेक्कड़ी की ओर..
  8. यादें केरल की भाग 8 : थेक्कड़ी - अफरातरफी, बदइंतजामी से जब हुए हम जैसे आम पर्यटक बेहाल !
  9. यादें केरल की भाग 9 : पेरियार का जंगल भ्रमण, लिपटती जोंकें और सफ़र कोट्टायम तक का..
  10. यादें केरल की भाग 10 -आइए सैर करें बैकवाटर्स की : अनूठा ग्रामीण जीवन, हरे भरे धान के खेत और नारियल वृक्षों की बहार..
  11. यादें केरल की भाग 11 :कोट्टायम से कोवलम सफ़र NH 47 का..
  12. यादें केरल की भाग 12 : कोवलम का समुद्र तट, मछुआरे और अनिवार्यता धोती की
  13. यादें केरल की समापन किश्त : केरल में बीता अंतिम दिन राजा रवि वर्मा की अद्भुत चित्रकला के साथ !

4 टिप्‍पणियां:

  1. oh, to aapne bhi kovalm beach par likh daala. Lekin hmne wahi khana khaya. :)

    swami padmanabh mandir bhi gaye.

    जवाब देंहटाएं
  2. Kovalam par to pichchli post bhi thi shayad aapne dekhi nahin !

    जवाब देंहटाएं
  3. I wish I could write such detailed trip accounts!

    I also wish to say I have moved to a new URL

    http://blogs.gonomad.com/traveltalesfromindia/

    जवाब देंहटाएं
  4. Bahut Achha yatra Vritant...apki pichhli kai post par nahi payi thi...aaj sab ek sath pari hai...

    जवाब देंहटाएं