राँची में इस वक़्त दुर्गा पूजा का जश्न जोरों पर है। वैसे पूजा की इस बेला में मौसम ने भी क्या खूब करवट ली है। अष्टमी के साथ ही बादलों की फौज राँची के आसमाँ में पूरी तरह काबिज़ हो गई है। बारिश भी ऐसी की अभी है और अभी नहीं है। पर ऊपर से गिरती इन ठंडी फुहारों का पूजा का आनंद उठाने वालों पर जरा सा भी असर नहीं पड़ा है। बारिश और धूप से आँखमिचौली के बीच मैंने भी दुर्गा पूजा पंडालों के बीच एक दिन और एक रात बिताई। दुर्गा पूजा के पंडालों (
Puja Pandals of Ranchi ) में आपको पहले भी घुमाता रहा हूँ तो चलिए निकलते हैं आपको लेकर माता के दर्शन पर..
सुबह के साढ़े नौ बजे हैं। घर से साढ़े दस बजे निकलने का वक़्त तय है। पर दस बजे से ग्यारह बजे की बारिश हमारे कार्यक्रम को पैंतालिस मिनट आगे खिसका देती है। अपनी कॉलोनी से डिबडी चौक के फ्लाईओवर को क्रास करते ही अरगोड़ा और फिर हरमू का इलाका आ जाता है। अरगोड़ा दुर्गा पुजा पंडाल से ज्यादा रावण दहन के लिए जाना जाता है। इसलिए सबसे पहले हम जा पहुँचते हैं
हरमू की पंचमंदिर पूजा समिति के पंडाल पर। वैसे जो राँची के नहीं हैं उन्हे बता दूँ कि इस इलाके का नाम हरमू नदी के नाम पर है जो अब अवैध निर्माणों की वज़ह से लगभग विलुप्तप्राय ही हो गई है। हमारे क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी हमारी कॉलोनी छोड़ अब इसी इलाके में बने अपने नए घर में रहते हैं।
पंडाल के करीब पहुँचे तो चटक रंगों से सुसज्जित पंडाल को देख कर मन रंगीन हो उठा। बोध गया के बौद्ध मंदिर से प्रेरित ये पंडाल सिर्फ बाहर से ही बौद्ध मठ की याद नहीं दिलाता।

अंदर माँ दुर्गा की प्रतिमा भी बौद्ध मूर्ति कला की झलक दिखलाती है।

हरमू रोड से रातू रोड के बीच के इलाके में राँची शहर के खासमखास पंडाल रहते हैं। पर इन सबमें मुझे हर साल
सत्य अमर लोक पूजा समिति द्वारा रचित पंडाल सबसे ज्यादा आकर्षित करता है। कम जगह और कम बजट में ये लोग हर साल कलाकारी के कुछ ऐसे नायाब नमूने लाते हैं कि दाँतों तले उंगलियाँ दबाने को जी चाहता है। चार लाख की लागत पर बनाया गया इस साल का पंडाल
फिरोज़ाबाद से लाई हुई चूड़ियों से बनाया गया है। पंडाल में दुर्गा माता को एक विजय रथ पर सवार हैं।

और रथ के वाहक हैं ये सफेद घोड़े...


रथ के पहिए बहुत कुछ कोणार्क के सूर्य मंदिर के चक्रों की याद दिलाते हैं।

पंडाल के अंदर और बाहर हर हिस्से में चूड़ियों को तोड़ तोड़ कर भांति भांति की मनोरम आकृतियाँ बनाई गई हैं। आयोजकों का कहना है कि करीब तीन लाख चूड़ियों से बनाए गए इस पंडाल की चूड़ियों का काली पूजा में फिर प्रयोग करेंगे।

बगल में ही
गाड़ीखाना का पंडाल है जहाँ इस बार थर्मोकोल पर इस तरह डिजायन बनाए गए हैं मानो संगमरमर पत्थर के हों।

गाड़ीखाना से हमारी गाड़ी बढ़ती है
राजस्थान चित्र मंडल के पंडाल की ओर। ये पंडाल राँची झील के किनारे काफी व्यस्त इलाके में बनाया जाता है। कम जगह होने की वज़ह से सत्य अमर लोक की तरह इस पंडाल के आयोजक कारीगरी के नए प्रयोगों को हमेशा से प्रोत्साहित करते रहे हैं। राजस्थान चित्र मंडल का इस साल का पंडाल नेट के कपड़े से और मूर्तियाँ जूट से बनाई गई हैं.

तो देखिए जूट से बनी दुर्गा जी का ये रूप...

राँची झील के दूसरी तरफ ओसीसी पूजा समिति का पहाड़नुमा ये पंडाल बच्चों को खूब भा रहा है।

दुर्गा माँ की प्रतिमा भी यहाँ निराली है।

आज के लिए तो बस इतना ही।
कल आपको दर्शन कराएँगे राँची के सबसे बड़े पंडाल का और साथ में होगी बारिश से भीगी राँची की मध्यरात्रि में चमक दमक।