सोमवार, 23 अप्रैल 2018

सोनमर्ग : देवदारों के आँचल में समाया धरती का एक खूबसूरत टुकड़ा Sonamarg, Jammu and Kashmir

श्रीनगर से लद्दाख जाते वक़्त कश्मीर घाटी का प्रसिद्ध पर्वतीय स्थल सोनमर्ग से होकर गुजरना पड़ता है। समुद्रतल से 2800 मीटर की उँचाई पर स्थित सोनमर्ग श्रीनगर से करीब 87 किमी उत्तर पूर्व की दूरी पर है । श्रीनगर तो झीलों, शिकारों और बागों का शहर है जहाँ से आप जबरवान की पहाड़ियों की खूबसूरती को निहार पाते हैं पर कश्मीर घाटी की असली सुंदरता देखने के लिए आपको शहरी इलाकों से बाहर आना पड़ेगा।

सोनमर्ग के खूबसूरत चारागाह
श्रीनगर से बाहर निकलते ही गांदरबल जिले का इलाका प्रारंभ हो गया। यहाँ कस्बों में भी बने मकान शानदार दिखे। ज्यादातर घरों को  ईंट की जगह स्याह रंग के पत्थरों और लकड़ी की अलग अलग डिज़ाइन वाली  खिड़कियों से सजाया गया था। छतें रंग बिरंगी इस्पात की घुमावदार चादरों की बनी थीं ताकि बर्फ गिरने पर ढलान के साथ  नीचे फिसल जाए।


गांदरबल वही इलाका है जहाँ से जम्मू एवम कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अबदुल्लाह और उनके बाद उनके सुपुत्र उमर अबदुल्लाह चुनाव लड़ा करते थे। गांदरबल से गुजरते हुए इस इलाके की प्रमुख नदी सिंध से हमारी पहली मुलाकात हुई। पानी की उपलब्धता इस इलाके में अच्छी है ये इस बात से ज़ाहिर हुआ कि मुझे धान की खेती दूर दूर तक फैली दिखाई दी। अब कश्मीर से आए लंबे दाने वाले चावल के जायक़े को भला कौन भूल सकता है?

वैसे ये सिंध नदी वो वाली सिंधु नदी नहीं है जिसे हम सभी अंग्रेजी में इंडस (Indus) के नाम से जानते हैं। इस सिंध की उत्पत्ति सोनमर्ग के समीप के मचोई हिमनद से होती है। सोनमर्ग के रास्ते में ये नदी कभी सड़क के बाँयीं तो कभी दायीं ओर बहती मिलेगी। गर्मी के दिनों में इसका पानी सफेद फेन के साथ जोरदार आवाज़ करता हुआ बहता है।


सिंध नदी जो आगे जाकर मिल जाती है झेलम में
इसके बहाव की ताकत का इस्तेमाल इस इलाके में बिजली और सिंचाई उपलब्ध कराने में होता है। सौ किमी से ज्यादा लंबी इस नदी का अंत श्रीनगर के ज़रा पहले हो जाता है जब ये झेलम में जा कर मिल जाती है। इसकी खिलखिलाहट को पास सुनने के लिए मैं इसके समीप बने एक उद्यान के पास उतरा और कुछ समय इसके करीब बैठ कर बिताया।
देवदार के ये जंगल सोनमर्ग से तीस किमी पहले से ही शुरु हो जाते हैं।


जितना खूबसूरत सोनमर्ग है उससे कहीं ज्यादा मुझे उसके पहले और बाद के पन्द्रह किमी का रास्ता  लगा। देवदार के पेड़ों से सजे कई  खूबसूरत घने जंगल रास्ते में देखने को मिले। पोपलर, विलो, चीड़, सेव के पेड़ों के आलावा भी भांति भांति के पेड़ दिखे जिसे मैं तो पहचान नहीं पाया। मुझे ये भी पता था कि चूंकि हम लेह की ओर जा रहे हैं., पेड़ों से लदी इन  हरी भरी ढलानों को देखने का सुख मुझे आगे नहीं मिलेगा। घाटी के पहाड़ों की खूबसूरती को आत्मसात करते हुए गुलज़ार की लिखी वो पंक्तियाँ याद आ गयीं जिसमें पर्वत का एक आमंत्रण है एक प्रकृति प्रेमी के लिए

कभी आना पहाड़ों पर...
धुली बर्फों में नम्दे डालकर आसन बिछाये हैं
पहाड़ों की ढलानों पर बहुत से जंगलों के खेमे खींचे हैं
तनाबें बाँध रखी हैं कई देवदार के मजबूत पेड़ों से
पलाश और गुलमोहर के, हाथों से काढ़े हुए तकिये लगाये हैं
तुम्हारे रास्तों पर छाँव छिडकी है
मैं बादल धुनता रहता हूँ,
कि गहरी वादियाँ खाली नहीं होतीं
यह चिलमन बारिशों की भी उठा दूँगा, जब आओगे....

पीछे बर्फ आगे हरियाली
सोनमर्ग पहुँचने के पहले नीले पीले रंग की एक खूबसूरत एक खुली बस बगल से गुजर गयी। बस में कॉलेज के लड़के लड़कियाँ गाते बजाते ठहाके लगाने की आवाज़े सुनीं तो लगा कि ये भी एक कश्मीर है जो दहशतगर्दी के अंदर खिलता और पनपता है।
सोनमर्ग बस आने ही वाला है

कुछ ही देर में हम सोनमर्ग में थे। यहाँ के सुनहरे चारागाहों की वजह से ही इस जगह का नाम सोनमर्ग पड़ा। दरअसल सोनमर्ग से ही अनेक ट्रेक मार्गों का रास्ता खुलता है। अमरनाथ यात्रा के बेस कैंप तक जाने का रास्ता बालटाल से है जो कि सोनमर्ग से मात्र पन्द्रह किमी की दूरी पर है। यहीं से विष्नसर और कृष्णसर झीलों के लिए भी जाने का ट्रेकिंग मार्ग है। झीलों के आलावा यहाँ कोल्हाई और मचोई के ग्लेशियर यानि हिमनद भी हैं। पर इन जगहों तक पहुँचने और वापस लौटने के लिए कम से कम दो दिन का समय चाहिए।
सोनमर्ग में आपका ये मुसाफ़िर
आप समझ ही गए होंगे कि इन झीलों का नामाकरण भगवान विष्णु और कृष्ण के नाम से हुआ है। कश्मीरी पंडितों के लिए ये झीलें धार्मिक महत्त्व की हैं। इन झीलों में कई तरह की की मछलियाँ पायी जाती हैं जिसमें ब्राउन ट्राउट प्रमुख है।

नीचे स्थित वाहन पड़ाव और  होटलों का नज़ारा


सोनमर्ग पहुँचते ही घोड़े वाले आपको घेर लेते है। वे यहाँ से पाँच किमी दूर;स्थित थाजीवास हिमनद तक ले जाते हैं। पर अगर आप स्वस्थ हों तो ये पाँच किमी की दूरी पैदल तय करना ज्यादा बेहतर रहेगा। पैदल ये दूरी तय करने में एक डेढ़ घण्टे  का समय लग जाता है।

मन को हरती सोनमर्ग की हरियाली


घोड़े वालों से मैंने ये कह कर पीछा छुड़ाया कि मुझे लेह जाना है और यहाँ ऐसे ही विश्राम के लिए रुके हैं। फिर पास की हरी भरी ढलानों पर अपने परिवार के साथ ख़ुद ही चढ़ना शुरु किया। घोड़ों की आवाजाही की वज़ह से ये खूबसूरत चारागाह उतने स्वच्छ नहीं रह पाते। फिर भी एक बार ऊँचाई तक पहुँचने के बाद नीचे का नजारा देखते ही बनता है। पैदल चलने पर भी घोड़े वाले आपसे थोड़ी दूरी बनाए रखते हैं, ये सोचते हुए कि कहीं आपका मन पलट जाए।

पीछे दिखती बर्फ से लदी चोटी की ओर है थाजीवास हिमनद का रास्ता

सोनमर्ग से ज़ीरो प्वाइंट के बीच चरवाहों के कई झुंड दिखाई पड़े।

सोनमर्ग से आगे चरवाहों का एक झुंड दिखाई दिया जो घोड़ों की एक खेप सोनमर्ग की ओर ले जा रहे थे। घोड़े हों या भेड़, इस झुंड में अनुशासन बनाए रखने की जिम्मेवारी झुंड के आगे और पीछे चल रहे वफादार कुत्तों की होती है। कोई झुंड से हिला नहीं कि ये अपनी आक्रामकता से उसे पुनः झुंड की ओर ढकेल देते हैं।

एक धार्मिक संस्था के सामने पत्थर के टुकड़ों से खेलती तीन बच्चियाँ

सोनमर्ग से आगे बढ़ते ही सड़क ऊँचाई की ओर बढ़ने लगती है। बालाटाल के थोड़ा आगे बढ़ने पर मचोई की लगभग साढ़े  पाँच हजार मीटर ऊँची चोटी दिखनी शुरु होती है। जो नदी सोनमर्ग तक सड़क के किनारे चल रही होती थी वो अब सिंध की गहरी घाटी का निर्माण करते हुए एक पतली लकीर सी दिखती है। 
मचोई के ग्लेशियर के आस पास का इलाका

सोनमर्ग से बढ़ते हुए हमें लेह तक के रास्ते का सबसे खतरनाक दर्रा मिला जिससे होकर गुजरना दिल दहलाने वाला था। कैसे पार किया हमने वो दर्रा? कैसी दिखती है अपने उद्गम स्थल के पास सिंध घाटी जानेंगे इस श्रंखला की अगली कड़ी में...

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11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर लग रहा पढ़ना और आपके साथ साथ देखना

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    1. शुक्रिया...जम्मू कश्मीर की वादियाँ हैं ही इतनी खूबसूरत..

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  2. सोनमर्ग बेहद बेहद बेहद खूबसूरत

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    1. सुंदर तो है सोनमर्ग पर इससे भी ज्यादा खूबसूरत मुझे इसके आस पास के इलाके लगे जो अभी भी अनछुए हैं।

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  3. मन मोहक। बर्फ के साथ ये कौन से पेड़ दिखाई दे रहे हैं?

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    1. ज्यादातर तो देवदार ही थे पर जिस चित्र की आप बात कर रहे हैं वो जूम कर खींचा गया है इसलिए ठीक ठीक अंदाज लगा पाना मुश्किल है।

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  4. बेनामीमई 01, 2018

    Good discription

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