पिछली बार की दीघा यात्रा में शंकरपुर एक ऐसी ही जगह थी। पर क्या सिर्फ शंकरपुर देखने के लिए ही हम दीघा जा रहे थे। नहीं नहीं कुछ और भी अनजाना था जिसके बारे में हमने हाल फिलहाल में बहुत कुछ सुना था। ये जगहें थी दीघा से करीब तीस किमी दूर का का मंदारमणि समुद्र तट और उड़ीसा बंगाल की सीमा पर स्थित तालसरी जहाँ एक नदी सागर से मिलने चली आती है।
इस बार हमने अपनी पिछली यात्रा से ये सबक सीखा था कि भीड़ भाड़ और गंदे पुराने दीघा के समुद्र तट के बजाए नए दीघा के होटलों में रहेंगे और पहले से आरक्षण करवा के जाएँगे। बारह दिसंबर 2009 को हम सुबह कड़ाके की ठंड में साढ़े पाँच बजे राँची से ट्रेन से खड़गपुर की ओर रवाना हुए। रेल यात्रा का सबसे ज्यादा आनंद बच्चे उठा रहे थे क्यूँकि धमाचौकड़ी के लिए ट्रेन में काफी जगह मौज़ूद थी।

हमारी ट्रेन मूरी से चांडील और टाटानगर होती हुई करीब सात घंटे में साढ़े बारह बजे खड़गपुर पहुँची। पिछली चित्र पहेली में जिस खतरनाक नाम वाले स्टेशन की बात की थी वो चांडील से थोड़ी देर आगे चलने पर करीब नौ बजे सामने आया। झारखंड में स्थित 'गुंडा बिहार' स्टेशन का ऍसा नाम पड़ा ये तो शायद वहीं का बाशिंदा बता सकेगा। पर जो भी हो बात बड़ी अज़ीब लगी...

पिछली बार ये सफ़र बस में तय किया था और उसका अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा था इसलिए इस बार एक सूमो पहले से ही खड़्गपुर स्टेशन पर मँगवा ली थी जिसमें तीन परिवार बड़ी आसानी से समा गए। खड़गपुर से दीघा जाने में सफ़र का पहले चालिस मिनट, राष्ट्रीय राजमार्ग पर पल में निकल जाते हैं। खड़गपुर से दीघा के रास्ते के बारे में पिछली दफ़े विस्तार से बता ही चुका हूँ। पर एक बार गाड़ी जब स्टेट हाइवे पर आती है तो सड़क उतनी अच्छी नहीं रह जाती। फिर भी करीब ढाई पौने तीन घंटे में हम अपने होटल सागरप्रिया में पहुँच चुके थे।
तो आइए सफ़र में ली गई कुछ तसवीरों से रूबरू हो लें।
ये है राष्ट्रीय राजपथ NH60

ये है ओवरब्रिज से एक तरफ...


कॉलेज में वैसे तो ड्रेस होती नहीं, होती तो है स्कूल में। पर अगर स्कूल ड्रेस ही साड़ी हो जाए तो नज़ारा कुछ यूँ ही तो दिखेगा...

सिनेमा यही तो है कस्बों में मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन

ये रहा नए दीघा में स्थित हमारा होटल सागरप्रिया
बगल में ही नए दीघा का समुद्रतट था जहाँ शाम को सूर्यास्त देखने निकले।

नए दीघा का समुद्र तट पुराने दीघा से ज्यादा फैला हुआ और अपेक्षाकृत साफ है पर इतना भी नहीं कि आप उसमें नहाने के लिए उतावले हों।

आपको जान कर आश्चर्य होगा कि हमारे तीन दिनों के दीघा प्रवास में हमने पुराने और नए दीघा तट पर कभी स्नान नहीं किया फिर भी कोई दिन ऍसा नहीं गया जब हमने समुद्र में गोते ना लगाए हों। हैं ना बातों में परस्पर विरोधाभास पर इस विरोधाभास के बारे में बात करेंगे अगली पोस्ट में..
और हाँ पिछली चित्र पहेली के विजेता का नाम यहाँ देखें... ..
I am surprised @ ur surprise @ girls wearing saree as school uniform 'cos two years ago while in ur town Ranchi i observed same thing ! There was one such school for sure .
ReplyDeleteNice to see u travel with ur family 'cos in my family there is no one to share my passion for travel and hence i go for Bike rides !
badhiya prstuti...sachitr sundar prstuti ke liye badhai
ReplyDeleteBehad sundar tasveer aur jaankari.. ek pal ko laga jaise ham bhi sair kar rahen hai..
ReplyDeleteSundar Prasututi ke liye dhanyavaad
अरे वाह ! हाइवे तो बड़ा चकाचक है. खड़गपुर का स्टेशन देखा हुआ है अपना काउंसिलिंग के लिए जाना हुआ था. कलकत्ता में नौकरी कर रहे दोस्त खूब जाते हैं दीघा. उनकी तस्वीरों में देखा है कई बार.
ReplyDeleteदिलचस्प वर्णन...दिघा के बारे में सुना है के उसे बंगालियों ने गन्दा कर दिया है...ये ही सुन कर कभी उस और गए नहीं...आपने भी इसी बात की पुष्टि की है...बहरहाल फोटो अति सुन्दर हैं...
ReplyDeleteनीरज
नीरज भाई बंगालियों की जगह आम भारतीय कहिए ज्यादा उपयुक्त रहेगा। आपने तो जूहू और चौपाटी का समुद्र तट देखा ही होगा। वहाँ भी वही नज़ारा रहता है। वैसे इस बार जहाँ मैं आपको ले जाऊँगा वो जगहें अभी भी अनजानी होने के कारण अपनी नेसर्गिक सुंदरता को समेटे हुए हैं।
ReplyDeleteअच्छे नजारें के साथ अच्छी पोस्ट।
ReplyDeleteभई, हमारे लिये तो ये सब नया ही है। मन्त्रमुग्ध से होकर समुद्र तट वाली पोस्ट देखते-पढते रहते हैं। दुर्भाग्य कि अभी तक समुद्र देखा ही नहीं है। पता नहीं कब देखना नसीब हो।
ReplyDeleteऔर हां, पहेली के विजेता को बधाई।
मनमोहक लगी आपकी यह पोस्ट.
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