बुधवार, 28 मार्च 2018

श्रीनगर : मेरी यादों के चिनार Srinagar

दशकों पहले जब कृष्णचंदर का यात्रा संस्मरण मेरी यादों के चिनार पढ़ा था तो पहली बार कश्मीर की वादियों की रूपरेखा मन में गढ़ी थी। पर साल बीतते गये कश्मीर के हालात कभी अच्छे कभी खराब तो कभी एकदम बदतर होते रहे और मेरा वहाँ जाना टलता रहा। मेरे माता पिता अक्सर वहाँ के किस्से सुनाते और मैं उसी से संतोष कर लेता था।

हालांकि वहाँ लोगों का आना जाना कभी रुका नहीं था पर जिस सुकून के लिए कश्मीर का अद्भुत सौंदर्य जाना जाता है वो छवि वक़्त के साथ मन में धूमिल होती चली गयी थी। वर्षो बाद जब कश्मीर जाने की योजना बनाई तो वो भी इस लिए कि मैं लेह तक धीरे धीरे बढ़ना चाहता था ताकि जब हम वहाँ पहुँचे तो वातावरण के परिवर्तन को झेलने में ज्यादा सक्षम रहें। श्रीनगर के आस पास के इलाकों में गुज़रे वो दो दिन उसकी उस पुरानी छवि को काफी हद तक वापस लाने में सफल रहे।

चिनार जो एक प्रतीक है कश्मीर का..
जून के उस पहले हफ्ते में हमारे सफ़र की शुरुआत राँची से दिल्ली तक तो ठीक रही थी पर सुबह सुबह दिल्ली से श्रीनगर पहुँचने का ख़्वाब स्पाइसजेट की लचर सेवा ने तोड़ के रख दिया था। ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ था कि एयरपोर्ट बस से सभी यात्री विमान के सामने खड़े कर दिए गए हों और फिर करीब पौन घंटे बस के अंदर खड़े रखवा कर उन्हें वापस भेज दिया गया हो। विमान में चढ़ने के ठीक पहले नज़र आयी ये तकनीकी खराबी ने हमारे सुबह के तीन घंटे बर्बाद कर दिए।

धानी हरे खेतों का आकाशीय नज़ारा

हवाई जहाज से दिल्ली से श्रीनगर का सफ़र डेढ़ घंटे का है। आधे घंटे बाद से ही खिड़की के बाहर का नज़ारा लुभावने वाला हो जाता है। ऊँचाई पर रहते हुए जहाँ बर्फ से ढकी चोटियाँ बादलों से घुलती मिलती दिखाई देती हैं वहीं  श्रीनगर के पास आते ही पीर पंजाल की पर्वतमालाओं के बीच की हरी भरी मोहक घाटियाँ आँखों को तृप्त कर देती हैं। श्रीनगर के आस पास के इलाकों में देवदार व पोपलर के वृक्ष बहुतायत में दिखते हैं। इसके आलावा सेव, अखरोट के बागान भी आम हैं।  

ये है हरा भरा श्रीनगर

भोजन उपरांत यहाँ सफ़र की शुरुआत शंकराचार्य मंदिर से शुरु हुई। भगवान शिव को समर्पित ये मंदिर शहर के एक कोने पर तीन सौ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। ये एक बेहद प्राचीन मंदिर है जिसका निर्माण 400 ईसा पूर्व से भी पहले का बताया जाता है। कश्मीर के इतिहासकार कल्हण ने भी अपने आलेख में इसका जिक्र किया है। समय समय पर हिंदू और मुस्लिम राजाओं ने इस मंदिर की मरम्मत की। कहते हैं कि हिंदू मंदिर के रूप में स्थापित होने के पहले ये बौद्धों का भी पूजा स्थल हुआ करता था। मुगलों के शासनकाल में इस जगह को तख्त ए सुलेमान के नाम से भी जाना जाता रहा। दसवीं शताब्दी में जब आदि शंकराचार्य के कदम यहाँ पड़े तब से शिव मंदिर के रूप में यहाँ पूजा अर्चना होने लगी।

शंकराचार्य मंदिर से दिखता डल झील का विहंगम दृश्य



शंकराचार्य मंदिर के पास पहुँचते ही चीड़ के वन सड़क के दोनों ओर दिखने शुरु हो जाते हैं। इनकी सघनता इतनी है कि आप आसानी से श्रीनगर शहर की झलक ऊपर से नहीं पा सकते। परिसर में कैमरा ले जाना मना है। मंदिर की लगभग ढाई सौ सीढ़ियों को चढ़ने में बहुतों के पसीने छूट जाते हैं पर यहाँ की सुरक्षा में लगे जवान आंगुतकों का मनोबल बढ़ाने में लगे रहते हैं। चोटी से आपको श्रीनगर के लाल चौक से लेकर डल झील का इलाका स्पष्ट दिखाई देता है।


डल झील जो कभी आँखों से ओझल नहीं होती


श्रीनगर के अधिकांश आकर्षण डल लेक के किनारे स्थित हैं। इसलिए आप शंकराचार्य मंदिर जाएँ या निशात बाग या फिर शालीमार बाग, ये झील सड़क केे एक ओर आपका हाथ थामे चलती रहेगी। अठारह वर्ग किमी में फैली इस झील का आकर्षण इसके दिनों दिन उथला होते रहने की वजह से फीका जरूर पड़ा है पर इसके अंदर से गाद हटाने के लिए निरंतर काम चल रहा है। कुछ सालों में ये अपनी पुरानी खूबसूरती में लौट आएगी ऐसी आशा है।



झील पर नज़र रखतीं जावरान की पहाड़ियाँ

डल झील का चक्कर लगाते हुए सबसे पहले मैं निशात बाग पहुँचा।  इस बाग के चारों ओर की प्राकृतिक छटा कुछ ऐसी है कि यहाँ आते ही मन प्रसन्न हो जाता है। शायद इसीलिए इस बाग का नाम निशात बाग यानि खुशियों का बाग रखा गया। इसके ठीक पीछे  जबरवान की पहाड़ियाँ हैं तो सामने डल झील की विशाल जल राशि जो इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देती  हैं।
निशात बाग

निशात बाग का निर्माण नूरजहाँ के भाई आसिफ खान ने सत्रहवीं शताब्दी में करवाया था। अगर आपको हुमायूँ के मकबरे का आकार प्रकार याद हो तो मुगल बगीचे वर्गाकार साम्यता लिए बनाए जाते थे पर पहाड़ी इलाका होने की वजह से यहाँ बाग का डिजाइन वर्गाकार की  बजाए आयताकार रखा गया। पहाड़ की तरह ऊँचाई वाली जगह में पानी के स्रोत से जल पहुँचा दिया जाता था और फिर ढलान को बाग के अलग अलग तलों में बाँटकर पानी बाग के दूसरे छोर तक पहुँचाया जाता था।

मैग्नोलिया का सफेद फूल

ऐसा कहा जाता है कि ये बाग सम्राट शाहजहाँ को भी बहुत पसंद था। अपने साले आसिफ खाँ से उन्होंने इसकी कई बार तारीफ़ भी की थी। उन्होंने सोचा था कि ऐसा करने से शायद आसिफ उन्हें ये उपहार में दे देगा। जब ऐसा नहीं हुआ तो उन्होंने चिढ़ कर बाग की जल आपूर्ति ठप्प करा दी। आसिफ खाँ ने सम्राट के हुक्म को सर आँखों पर रखते हुए बाग को उजाड़ होने दिया पर अपने मातहतों के कहने पर भी पानी लेना उचित नहीं समझा। बाद में बादशाह का दिल पसीजा और ये बाग अपनी पुरानी रौनक को वापस पा  सका ।


जब मैं निशात बाग पहुँचा था तो वहाँ बाहर से आए लोगों के बजाए स्थानीय लोगों की अच्छी खासी भीड़ थी। इस भीड़ का अधिकांश हिस्सा स्कूली बच्चे थे जो रमजान का महीना शुरु होने के पहले की छुट्टी मनाने यहाँ पहुँचे थे। बाग के मध्य से आते पानी में जिसको देखो वहीं डुबकी मार ले रहा था। माहौल उनकी खिलखिलाती हँसी से गुंजायमान था। लग ही नहीं रहा था कि हम किसी आतंक से प्रभावित राज्य में आए हैं।


पानी में छप छपा छई

निशात बाग से थोड़ी ही दूर पर शालीमार बाग है जो यहाँ का सबसे बड़ा बाग है। इसे शाहजहाँ ने बनवाया था। पर मुझे रखरखाव और सुंदरता के मामले में ये निशात बाग से कमतर नज़र आया। जून के महीने में फूलों की विविधता भी मुझे यहाँ कुछ खास नज़र नहीं आयी। छुट्टी में आई भारी भीड़ की वज़ह से हम यहाँ के तीसरे मशहूर बाग चश्मेशाही में जा ही नहीं सके।

शालीमार बाग

चाहे निशात बाग हो या शालीमार बाग चिनार के विशाल पेड़ आपको हर जगह शान से लहराते दिख जाएँगे। बहुत से लोग चिनार को कनाडा के मेपल वृक्ष के समकक्ष समझ लेते हैं। पर वास्तव में चिनार प्लेन ट्री से मिलता जुलता पेड़ है। लंदन घुमाते समय मैंने जिस लंदन प्लेन ट्री का जिक्र किया था उसे वेस्टर्न प्लेन भी कहते हैं जबकि एशिया में पाए जाने वाला वृक्ष ओरियंटल प्लेन या चिनार के  नाम से जाना जाता है। श्रीनगर के बागों में हमें तीन सौ साल पुराना भी चिनार का एक पेड़ दिखा।

चिनार का पेड़

चश्मेशाही ना पहुँच पाने की वजह से जो वक़्त हमारे समूह के पास पास बचा उसका सदुपयोग हमने हजरतबल जाकर किया। हजरतबल इस बात के लिए मशहूर है कि यहाँ हजरत मोहम्मद का केश सुरक्षित रखा हुआ है। साठ के दशक में जब नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे तब इस केश के अचानक गायब हो जाने से काफी हंगामा हुआ था। केश जितने रहस्यमयी तरीके से गायब हुआ वैसे ही एक महीने बाद मिल भी गया।


हजरत बल का प्रवेश द्वार

सफेद संगमरमर से बना इसका गुंबद अपनी सौम्यता से मन में शांति भर देता है। हजरतबल में कुछ वक़्त बिताने के बाद हम नगीन झील की ओर बढ़ गए जहाँ की हाउसबोट पर हमारा रात का ठिकाना था। वहाँ पहुँच कर हमें नौका विहार भी करना था।

हजरतबल दरगाह

नगीन झील पर खड़ी एक हाउसबोट

हाउसबोट शानदार थी और सामने का मंज़र भी दिलचस्प था। नौका के इंतज़ार में अगले आधे घंटे का समय हमने झील पर उतरती सांझ को देखने में बिता दिया। कैसे बीती नगीन झील में हमारी शाम और अगली सुबह ये जानेंगे इस यात्रा की अगली कड़ी में..
नगीन झील
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20 टिप्‍पणियां:

  1. आपका कैमरा तो लाजबाव है। आकाशीय चित्रो को उकेर कर तो मन हमारा भी डोलने लगता है। अद्भुत।

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    1. शुक्रिया चित्रों को पसंद करने के लिए !

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन गुरु अंगद देव और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. It's most memorable place for everyone , every year I go and feel beauty of this valley and great hospitality of nice people, you must visit some offbeat destination like dudhpatri, Yousmarg, kokernag,verinag, it's more amazing

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  4. There are two types of people in the world. One who have been to Kashmir and the other who have not.

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    1. दरअसल कश्मीर गुलमर्ग, सोनमर्ग और पहलगाम तक सीमित नहीं है। असली कश्मीर घाटी को देखना अभी भी बाकी है।

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    2. In 2005 we went to Kashmir through Sonmarg. We traveled from Leh to Kashmir. It was a altogether different experience.

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    3. I will take u again through the same route :)

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  5. बहुत ही अच्छी पोस्ट। अछा लगा पढ़ कर।

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  6. बहुत सुन्दर। हमारी कश्मीर यात्रा में हम श्रीनगर में बहुत समय तक नहीं रुक पाए। शायद कभी अगली बार

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    1. मुझे तो युसमर्ग और वेरीनाग जैसे इलाकों में जाने की इच्छा है जहाँ अब तक जाना नहीं हो पाया है।

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