मुझे बचपन से ही रेल में सफ़र करना पसंद रहा है। मज़ाल है कि रेल के सफ़र में मुझसे कोई खिड़की की जगह छीन ले। आजकल तो रेलवे की समय सारणी में मुख्यतः बड़े स्टेशन का जिक्र रहता है पर उस वक़्त महीन छपाई में बीच वाले छोटे छोटे उन सभी स्थानों का उल्लेख रहता था। हर यात्रा के पहले मैं उस टाइम टेबल का उसी तरह परायण करता जैसे कि परीक्षा के पहले लोग किताबों को बाँचते हुए करते हैं।
रेल के निकलते धुएँ के साथ पटरी पर दौड़ती ट्रेन, सामने से निकलते हरे भरे
खेत, छोटे बड़े घर, काम करते लोग इन सबको अपलक निहारते हुए अगले स्टेशन या
आने वाली नदी की प्रतीक्षा करना मेरी आदत में शुमार हो गया था। डिब्बे में
कहीं भी कोई पूछता कि अगला स्टेशन कौन सा होगा तो छूटते ही मेरा जवाब तैयार
होता और मुझे ये करते बेहद संतोष का अनुभव होता।
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ये नज़ारा है राँची से बस बीस किमी की दूरी पर स्थित कस्बे टाटीसिलवे के बाहर का (Near Tatisilwai) |
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ट्रेन के वातानुकूल डिब्बों में सफ़र करते हुए ना तो स्लीपर की वो खिड़की रही जिसकी छड़ों के बीच चेहरे को घुसाकर पटरियों के साथ कदम ताल मिला सकूँ और ना ही यात्रियों के अनिर्दिष्ट सवालों को जवाब देने की बाल सुलभ तत्परता। पर रेल की खिड़कियों का मोह उसी तरह आज भी बरक़रार है। कार्यालय के कामों से जाऊँ या परिवार के साथ खिड़की पर कब्जा आज भी मेरा ही होता है।
मेरा मानना है किसी स्थान के लिए किए गए सफ़र जितनी ही महत्त्वपूर्ण वो डगर होती है जिससे आप अपनी मंजिल तक पहुँचते हैं। ऐसी ही एक डगर को आँखों से नापने का मौका मुझे विश्व पर्यटन दिवस पर मिला। ये सफ़र था राँची से आसनसोल तक का। झारखंड एक ऐसा प्रदेश है जहाँ मानसून और उसके बाद की हरियाली देखते ही बनती है। एक बार आप शहर की चौहद्दी से निकले तो फिर दूर दूर तक जिधर भी आपकी नज़रें जाएँगी हरी भरी पहाड़ियाँ और उनकी तलहटी में फैले धान के खेत आपका मन मोह लेंगे। इन दिनों यही रंग रूप है झारखंड से सटे बंगाल और ओड़ीसा का भी। ईंट पत्थरों की दुनिया से बाहर निकलते ही जब ऐसे दृश्य दिखते हैं तो आँखें तृप्त हो जाती हैं। तो चलें ऐसी ही एक यात्रा पर जो ट्रेन की खिड़कियों से गुजरती हुई आप तक पहुँची है..
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हरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला ये गगन, के जिस पे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन |
सारे रास्ते धान के खेतों के साथ धूप की आँख मिंचौनी चलती रही। ज्यूँ ही बदरा छाते हैं धान की बालियाँ गहरी हरी हो जाती हैं और धूप के आते ही धानी रंग में रँग जाती हैं।
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नीलगगन में उड़ते बादल आ आ आ, धूप में जलता खेत हमारा कर दे तू छाया |
बताइए कितना अच्छा लगेगा ना कि इस धान के खेत के मध्य में खड़े उस पेर के नीचे एक पूरा दिन बिता दिया जाए..
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झारखंड बंगाल की सीमा पर झालिदा की पहाड़ियाँ |
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बलखाती बेलें, मस्ती में खेले, पेड़ों से मिलके गले नीले गगन के तले.. ..धरती का प्यार पले |
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दामोदर नदी, चंद्रपुरा के नजदीक Near Chandrapura, Bokaro |
कभी बंगाल का शोक कहीं जाने वाली दामोदर अब जगह जगह थाम ली गई है। सारा साल अपनी चट्टानी पाटों के बीच सिकुड़ती हुई बहती है। हाँ जब बारिश आती है तो इसका मन भी मचल मचल उठता है उमड़ने को।
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जमुनिया नदी, चंद्रपुरा और जमुनिया टाँड़ के बीच |
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कहीं धूप कहीं छाँव आज पिया मोरे गाँव |
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किता घाटी : सोचिए गर ये तार ना होते.. Kita Valley near Silli |
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गंगाघाट से सटे जंगल Forest near Gangaghat, Ranchi |
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इन रेशमी राहों में इक राह तो वो होगी तुम तक जो पहुँचती है इस मोड़ से जाती है |
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बहुत मनमोहक यात्रा का चित्रांकण।
जवाब देंहटाएंआपकी यह लेख मुझे अपने घर गाँव की खेतो की हरियाली से का दर्द का अहसास दिला रहा है । मन करता है, काश!वो दिन फिर आये जब बिना किसी फिक्र के खेतो के बीच पगडंडी मे मस्त मगन होकर दोस्तो के साथ दौड़ा करते थे ।
चित्रों को पसंद करने के लिए धन्यवाद.. आशा है आपकी मनोकामना शीघ्र पूर्ण होगी..
हटाएंतब तो कहना पड़ेगा," ये वादियाँ ये घटाएं, बुला रही है मुझे"।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल बुला रही हैं खास कर इस मौसम में :)
हटाएंहरियाली और रास्ते !!!
जवाब देंहटाएंहरियाली और रास्ते..दिल को हरा रखने के वास्ते :)
हटाएंजबरदस्त हरियाली के दर्शन हो गए, लगता है मानसून अच्छा रहा है
जवाब देंहटाएंहाँ हर साल के औसत के अनुसार अपेक्षा के मुकाबले नब्बे से पंचानबे फीसदी बारिश हुई है झारखंड में।
हटाएंझारखंड मुझे सबसे ज़्यादा पसंद है।
जवाब देंहटाएंआपका ये प्रेम आगे भी बरक़रार रहे ;)
हटाएंवाह, झारखंड भी इतना मनमोहक हो सकता है या ये आपकी नजर का कमाल है.
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