गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

माउंट आबू : आइए देखें गुरुशिखर का नैसर्गिक सौन्दर्य ...

सोलह नवंबर की सुबह बादलों से भरी थी। सुबह तरो ताज़ा होने के बाद हमारा पहला लक्ष्य गुरुशिखर था। माउंट आबू आने के पहले मैंने गुरुशिखर के बारे में खास सुन नहीं रखा था। पर जो मानचित्र मुझे स्थानीय पर्यटन केंद्र से मिला था उसमें देलवाड़ा मंदिर  के आगे गुरु शिखर की ओर जाती सड़क का उल्लेख अवश्य था। नक़्शे को ध्यान से देखने से स्पष्ट था कि अगर सबसे पहले हम माउंट आबू से पन्द्रह किमी दूर स्थित इस शिखर को देख लें तो वापस लौटते समय इसी रास्ते में पड़ने वाले ब्रह्माकुमारी शांति उद्यान (पीस पार्क) और देलवाड़ा मंदिर को देख सकते हैं। 

पिछला दिन और शाम हमने नक्की झील के आस पास के इलाके में गुजारी थी। सच कहूँ तो शहर का मुख्य हिस्सा आपको इस बात का अहसास नहीं करा पाता कि आप एक सुंदर से हिल स्टेशन में पधारे हैं। पर सुबह हम मुख्य मार्ग छोड़ कर जैसे ही शहर से चार पाँच किमी आगे बढ़े तब जाकर वो खूबसूरती दिखाई दी जिसकी उम्मीद हम पिछले दिन से ही लगाए बैठे थे। अरावली की छोटी छोटी पहाड़ियों के बीच पतली सी सड़क पर बढ़ती हमारी गाड़ी जब इस झील की बगल से गुजरी तो इसे देखकर मन प्रसन्न हो गया। चारों ओर से हरे भरे पेड़ों से घिरी इस झील का जल बिल्कुल शांत था। न पर्यटकों की भीड़ , ना नौकाओं की हलचल। ऐसा लगता था मानो इस हरियाली के बीच वो अपने आप में ही रमी हुई हो।

यहाँ के लोग इसे छोटी नक्की झील (Mini Nakki Lake) या ओरिया झील (Oriya Lake) भी  कहते हैं। ये प्राकृतिक झील नहीं है। दशकों पहले इस इलाके में लगातार आ रहे अकालों से निबटने के लिए यहाँ सरकार ने झील के लिए खुदाई शुरु करायी। मजदूरों को इस खुदाई के बदले निर्माण अवधि में रसद मुहैया कराई गयी। इस झील से थोड़ा आगे बढ़ने पर ओरिया का चेक पोस्ट आ जाता है। यहाँ से दो रास्ते अलग होते हैं एक दाहिनी ओर अचलगढ़ (Achalgarh) को चला जाता है।  



समुद्रतल से 1722 मीटर ऊँचे गुरुशिखर की चढ़ाई ओरिया के आगे से शुरु होती है। जैसे जैसे घुमावदार रास्ते से हम ऊपर की ओर जा रहे थे बादलों से हमारी दूरी कम होती जा रही थी। कभी कभी तो इधर उधर उड़ते विरल बादलों का झुंड अचानक ही हमारी गाड़ी के सामने आ जाता और तुरंत हल्की सी ठिठुरन से हम सभी कँपकपा जाते।



सुबह के ठीक दस बजे हम गुरुशिखर के पास पहुँच चुके थे। हमसे पहले भी वहाँ कई पर्यटक आ चुके थे। पहाड़ी के नीचे से शिखर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। सीढ़ियों के दोनों ओर इस तरह दुकानें बन गई हैं कि लगता है कि हम किसी बाजार के बीचो बीच से गुज़र रहे हैं। पिछली पोस्ट में जिस रंगीली मूली का स्वाद मैंने चखा था वो यहाँ भी बिकती नज़र आ रही थी।


गुरुशिखर पर भगवान दत्तात्रेय का मंदिर है। इसके ठीक नीचे एक और मंदिर है। जब हमने चढाई शुरु की थी कोहरे की वजह से शिखर पर का मंदिर दिख नहीं रहा था।


पर समय के साथ धुंध छँटती जा रही थी।  करीब पन्द्रह मिनट की इस चढ़ाई के बाद हम अरावली पर्वत के सबसे ऊँचे शिखर के सामने थे। मंदिर के ठीक नीचे कैक्टसनुमा पौधों की झाड़ियाँ हैं जो इस हरे भरे इलाके में थोड़ी अलग दिखती हैं।  मुख्य मंदिर में अभी भक्तों की भीड़ लगी थी। सो हमने शिखर से दिखते मनमोहक दृश्यों को अपने कैमरे में क़ैद करने की क़वायद शुरु की।


शिखर के उत्तर पश्चिमी सिरे पर टेलीफोन के विशाल टॉवर दिखाई देते हैं। चित्र में दाहिनी तरफ आपको छोटे छोटे मंदिर भी दिखेंगे जो संभवतः भगवान दत्तात्रेय की माता को समर्पित हैं।

ऊपर आने वाले आगुंतकों की संख्या नीचे निरंतर बढ़ती पर्यटक वाहनों की संख्या से साफ पता लग रही थी।


बादलों की सूरज से आँख मिचौनी निर्बाध ज़ारी थी।  धूप छाँव के इस खेल का अदाजा आप इस चित्र से लगा सकते हैं। पास की पहाड़ी पर सूर्य चमक रहा था ...

और दूसरी ओर ये झील बादलों के साथ अठखेलियों में व्यस्त थी............ 


चोटी पर पौन घंटे का समय बिताकर हमे मंदिर की ओर चल पड़े। दरअसल हिंदू धर्मग्रंथों में दत्तात्रेय को ब्रह्म विष्णु और महेश का अवतार माना गया है। 'दत्त' शब्द का मतलब होता है देना। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्म विष्णु और महेश ने ॠषि अत्रि और उनकी पत्नी अनसुया को पुत्र दिया। ॠषि अत्रि पुत्र होने की वजह से उनका नामकरण दत्तात्रेय हुआ ।




मंदिर के पीछे सड़क यहाँ की वेधशाला तक जाती है जिसका नाम माउंट आबू वेधशाला (Mount Abu Observatory) है। शिखर से वेधशाला तक जाते इस रास्ते का दृश्य देखते ही बनता है।


यहाँ की वेधशाला मुसाफ़िरों के देखने के लिए खुली नहीं है।1680 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस वेधशाला में एक इन्फ्रारेड टेलीस्कोप है जिससे खगोलिय पिंडों के बारे में अध्ययन किया जाता है।


गुरुशिखर पर बिताया गए वे दो घंटे मेरे माउंट आबू के सफ़र का सबसे यादगार लमहे रहेंगे। गुरुशिखर की छटा आपको कैसी लगी जरूर बताइएगा। इस यात्रा की अगली कड़ी में ले चलूँगा आपको विश्व प्रसिद्ध देलवाड़ा मंदिर में..  मुसाफिर हूँ यारों

 माउंट आबू से जुड़ी इस श्रृंखला में अब तक

23 टिप्‍पणियां:

  1. मनीष जी, बहुत अच्छा लेखन, बहुत अच्छे चित्र, जिसे आप मूली कह रहे हो वह शलजम होती होती हैं. आपकी अगली पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी.

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    1. प्रवीण मैंने उसे खा कर देखा था और वहाँ लोगों से पूछा भी था। शलजम तो मुझे ज़रा भी पसंद नहीं।

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  2. झील भले प्राकृतिक न हो, बहुत सुन्दर लग रही है.

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  3. मनीष जी...आपने बहुत ही अच्छा वर्णन किया हैं खूबसूरत फोटोओ के साथ.....|
    पिछले साल में हम भी माउन्ट आबू और उदयपुर के सफ़र पर गए था बहुत ही सुन्दर जगह हैं यह ...आप के लेख पढ़कर कर हम को सब कुछ वैसे ही याद आ गया ....| मैंने भी कुछ माउन्ट आबू और उदयपुर के सफ़र के बारे एक यात्रा लेख अपने ब्लॉग "सफ़र हैं सुहाना" पर लिखा हैं | उसका लिंक हैं
    http://safarhainsuhana.blogspot.in/search?updated-min=2011-01-01T00:00:00%2B05:30&updated-max=2012-01-01T00:00:00%2B05:30&max-results=4

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    1. घुमक्कड़ पर आपका वो लेख देखा था और अब ब्लॉग पर भी देख लिया। हम आधार देवी नहीं जा पाए थे।

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  4. आपकी कलम से हमने भी गुरुशिखर देख लिया। हम वहाँ नहीं जा पाए थे।

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    1. अगली बार जाएँ तो गुरुशिखर तक का सफ़र जरूर करें। माउंट आबू का असली प्राकृतिक सौंदर्य इसी इलाके में दिखता है।

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  5. aapka ye blog maine padha .. bahut achha lekh and well descriptive mount abu jane ki lalasa jagi..

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  6. मन्त्र मुग्ध कर दिया आपकी इस यात्रा ने...वाह...चित्र और वर्णन दोनों उच्चस्तरीय...

    नीरज

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  7. अचलगढ़ में यह मुली मैने भी बिकती हुई देखि थी ..और गुरु शिखर क बारे में थोडा बहुत मैने अपनी पोस्ट में लिखा हैं ..मैं ऊपर तो नहीं जा सकी पर बच्चे ऊपर का घंटा बजाकर ही लौटे थे ...इन १४ सालो में काफी कुछ बदल गया हैं ...

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    1. जी हाँ हमने भी गुरुशिखर जाते हुए और फिर गुरुशिखर पर इस मूली को बिकते देखा। आते वक़्त तो ताजी मूलियों को नमक के साथ खाने का आनंद भी लिया।

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  8. Mujhe aap ka lekh bahut achcha Laga kunki main bhi hall he main maunt Abu ke safer par Gaya thaa jitna is k bare main Suna thaa ye usse kahin khubsurat hai mauka milaMto dobarad maunt abu ghumne jaunga

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