जापान जाने वाले हर व्यक्ति के मन में ये इच्छा जरूर होती है कि वो वहाँ की बुलेट ट्रेन में चढ़े। हमारे समूह ने भी सोचा था कि मौका देखकर हम तोक्यो में रहते हुए अपनी इस अभिलाषा को पूरा करेंगे। ये हमारी खुशनसीबी ही थी कि हमारे मेजबान JICA ने खुद ही ऐसा कार्यक्रम तैयार किया कि तोक्यो से क्योटो और फिर क्योटो से कोकुरा की हजार किमी की यात्रा हमने जापानी बुलेट ट्रेन या वहाँ की प्रचलित भाषा में शिनकानसेन से तय की। जापान प्रवास के अंतिम चरण में कोकुरा से हिरोशिमा और फिर वापसी की यात्रा भी हमने इस तीव्र गति से भागने वाली ट्रेन से ही की। वैसे अगर ठीक ठीक अनुवाद किया जाए तो शिनकानसेन का अर्थ होता है नई रेल लाइन जो कि विशेष तौर पर तेज गति से चलने वाली गाड़ियों के लिए बनाई गई। शिनकानसेन का ये नेटवर्क वैसे तो पाँच हिस्सों में बँटा है पर हमने इसके JR Central और JR West के एक छोर से दूसरे छोर तक अपनी यात्राएँ की। चलिए आज आपको बताएँ कि जापानी बुलेट ट्रेन में हमारा ये सफ़र कैसा रहा?
पहली नज़र में 16 डिब्बों की शिनकानसेन, ट्रेन कम और जमीन पर दौड़ने वाले हवाई जहाज जैसी ज्यादा प्रतीत होती है। इसकी खिड़कियों की बनावट हो या इसके इंजिन की, सब एक विमान में चढ़ने का सा अहसास देते हैं। वैसे तो टेस्ट रन (Test Run) में ये बुलेट ट्रेनें पाँच सौ किमी का आँकड़ा पार कर चुकी हैं पर हमने जब तय की गई दूरी और उसमें लगने वाले समय से इसकी गति का अनुमान लगाया तो आँकड़ा 250 से 300 किमी प्रति घंटे के बीच पाया। वैसे आधिकारिक रूप से इनकी अधिकतम गति 320 किमी प्रति घंटे की है।
पूरी यात्रा के दौरान एक बार हमें हिरोशिमा में ट्रेन बदलनी पड़ी। जब हमने अपने टिकट देखे तो हम ये देख कर आवाक रह गए कि हमारी ट्रेन के हिरोशिमा पहुँचने और हिरोशिमा से दूसरी ट्रेन के खुलने के समय में मात्र दो मिनट का अंतर था। हमारे मेजबान से बस इतना एहतियात बरता था कि दोनों गाड़ियों के कोच इस तरह चुने थे कि वे आस पास ही रहें। पर ज़रा बताइए तेरह हजार येन के टिकट पर दो मिनटों का खतरा भला कौन भारतीय उठाने को तैयार होगा?
अब वास्तव में क्या हुआ वो भी सुन लीजिए। हमारी ट्रेन समय से पहुँची और दूसरी ट्रेन अपने समय से आधा मिनट पहले आ गई पर डेढ़ मिनट के अंतराल में हमारा एक दर्जन लोगों का समूह बिना किसी भागदौड़ के आराम से सामान सहित दूसरी ट्रेन में अपनी जगह ले सका। ये है जापानी ट्रेनों की विश्वनीयता। जापान से लौटने के बाद जब मैंने वहाँ के आधिकारिक आँकड़ों पर नज़र डाली तो पता चला कि प्राकृतिक आपदाओं की वजह से होने वाले विलंबों को भी मिला लें तो पिछले साल प्रति ट्रेन का सालाना औसत विलंब मात्र 36 सेकेंड का रहा !
वैसे शिनकानसेन के किसी स्टेशन पर आने और छूटने की प्रक्रिया भी बड़ी दिलचस्प है। ऊपर जो महाशय नज़र आ रहे हैं इनके आदेश से ही ट्रेन आती और स्टेशन छोड़ती है। ट्रेन के आने के बाद एक बटन आपरेट होता है जिससे विभिन्न डिब्बों के सारे दरवाजे एक साथ खुल जाते हैं। निर्धारित समय होने के बाद ये गाड़ी को यूँ ही हरी झंडी नहीं दिखाते। पहले ये इनके कक्ष के बगल में लगे इन आठ कैमरों को मुआयना करते हैं। स्टेशन के सारे आगमन बिंदुओं और प्लेटफार्म के विभिन्न हिस्सों में ये कैमरे लगे हुए हैं। स्टेशन प्रबंधक सारी स्क्रीन्स को देख ये सुनिश्चित कर लेते हैं कि कहीं कोई ट्रेन पकड़ने के लिए दौड़ता भागता तो नहीं आ रहा। अगर ऐसा नहीं होता तो ट्रेन को खुलने का आदेश मिल जाता है। जरा सोचिए अगर ये व्यवस्था भारत में लगाई जाए तो शायद ट्रेन कभी खुले ही ना :)
शिनकानसेन की अंदर की साज सज्जा भी एक विमान जैसी ही रहती है। धूम्रपान करने के लिए ट्रेन में अलग डिब्बों की व्यवस्था है। यात्रा के दौरान आप मुफ्त में वॉयरलेस इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं। ट्रेन में पब्लिक कालिंग बूथ की तरह फोन भी रखे दिखाई दिए।
और ये है ड्राइवर साहब का केबिन ! एक बार इन्होंने ट्रेन दौड़ाई कि हमारा ध्यान खिड़की से बाहर दिखने वाले दृश्यों पर चला गया। बुलेट ट्रेन से चित्र खींचने के लिए हाई ब्रस्ट मोड (High Burst Mode) का उपयोग करना बेहद जरूरी है और उसमें भी तब परिणाम अच्छे आते हैं जब आप आप जिस दृश्य पर फोकस कर रहे हों वो ट्रेन से कुछ दूरी पर हो। अब तक हमने जापान के बड़े शहरों को ही देखा था। ट्रेन की इस यात्रा में जापान के हरे भरे खेत खलिहान सामने दिखे। जापान में समतल जमीन की कमी है और थोड़े थोड़े अंतराल पर छोटी बड़ी पहाड़ियाँ आ जाती हैं इसलिए एक सेकेंड में आप धान के खेतों के बगल से गुजर रहे होते हैं तो कुछ ही क्षणों में आप किसी सुरंग के अंदर होते हैं। तेज रफ़्तार से भागती ट्रेन में कभी अचानक ही समुद्र अपनी झलक दिखा देता है तो कभी कल कारखाने तुरंत आँखों के सामने से गुजर जाते हैं यानि सही समय में चित्र खींच पाना एक बेहद दुष्कर कार्य है।
आधे घंटे में टीटी महाशय आ गए और फिर उनके पीछे पीछे ट्रेन परिचारिका भी जलपान कराने के लिए आ गयीं। अब ये ना समझिएगा की शताब्दी और राजधानी की तरह इन ट्रेनों में भोजन का किराया शामिल होता है।
हाँ ये जरूर है कि आप ट्रेन में चाहें तो मदिरापान कर सकते हैं। वैसे भी पीना जापानियों का प्रिय शगल है।
कई लोगों ने पिछली पोस्ट पर मेल से और अपनी प्रतिक्रियाओं में बुलेट ट्रेन से जुड़े मेरे अनुभवों को साझा करने का अनुरोध किया था। आशा है उन्हें इस सफ़र में आनंद आया होगा।
दीपावली की घड़ियाँ काफी करीब आ गयी हैं सो मुसाफ़िर हूँ यारों के पाठकों को
इस पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ। अगले हफ्ते आपसे मुलाकात होगी जैसलमेर के
सफ़र पर..अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो फेसबुक पर मुसाफ़िर हूँ यारों के ब्लॉग पेज पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें। मेरे यात्रा वृत्तांतों से जुड़े स्थानों से संबंधित जानकारी या सवाल आप वहाँ रख सकते हैं।
bahut sandar vrattant.dhanyvad,manish ji.subh deepawali
ReplyDeleteपोस्ट को सराहने के लिए धन्यवाद प्रशांत !
Deleteशुभ दीपावली........
ReplyDeleteआशा है आपकी दीपावली भी आनंदमयी रही होगी।
DeleteBhut sundar.
ReplyDeleteShukriya Arjun !
Deleteसन्नाट पोस्ट , एकदम मजेदार और अदभुत । बुलेट ट्रेन की सी रफ़्तार वाली । आनंद आ गया
ReplyDeleteजानकर खुशी हुई !
Deleteबुलेट ट्रेन में सारे देसी भाई लोग.... ये सब क्या है..
ReplyDeleteउधर ट्रेन में मगनलाल चिक्की भी आती है क्या बिकने को?
एक दर्जन लोग जब साथ चलेंगे तो फोटो फ्रेम में देशी ही तो नज़र आएँगे। :) वैसे हमारे समूह के साथ तीन जापानी भि चल रहे थे।
Deletebahut sahi...
ReplyDeleteShukriya Sachin !
Deleteट्रेन तो कहीं की भी हो, आकर्षित करती है। सुन्दर विवरण।
ReplyDeleteखासकर अगर वो बुलेट ट्रेन की श्रेणी की हो...
Deleteअति उत्तम , जापानी रेल का जवाब नहीः और आपने फ़ोटो भी बहुत बढ़िया खींची हैं ३६ सेकंड एक साल मैं लेट होना बहुत हैरानी की बात हैं हमारे यहह तो रेल गाड़ी दिनों मैं लेट होती हैं सेकंडो मैं नहि…
ReplyDeleteजीवन के हर क्षेत्र में अनुशासित होने की बात किताबों में तो अच्छी लगती थि पर जापान जाकर वहाँ उसका क्रियान्वयन भि देख लिया।
Deleteआश्चर्य जनक। ……… अद्भुत। …………अभि हमारे यहाँ तो एयर इण्डिया जापानी रेल से पीछे है।
ReplyDeleteहा हा !सही प्रोफेशनलिज्म में तो जापानी रेल हमारी वायु सेवाओं से कहीं आगे है।
Deletemast h reeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee
ReplyDeleteShukriya !
Deleteपर ज़रा बताइए तेरह हजार येन के टिकट पर दो मिनटों का खतरा भला कौन भारतीय उठाने को तैयार होगा? " -such thinking of Indians are hinderance to the so called "Achhe Din"... Nice travel experience
ReplyDeleteजापान में बुलेट ट्रेन की तो बात छोड़ो पैसेंजर ट्रेन भी समय पर आती है। उसके और एक्सप्रेस में सिर्फ गति का फर्क होता है डिब्बों का नहीं। भारत में पैसेंजर या सामान्य डिब्बों में यात्रा करने का मतलब है पिस कर जाना। अच्छे दिन तब आएँगे जब रेलवे अपनी मूलभूत सुविधाओं सफाई, सुरक्षा और समय की पाबंदी को सुनिश्चित करने के लिए सुदृढ़ आर्थिक ढाँचा तैयार करेगा।
Deleteजब तक ये नहीं होगा भारतीयों की अपनी रेलवे की प्रगतिशीलता के बारे में सौच कैसे बदलेगी?
bahut sunder varnan.....asha hai hume bhi kabhi india mein asi train mein safar karne ka moka milega.
ReplyDeleteजी वो वक़्त अब करीब आ रहा है। :)
Deleteआपके साथ कुछ नया जानने को मिला..बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteजानकर खुशी हुई।
DeleteBahut achha vivaran hai. Aisa lag raha tha ki main khood yatra kar raha hu.
ReplyDeleteशुक्रिया..मेरी यही कोशिश रहती है कि पढ़ने वालों को भी ऐसा महसूस हों कि वो सफ़र में साथ हैं।
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