पिछले तीन दिनों में राँची के डेढ़ से दो दर्जन मुख्य पंडालों से गुजरना हुआ। हर साल मैं आपको अपने पसंदीदा पंडालों के बारे में उनकी सचित्र झाँकी के साथ बताता रहा हूँ। इस बार शहर के सबसे सुंदर और कलात्मक पंडाल का तमगा मुझे रातू रोड के इस पंडाल को पहनाते हुए कोई झिझक नहीं है। वैसे तो ओसीसी क्लब, रेलवे स्टेशन, बकरी बाजार और बाँधगाड़ी के पंडालों ने भी मुझे आकर्षित किया पर जो नवीनता औेर रचनात्मकता मुझे इस पंडाल में नज़र आई वो बाकियों में इससे कम रही। हाँ ये बता दूँ इसके आलावा मैंने ऊपर जिन पंडालों का जिक्र किया वो मेरी सूची में दूसरे से पाँचवे क्रम में है। पंडाल परिक्रमा के अगले अंक उनको समर्पित रहेंगे पर आज देखिए कि क्यूँ है रातू रोड का ये पंडाल सबसे सुंदर..
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झारखंड की कला संस्कृति को दर्शाता रातू रोड का भव्य पंडाल |
दुर्गा पूजा का समय राँची में रंगों की छटा बिखरने का समय होता है। अधिकांश पंडाल इतने चटख रंगों में अचानक आँखों के सामने आते हैं कि विश्वास ही नहीं होता कि हम वास्तविक दुनिया में विचरण कर रहे हैं। माता के दर्शन के साथ सारे लोग इस खूबसूरती को अपनी आँखों और कैमरे में बटोरने के लिए तत्पर होते हैं। रातू रोड के पंडाल में मैंने लोगों को रंगों की इस इस छटा से चमत्कृत होता पाया। कुछ ही देर के लिए ही सही कारीगरों की मेहनत उनके चेहरे पर खुशियों की रेखाएँ खींचने में सफल रही थी।
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मुख्य द्वार पर आम जनमानस को छोटी छोटी आकृतियों में झूमते गाते दिखाया गया है। |
इस बार इस पंडाल की थीम थी झारखंड की लोककला के प्रदर्शन की। पंडाल के अंदर और बाहर की सजावट इसी थीम को केंद्र में रखकर की गयी थी।
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पंडाल का पूर्ण स्वरूप और उसे देखने उमड़ती भीड़ |
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एक अलग कोण से पंडाल का एक दृश्य |
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सोहराई चित्रकला से सुसज्जित दीवारें |
पंडाल के अंदर और बाहर की दीवारों पर झारखंड की सोहराई चित्रकला का प्रदर्शन किया गया है। आदिवासी घरों की दीवारों में प्रकृति से जुड़े विषयों जैसे जानवर, जंगल, फूल पत्तियों को चूने और मिट्टी से अंकित कर सजाने की पुरानी परंपरा है जिसे सोहराई चित्रकला के नाम से जाना जाता रहा है। इस कला को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने राँची के कई सड़कों के किनारे कई जगह इस कला को प्रदर्शित किया है पर इस लुप्त होती कला को और आगे लाने की आवश्यकता है। यह पंडाल इस ओर आंगुतकों में इस कला की लोकप्रियता बढ़ाने में सफल रहा है।
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मोहित करती पंडाल की आंतरिक साज सज्जा |
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महिसासुर की मति को बदला हुआ दिखाया गया इस पंडाल में |
हर बार दुर्गा को महिसासुर का संहार करते दिखाया जाता है। इस बार यहाँ के आयोजकों ने इसे एक अलग रूप दे दिया। पंडाल में दिखाया गया कि महिसासुर को भी अपनी गलतियों का भान हुआ और वो देवी के चरणों में अपनी भूल का पश्चाताप कर रहा है।
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फेंकने वाले सामान से बनी कलाकृतियाँ |
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झंडे के रंग में रँगे भाले |
पंडाल के बाहर बहुत सारी कलाकृतियों में वैसे सामान का इस्तेमाल हुआ है जिसे हम अक्सर फेंक देते हैं। बाहर खड़ी मूर्तियों में प्लास्टिक की बोतल, मुकुट में साइकिल के पहिए की चकरी का इस्तेमाल हुआ है। घोड़ों को ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि वो कुर्सी की सहायता से बनाए गए हैं।
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कुर्सियों से बने घोड़े |
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पारंपरिक ढोल के साथ नाचते गाते नर्तक |
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बाँस की रंग बिरंगी सीढियों से सजा पंडाल का पीछे का हिस्सा |
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पंडाल के दूसरी ओर यहाँ की चिरपरिचित विद्युत साज सज्जा |
तो कैसा लगा आपको ये पंडाल? पंडाल परिक्रमा की दूसरी कड़ी में मैं ले चलूँगा आपको रेलवे स्टेशन पर बनाए गए पंडाल में जहाँ माँ दुर्गा महिसासुर के साथ दशानन भी मौजूद हैं ।
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राँची दुर्गा पूजा पंडाल परिक्रमा 2018
रोचक. खासकर महिषासुर का देवी के चरणों में.
जवाब देंहटाएंहाँ पंडाल के खलनायक तो बदल रहे हैं पर वास्तविक जीवन में नए पैदा हो रहे हैं।
हटाएंपिछली दो तीन सालो से आपकी यह सीरीज पढ़ रहा हूँ। बढ़िया वृतांत होता है, बैठे बैठे आप रांची घुमा देते हो।
जवाब देंहटाएंठीक ऐसा ही रामनवमी का सुना है, आपकी आखों से देखने का इन्तेजार है
प्रकाश जी शुक्रिया इस श्रंखला को विगत कुछ सालों से पढ़ने और पसंद करने के लिए। रामनवमी भी राँची में धूमधाम से मनाई जाती है। पर सच तो ये है कि जो आनंद मुझे दुर्गा पूजा में पंडालों की कुशल कारीगिरी आप तक पहुँचाने में आता है उसका अंशमात्र भी रामनवमी मनाने वालों के उग्र तेवर को देखने में नहीं आता है।
हटाएंमेरे लिए त्योहारों का मतलब भक्ति, कला और उल्लास का समागम देखने में है। रामनवमी में अखाड़ों का शक्ति प्रदर्शन मुझे आकर्षित नहीं करता। यही वजह है मैंने उस उत्सव पर आज तक लिखा नहीं।
रामनवमी का इस वजह से कहा कि पुरे नागपुर पठार में रांची की ही रामनवमी काफी प्रसिद्ध है। अन्य जगह इसका उदाहरण दिया जाता है।
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