बकरी बाजार के पंडाल की खासियत हमेशा से ये रही है कि इसके पास अपनी चुनी हुई थीम को प्रदर्शित करने के लिए काफी जगह है। इस बार यहाँ पश्चिम बंगाल के पूर्वी मिदनापुर जिले के तामलुक में स्थित किले और उसके प्रागण के एक पुराने मंदिर को प्रदर्शित किया गया है। किले की दीवारों में दिखती सीलन, लतर वाले पादपों की लटकती बेलें एक पुराने किले में घुसने के अहसास को पुरज़ोर करती हैं। जब हम वहाँ पहुँचे तो बारिश की एक लहर आ कर जा चुकी थी और उससे मंदिर और किले की लाल इँटों की दीवारें और स्याह हो कर अपने पुरातन होने की गवाही दे रही थीं।
बकरी बाजार से वापस लौट कर शाम हमने घर में बिताई। शाम से बारिश के तीन चार झमाझम दौर हो चुके थे। रात दस बजे लगा कि बारिश रुक गई है। सो हम रात ग्यारह बजे राँची की रंगत देखने के लिए निकल पड़े कोकर की ओर जो अपनी जगमगाती विद्युत सज्जा के लिए खास तौर पर जाना जाता है। कोकर जाने के पहले हम रुके काँटाटोली के 'नेताजीनगर पूजा समिति' के द्वार पर। इस बार यहाँ पंडाल में तीन ऐसी वस्तुओं का प्रयोग किया गया था जिनका हम रोजमर्रा की ज़िंदगी में अक्सर प्रयोग करते हैं। एक नज़र नीचे के चित्र को देख कर क्या आप पहचान सकते हैं कि क्या हैं ये तीन वस्तुएँ?
मुख्य मंडप तक पहुँचने के पहले गलियारे में भी शानदार सजावट थी...
जितनी मेहनत इस बाहरी साज सज्जा में की गई, उतनी ही माता को सजाने सँवारने में....
काँटाटोली से हम बढ़े कोकर की ओर। बच्चों के लिए कोकर जाना हमेशा खुशी का विशेष सबब रहा है। इस बार भी विद्युत सज्जा में दिखती झांकियाँ, शेर और मगरमच्छ के चलते फिरते पुतले और फिर पूजा मंडप के निकट लगने वाला मेला उनको आकर्षित कर रहा था। अब जब विद्युत सज्जा अगर फुटबॉल प्रेमी बंगाली कारीगर करेंगे तो फिर हमारे आक्टोपसी पॉल बाबा को स्पेन वाले बक्से पर बैठने का नज़ारा क्यूँ कर दिखाना भूल जाएँगे?
पर इस बार कोकर के पूजा पंडाल की साज सज्जा पिछले साल से फीकी रही।
कोकर से हम बढ़े कचहरी चौक की तरफ जहाँ इस साल वैष्णव देवी के मंदिर का मॉडल तैयार किया गया था। रात के साढ़े बारह बज रहे थे और बारिश पुनः प्रारंभ हो गई थी पर संग्राम पूजा समिति के पंडाल के बाहर जबरदस्त भीड जमा थी। अंदर बिजली से चलने वाले प्रारूपों की मदद से अघोरी साधु भैरवनाथ और दुर्गा माता द्वारा उनके संहार की कथा चल रही थी। भीड़ ने झटके से हमें अंदर ठेला। कथा चलती रही भक्त देवी के हर वार पर खुशी से जय माता दी का हर्षोन्नाद करते दिखे। क्या बच्चे क्या बड़े सभी भक्ति के रंग में रँगे थे।
हल्की बारिश अभी भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। रात्रि का एक बज चुका था। अब हमें अपने अंतिम पड़ाव रातू रोड की ओर बढ़ना था। बारिश में भींगते हमारे जैसे कई लोग थे। कुछ ही जन ऐसे थे जो छतरी के साथ चल रहे थे। रातू रोड भी हर साल की तरह सुंदर विद्युत सज्जा से चकाचौंध था।

चित्रों से सजी बहुत सुन्दर पोस्ट लगाई है आपने!
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आपके श्रम को नमन!
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असत्य पर सत्य की विजय के पावन पर्व
विजयादशमी की आपको और आपके परिवार को
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
धन्यवाद सैर कराने के लिए.
ReplyDeleteReally beautiful decorations Manish, I guess I have become too lazy to venture out.
ReplyDeleteJust marvelous Manish jee... all are just unique in there own way....Bahut bahut shukriya...to share over here....:))
ReplyDeleteइस वर्ष काशी में खैनी से एक पूजा पण्डाल बना था।तुर्रा यह कि तम्बाकू विरोधी सन्देश फैलाने के लिए।
ReplyDeletejuss gr8 . Of course Delhi is in India ,but not India.
ReplyDeleteमनीष भाई, आभार।
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..आप कितने बड़े सनकी ब्लॉगर हैं?
very readable post with nice pics ...
ReplyDeleteसभी पंडाल चित्र में बेहद बेहद आकर्षक और सुन्दर लग रहे हैं.
ReplyDeleteसूप, टोकरी और आइसक्रीम खाने वाले चम्मच से की गयी कलाकारी तो बेहद सुन्दर!
बहुत ही सुन्दर चित्रमय पोस्ट.
abhi katra katra bikhari bhikhri si awara zindagi ji raha hoon bhaut dino ke baad vaishali se laut kar aastha ka maha parv "chaat" manane mithilanchal ki rajdhani main hoon is bharupi soochna sanchar jaal ka anand kafi dino ke baad utahaya aur is pardesh main apne sahar ki prastuti dehki to maan thoda nostalgic ho gaya. dhanyavaad mujhe apne se jodnae ke liye........acha post hai
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