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गुरुवार, 29 अगस्त 2019

वेनिस : कुछ लफ़्ज़ों की है, इस शहर की कहानी ...निखरते मकां और वो बहता सा पानी Venice Boat Ride

वेनिस की यात्रा एक ख़्वाब सरीखी थी। कब ये सपना आँखों के आगे तैरा, स्मृतियों में शामिल हुआ और फिर निकल गया ये उस थोड़े से समय में पता ही नहीं चला। 

कभी कभी तो ये लगता है कि वेनिस के चारों ओर जो लैगून है वो एड्रियाटिक सागर की फैली हुई बाहें हों। वही बाहें जो नहरों का आकार लेकर वेनिस की ओर मानो खिंची चली आई हों। अपने बाहुपाश में समोने को आतुर। पर मेरी सोच उस सागर जैसी नहीं। 



आज भी मैं जब वेनिस को याद करता हूँ तो वो शहर एक तिलिस्म सा लगता है जिसके जादू को मैं तोड़ना नहीं चाहता। बस दूर से टकटकी लगाए देखते रहना चाहता हूँ।

लगता है पास से इस शहर को छूने से ये मैला हो जाएगा। आज भी वेनिस में आने वाले लाखों आंगुतक दिन भर रह कर उड़न छू हो जाते हैं। अब वो करें भी क्या ? सुंदरता के अपने नुकसान जो ठहरे। ढेर सारे यात्री मतलब ढेर सारा प्रदूषण और आसमान छूती कीमतें। इस शहर से कुछ लमहे जो मैंने भी अपनी यादों में इन तस्वीरों के माध्यम से सहेज रखे हैं वो आज आपकी नज़र..



वेनिस पोर्ट (Port of Venice)
समुद्र से वेनिस एक लैगून के ज़रिये जुड़ा हुआ है। इस लैगून के तीन मुहाने हैं जिससे वेनिस में प्रवेश किया जा सकता है।  चिंता की बात ये है कि पर्यटन को बढ़ावा देने के चक्कर में यहाँ क्रूज पर आने वाले बड़े जहाजों की संख्या बढ़ गयी है। इनकी आवाजाही से लैगून में प्रदूषण बढ़ता है और कई बार ज्वार के समय लहरें असमान्य रूप से ऊँची होकर शहर को बेवजह भिंगो देती हैं। क्रूज से एक साथ इतने पर्यटक शहर में दाखिल हो जाते हैं कि यहाँ रहने वालों को उनका शहर पराया लगने लगता है। इन्हीं कारणों से इन जहाजों को शहर के नज़दीक न आने देने के लिए समय समय पर विरोध होता रहा है।

बारिश में भींगा वेनिस
दो साल पहले इस समस्या का निदान करने के लिए वेनिस के मेयर ने घोषणा की कि बगल के शहर Marghera में क्रूज के रुकने की व्यवस्था की जाएगी और वेनिस के बंदरगाह का इस्तेमाल सिर्फ सिर्फ छोटे जहाजों कर पाएँगे। 



यानी वेनिस के मेयर क्रूज तो यहाँ बंद नहीं करेंगे क्यूँकि उससे इटली के इस शहर को रोज़गार के कई अवसर मिलते हैं पर पर्यावरणविदों की संतुष्टि के लिए ये उसे शहर से दूर अवश्य ले जाएँगे। 




संता मारिया डेल रोज़ारियो चर्च (Church of Santa Maria del Rosario)

अठारहवीं शताब्दी में बनाया गया चर्च जो कि आजकल डोमेनिकन संप्रदाय द्वारा संचालित होता है। वेनिस में इस चर्च को जेसुआती के नाम से भी जाना जाता है


संत मार्क गिरिजे का बेल टॉवर

वेनिस पहुँचते ही सबसे पहले जिस इमारत पर नज़र पड़ती है वो है संत मार्क गिरिजे का बेल टॉवर। नवीं शताब्दी में शुरुआती निर्माण के बाद इसे लाइटहाउस की तरह इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि अगले तीन सौ सालों में ये सौ मीटर ऊँचे घंटा घर में तब्दील हो गया। इसके बाद कभी बिजली गिरने और कभी आग लगने से इसे कई बार नुकसान पहुँचा और इसका पुनर्निर्माण किया जाता रहा।



डोज़ का महल (Doge's Palace)


अब अगर डोज़ शब्द आपको परेशान कर रहा हो तो ये समझ लीजिए कि इसका खुराक से कोई लेना देना नहीं बल्कि ये तो अंग्रेजी के ड्यूक शब्द का पर्याय है। मध्यकालीन यूरोप में वेनिस का मुख्य प्रशासक डोज़ ही कहलाता था। वेनिस की ये इमारत जो अपने हल्के नारंगी  रंग से दूर से ही पहचानी जाती है चौदहवीं शताब्दी में बनाई गयी थी।



पुंटा डेला डोगाना (Punta Della Dogana)


वेनिस की सबसे लोकप्रिय नहर है यहाँ की ग्रैंड कैनाल। शहर के बीचो बीच निकलती इस सर्पीलाकार नहर के दोनों ओर पुनर्जागरण काल की कई मशहूर इमारतें और खूबसूरत पुल हैं। ये नहर जहाँ जूदेक्का कैनाल से मिलती है उसी कोने पर पुंटा डेला डोगाना का ये संग्रहालय स्थित है। सत्रहवीं शताब्दी में यहाँ कस्टम का दफ्तर हुआ करता था। आज इसका इस्तेमालय संग्रहालय की तरह होता है। इसकी छत पर दो व्यक्ति सुनहरे गोले को उठाए हैं जिसके ऊपर भाग्य की देवी विराजमान है।  ये इस बात को दर्शाता है कि वेनिस के लोगों की ये आम मान्यता थी कि अगर भाग्य की देवी की कृपा रही तो व्यापार में लाभ ही लाभ होगा।



होटल हिल्टन मोलीनो स्टकी, जूदेक्का (Hilton Molino Stucky Hotel, Giudecca, Venice)


जूदेक्का कैनाल में जो इमारत अपने अलग रंग रूप की वज़ह से ध्यान खींचती है वो है होटल हिल्टन मोलीनो स्टकी। इस भवन का भी अपना एक इतिहास है। इसे बनाने वाला जोवानी स्टकी मूलतः स्विटज़रलैंड का रहने वाला था। जोवानी ने यहाँ पहले एक आटा चक्की लगाई और बाद में पास्ता बनाने का कारखाना भी। समय के साथ ये उद्योग बंद हो गए और करीब पच्चीस साल पहले इमारत को होटल में तब्दील कर दिया गया। यहाँ रहने के लिए आज की तारीख में कम से कम आपको बाईस हजार रुपये चुकाने होंगे।


रेसीडेंजा ग्रान्दी वेदुते (Residenza Grandi Vedute)


ये इमारत भी कभी कृषि आधारित उत्पाद के लिए कारखाने का काम करती थी। यहाँ हर कमरे में किचन भी है यानी अपना खाना खुद बनाओ पर एक दिन में रहने का किराया इतना जितना की आप भारत के किसी आम शहर में महीने में देते हैं।


इटली की इस यात्रा का ये आख़िरी भाग था। आशा है इसकी कड़ियाँ आपको पसंद आई होंगी। शीघ्र हाज़िर होता हूँ किसी और सफ़र की दास्तान लेकर..

इटली यात्रा 
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बुधवार, 31 जुलाई 2019

क्यूँ यादगार थी फ्लोरेंस और वेनिस की वो यात्रा? A trip to Venice via Florence

इटली की वो शाम मुझे कभी नहीं भूलती। हमारी बस रोम से निकलने के बाद केन्द्रीय इटली के किसी रिसार्ट की ओर जा रही थी। गर्मी के मौसम में यूरोप में अँधेरा नौ बजे से पहले नहीं होता और ऐसी उम्मीद थी कि बस हमें उससे पहले वहाँ पहुँचा देगी। पहले राजमार्ग और फिर कस्बों की ओर निकलती सड़कों को निहारते हुए हम सभी बेफिक्री से चले जा रहे थे।

विदेश में राह चलते किसी से रास्ता पूछने का रिवाज़ नहीं है। सारी गाड़ियाँ जीपीस (GPS) की सुविधा से परिपूर्ण रहती हैं और वाहन चालक रास्ते गूगल देव की कृपा से तय करते हैं। अब गूगल देव कई बार खुद चकमे में आ जाते हैं ये तो आप भी कई बार अनुभव कर चुके होंगे। वहाँ भी यही हुआ। जीपीस ने हमारी बस को ऐसे जगह ले जाकर खड़ा कर दिया जहाँ आगे दिखते रास्ते पर भारी वाहनों का प्रवेश निषेध था। 


जहाँ बस रुकी थी वहाँ आदमी तो क्या परिंदा भी पर नहीं मार रहा था। किसी तरह होटल वाले से संपर्क कर बस को दूसरी राह में मोड़ा गया पर पन्द्रह बीस मिनट चलने के बाद संशय बरकरार रहा। अँधेरा बढ़ चला था। हमारा ड्राइवर और गाइड गाड़ी रोक कर अँधेरे में आने जाने वाली गाड़ियों को रोकने का प्रयास करने लगे। वैसे तो माफिया द्वारा किए गए अपराधों के के लिए दक्षिणी इटली बदनाम रहा है पर रोम के आसपास का वो इलाका भी माफिया  का क्षेत्र हुआ करता था और इसीलिए वहाँ रात के वक़्त अँधेरे में किसी इशारे को लोग संदेह की नज़रों से देखते हुए बिना रुके निकले जा रहे थे। वैसे भी हमारा चालक जर्मन था और उसकी आवाज़ और इशारे काम नहीं कर पा रहे थे।  


इतनी देर में सहयात्रियों के ज़ेहन में अंग्रेजी फिल्मों में विदेशी बंधक बनाए जाने वाले कई दृश्य कौंध गए। सुनसान रात में हमारे साथ क्या क्या हो सकता है इस पर चर्चा होने लगी। वो बातें तो मजाक के तौर पर माहौल को हल्का फुल्का बनाने के लिए कही जा रही थीं पर दिल के किसी कोने में एक डर भी साथ ही आकार ले रहा था।  पौन घंटे की ज़द्दोजहद और अंदाज़ से आगे बढ़ते बढ़ते हम सही रास्ते तक पहुँचने में कामयाब रहे। होटल पहुँच कर सबने चैन की साँस ली।

अगली सुबह इटली के ऐतिहासिक शहर फ्लोरेंस को छूते हुए हमें वेनिस की राह पकड़नी थी।  इटली में कई बार बिलबोर्ड पढ़ते वक़्त आप उसके शहरों के अंग्रेजी नामों को नहीं ढूँढ पाएँगे। पर चिंता मत करिए उस शहर का इटालवी नाम भी मिलता जुलता ही होगा। मसलन रोम का रोमा, मिलान का मिलानो, नेपल्स का नेपोली, वेनिस का वेन्ज़िया और फ्लोरेंस का फीरेंज़े। इटली से लौटने के बाद अब तो इन नामों को प्रचलित अंग्रेजी के नाम से ज्यादा उनके इटालवी स्वरूप में बुलाना वहाँ की फीलिंग ला देता है।

माइकलएंजेलो द्वारा बनाए मशहूर शिल्प डेविड का प्रतिरूप

रोम से फ्लोरेंस की दूरी लगभग पौने तीन सौ किमी है और वेनिस की सवा पाँच सौ। इसीलिए हमारी टोली ने यहाँ एक विराम लिया।  यात्रा में सुस्ताने के लिए जगह चुनी गयी पियत्ज़ाले माइकल एंजेलो (Piazzale Michelangelo की। इटालवी भाषा में पियत्ज़ा का मतलब चौक से है और ये चौक फ्लोरेंस के दक्षिणी किनारे पर एक पहाड़ी पर बना हुआ है। इस चौक से फ्लोरेंस शहर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है और इसलिए फ्लोरेंस आने वाला हर शख्स यहाँ जरूर आता है।

स्कूल के समय आप सबने इतिहास की किताब में यूरोप के पुनर्जागरण पर एक अध्याय जरूर पढ़ा होगा। उस अध्याय के हीरो माइकल एंजेलो व लिओनार्दो दा विंची इसी फ्लोरेंस शहर की पैदाइश थे। ज़ाहिर है कि कलाप्रेमियों का ये शहर मध्यकालीन युग यानी चौदहवीं और सोलहवीं शताब्दी के बीच खूब फला फूला। अपने सबसे बड़े नायक के सम्मान में इस शहर ने ये चौक उन्नीसवीं शताब्दी में बनवाया।

चौक पर माइकल एंजेलो की याद दिलाती उनकी कृति डेविड लगाई गयी है। पास ही एक उस समय की इमारत है जिसे माइकल एंजेलो से जुड़े संग्रहालय के रूप में विकसित किया जाना था। आज उस जगह पर बने रेस्त्रां में लोग फ्लोरेंस शहर को देखते हुए अपनी शामें गुलज़ार करते हैं। 


यूरोप के सारे बड़े शहर अपनी अपनी नदियों पर इतराते हैं तो भला इस मामले में फ्लोरेंस कैसे पीछे रहे? फ्लोरेंस की इस नायिका का नाम ऐरनो है। रात के वक़्त इस पर बने जगमगाते पुलों के साथ फ्लोरेंस की खूबसूरती देखते बनती है। ऐरनो केंद्रीय इटली से निकल कर फ्लोरेंस से होते हुए पीसा के पास समुद्र में मिल जाती है। साठ के दशक में एरनो ने बाढ़ से फ्लोरेंस शहर की कई ऐतिहासिक इमारतों को नुकसान पहुँचाया था पर उसके बाद से ऐसी स्थिति दोबारा पैदा नहीं हुई।

यहूदियों का उपासना गृह Great Synagogue of Florence  
फ्लोरेंस पहुँचने के पहले ही बारिश की एक झड़ी शहर को भिंगो चुकी थी। सामने की पहाड़ी से उतरते बादल ऐरनो तक के इलाके को घेरे हुए थे। सारा शहर गेरुए भूरे खपरैल की छतों से अटा पड़ा था पर उन सब के बीच ये हरे गुंबद वाली इमारत कुछ अलग सी दिखी। पूछने पर पता लगा कि ये यहूदियों का मंदिर यानी सिनागॉग है। कहा जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के समय जर्मन की नाज़ी सेना जब यहाँ से लौटने लगी तो उसने इसे उड़ाने की योजना बनाई पर स्थानीय योद्धाओं ने यहाँ रखे विस्फोटकों का ज्यादातर हिस्सा समय रहते हटा दिया।

फ्लोरेंस कैथेड्रल  Duomo di Firenze
फ्लोरेंस की सबसे मशहूर इमारत यहाँ का  बड़ा गिरिजाघर Duomo di Firenze है जिसमें पीसा की ही तरह गिरिजा के आलावा बैपटिस्ट्री और घंटा घर है। नाम के अनुरूप इसका गोथिक स्थापत्य शैली में बना गुंबद शहर को अपनी पहचान देता है।यूनेस्को ने इन इमारतों और उसके आस पास हिस्सों को विश्व की अमूल्य धरोहरों में शामिल किया है। फ्लोरेंस को दूर से ही टाटा बॉय बॉय करते हुए हम अपने अगले पड़ाव पाडुवा की ओर चल पड़े।


जैसा कि मैंने आपको पहले भी बताया था कि इटली के ग्रामीण इलाके बेहद खूबसूरत हैं। इन रास्तों में कभी आप पहाड़ों से होकर गुजरेंगे तो कभी अंगूर, जैतून और अन्य फलों के लंबे चौड़े बाग आपका मन मोह लेंगे। गाँव कस्बों के रंग बिरंगे छोटे छोटे मकान इस हरी भरी छटा में चार चाँद लगा देते हैं।


खिड़की से इन मनमोहक नज़ारों का आनंद लेते हुए कब हम पाडुवा पहुँच गए ये पता ही नहीं चला। यहीं से फेरी पर चढ़कर हमें वेनिस तक जाना था। वेनिस शहर को अपनी नौका से पास आते देखना इटली यात्रा के सबसे खूबसूरत लमहों में था। मुझे ये विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये वही वेनिस है जिसके सौदागरों को शेक्सपियर ने अपने नाटक मर्चेंट आफ वेनिस से मशहूर कर रखा था ।

पाडुवा के दक्षिणी छोर से वेनिस जाता जलमार्ग
इटली के उत्तर पूर्वी सिरे पर बसा ये शहर मध्यकालीन युग में यूरोप का सबसे समृद्ध शहर हुआ करता था। वेनिस तब ख़ुद एक गणतंत्र था। अपनी सामरिक स्थिति व शानदार नौ सेना के बलबूते इस शहर का एक समय में पश्चिमी यूरोप और एशिया से होने वाले व्यापार मार्ग पर वर्चस्व था। पुनर्जागरण काल में इस समृद्धि की वजह से यहाँ की कला और संगीत भी फले फूले। हालांकि उसके बाद कई नए व्यापार मार्ग के पता चलने से वेनिस का महत्त्व धीरे धीरे कम होता चला गया।

संत मार्क गिरिजे का बेल टॉवर
वेनिस पहुँचते ही सबसे पहले जिस इमारत पर नज़र पड़ती है वो है संत मार्क गिरिजे का बेल टॉवर। नवीं शताब्दी में शुरुआती निर्माण के बाद इसे लाइटहाउस की तरह इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि अगले तीन सौ सालों में ये सौ मीटर ऊँचे घंटा घर में तब्दील हो गया। इसके बाद कभी बिजली गिरने और कभी आग लगने से इसे कई बार नुकसान पहुँचा और इसका पुनर्निर्माण किया जाता रहा । बेल टॉवर के पीछे यहाँ का मुख्य धार्मिक स्थल  है जिस के चारों ओर पर्यटकों की भारी भीड़ हमेशा जमी रहती है।

संत मार्क बज़िलिका की गिनती वेनिस के खूबसूरत भवनों में होती है। बज़िलिका का मतलब भी गिरिजा ही है पर ऐसे चर्च को पोप द्वारा कुछ विशिष्ट अधिकार दिए जाते हैं। बाइजेंटाइन स्थापत्य से प्रभावित ये चर्च अपने खूबसूरत गुंबदों और सुनहरे रंग से सजी दीवारों की वज़ह से जाना जाता है। 

संत मार्क बज़िलिका  St Mark's Basilica
आपको जान कर आश्चर्य होगा कि वेनिस सौ से भी छोटे छोटे ज्यादा द्वीपों से मिलकर बना है। इसका नतीजा ये है कि शहर को गलियाँ नहीं बल्कि पतली नहरें बाँटती है। सौ दो सौ कदम चले नहीं कि एक नहर हाज़िर। अब उन्हें पार करना है तो पुल की जरूरत पड़ेगी है। वेनिस में ऍसे चार सौ पुल हैं। जेटी से उतरते हुए जब इस शहर को अपने कदमों से नाप रहे थे तो ऐसे कई पुलों से पार हुए। इसमें एक खास पुल था Bridge of Sigh !

ये पुल यहाँ की जेल को अपराधियों की पूछताछ के लिए बनाए गए कमरों से जोड़ता था और नज़रबंद होने के पहले यहीं से वो वेनिस का गहरी साँस भरते हुए अंतिम बार देख पाते थे इसीलिए इसका ऐसा नाम दिया गया। अब इस सफेद चूनापत्थर से बने पुल के जालीदार झरोखों से उन्हें क्या दृश्य दिखाई देता होगा ये भी सोचने का विषय है☺

पुल जिसे पार करते हुए अपराधी वेनिस को आखिरी बार देखते थे। Bridge of Sigh
कोई भारतीय जब वेनिस आता है तो सबसे पहले वो यहाँ गॉनडोला नौका को खोजता है। ये भला कौन भूल सकता है कि फिल्म ग्रेट गैंबलर में अमिताभ व जीनत दो लफ़्जों की मेरी कहानी... को गाते हुए एक ऐसी ही नाव पर बैठे थे। हाँ, ये बता दूँ कि उस गाने से प्रभावित होकर ये मत समझ लीजिएगा कि सारे कश्ती चलाने वाले रोमांटिक होते हैं। अपनी सहयात्रियों का अनुभव सुन कर पता लगा कि उन्हें बेहद खूसट सा बंदा मिल गया था जो गाना तो दूर बात करना भी पसंद नहीं कर रहा था।

गॉनडोला नाव की सवारी 

पर चालीस मिनट की नौका की सवारी करने में अगर छः हजार रुपये लग जाएँ तो आधे लोग तो मन मसोस के ही रह जाएँ। सवारी का मन तो मेरा भी था पर नाव तक पहुँच कर अपनी बारी का इंतजार कर ही रहे थे कि भारी बारिश की वज़ह से मुझे अपनी इच्छा पर अंकुश लगाना पड़ा। 

सोमवार, 8 जुलाई 2019

आइए चलें दुनिया के सबसे छोटे देश वैटिकन सिटी में Smallest country of the World : Vatican City

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वैटिकन सिटी का शुमार विश्व के सबसे छोटे देश में होता है। अगर आप पूछें कि इस छोटे का मतलब कितना छोटा तो समझ लीजिए कि उतना ही जितना की छः सौ मीटर लम्बा और सात सौ मीटर चौड़ा कोई इलाका हो। मतलब ये कि आप मजे से तफरीह करते हुए घंटे भर में इस देश की चोहद्दी नाप लेंगे। इस देश की जनसंख्या भी कितनी?  सिर्फ एक हजार ! इतने को तो हमारी एक गली की आबादी सँभाल ले।

संत पीटर बाज़िलिका
मजे की बात है कि इतने छोटे से इलाके में एक रेलवे स्टेशन भी है जिसके स्वामित्व में सिर्फ तीन सौ मीटर की रेलवे है। कभी वैटिकन जाइए तो यहाँ के बैंक वाले ATM से पैसे निकालने की जुर्रत ना कीजिएगा। इस बैंक का ATM दुनिया का एकमात्र ऐसा ATM है जहाँ पैसे निकालने के लिए निर्देश लैटिन भाषा में दिए गए हैं। इसी छोटे से देश को देखने के लिए हर दिन संसार के कोने कोने से हजारों लोग आते हैं। आए भी क्यूँ ना आखिर यही तो रोमन कैथलिक चर्च का मुख्य केंद्र है।

रोम की संगिनी टाइबर नदी

रोम के संग संग बहने वाली टाइबर नदी को पार करके जब मैं वैटिकन सिटी जाने वाली सड़क पर पहुँचा तो सबसे पहले इस झंडे ने मेरा स्वागत किया। बड़ा कमाल का झंडा है वैटिकन का। शक्ल से वर्गाकार आधा पीला और आधा सफेद। पीला वाला हिस्सा तो बिल्कुल सादा पर सफेद हिस्से में दो चाभियाँ दिखती हैं। एक सुनहरी और दूसरी चाँदी के रंग की एक दूसरे के ऊपर क्रास का आकार बनाती हुईं। इन दोनों चाभियों को जोड़ती है इक लाल डोरी। 

चाभियों को देखकर मन ही मन सोचा जरूर ये स्वर्ग तक पहुँचाने वाली चाभियाँ होंगी और बाद में पता चला कि मेरा तुक्का बिल्कुल सही निकला। ऐसी मान्यता है कि  ये स्वर्गारोहणी चाभियाँ ईसा मसीह ने खुद संत पीटर को दी थीं। सुनहरी चाभी आध्यात्मिक शक्ति जबकि चाँदी के रंग की चाभी संसारिक शक्ति का प्रतीक है।

विश्व के सबसे छोटे देश का ध्वज
बहरहाल अब हमें पत्थरों से बनी एक पतली सी सड़क संत पीटर बाज़िलिका ( बाज़िलिका दरअसल किसी बड़े महत्त्वपूर्ण गिरिजाघर को कहते हैं । ) की ओर ले जा रही थी। यूरोप की प्राचीन जगहों की पहली पहचान वहाँ की कॉबलस्टोन सड़कें है जिनका इस्तेमाल मध्यकालीन यूरोप में होना शुरु हुआ था।

संत पीटर स्कवायर की ओर जाती सड़क
बाज़िलिका तक पहुँचने के ठीक पहले एक विशाल सी खुली जगह मिलती है जिसे रोमन स्थापत्य की पहचान माने जाने वाले गोलाकार स्तंभों के गलियारे से दोनों ओर से घेरा गया है। इस के ठीक मध्य में रोमन सम्राट कालिगुला द्वारा मिश्र से लाया गया पिरामिडनुमा स्तंभ है जिसे अंग्रेजी में ओबेलिस्क के नाम से जाना जाता है। रोमन सम्राट कालिगुला से मेरा परिचय तो सुरेंद्र वर्मा के प्रसिद्ध उपन्यास "मुझे चाँद चाहिए" की प्रस्तावना में हुआ था पर जूलियस सीज़र के इस परपोते को रोमन इतिहास एक क्रूर आतातायी की तरह जानता है। अब सोचता हूँ कि असंभव की आशा जगाने के लिए वर्मा जी को यही सनकी प्रतीक मिले।

 याद कीजिए ऐसे ही एक स्तम्भ के बारे में विस्तार से पहली बार मैंने आपको अपनी पेरिस यात्रा में बताया था


संत पीटर बाज़िलिका के सामने खड़ा मिश्र से लाया गया स्तंभ

संत पीटर स्कवायर
ओबेलिस्क के दोनों ओर छोटे छोटे फव्वारे हैं। पोप जब बाज़िलिका की खिड़की से अपने दर्शन देते हैं तो ये पूरा स्कवायर लोगों से खचाखच भर जाता है। धार्मिक उत्सवों में लोग के इकठ्ठा होने के लिए ये जगह इतनी खुली बनाई गयी।

गोलंबर के चारों ओर फैला गोलाकार गलियारा
संत पीटर स्कवायर में आ तो गए पर आधा किमी लंबी पंक्ति देख लगा कि अब तो हो गए  पीटर साहब के दर्शन। पूरा वृताकार गलियारा कैथलिक चर्च के इस पवित्र स्थान को देखने के लिए पंक्तिबद्ध खड़ा था। थोड़ी ही देर में पंक्ति का अनुशासन देख के समझ आ गया कि यहाँ देर है पर अँधेर नहीं। पंक्ति लगातार आगे चल रही थी और दस पन्द्रह मिनट में तेज़ी से खिसकते हम इमारत की दाँयी ओर से चर्च में दाखिल हो गए। मुख्य परिसर में प्रविष्टि के ठीक पहले दाहिनी ओर संत पाल की सफेद मूर्ति लगी है जबकि चर्च की बाँयी ओर संत पीटर विराजमान हैं।  
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संत पीटर का ये विशाल गिरिजाघर अंदर घुसते ही अपनी प्रसिद्धि का कारण बता देता है। गिरिजे की आंतरिक दीवारों और छत को इतनी खूबसूरती से सजाया गया है कि आँखें फटी की फटी रह जाती है। मुख्य गुंबद की छत तीन हिस्सों में बँटी है। एल्टर की ओर जाने से ठीक पहले दोनों ओर दो खूबसूरत गलियारे कटते हैं जिनकी छतों के अलग अलग रूप मन को मोहित करते हैं। दीवारों के किनारे किनारे भिन्न भंगिमाओं में कई संतों की प्रतिमाएं लगी हैं। माइकल एंजेलो के कुछ खूबसूरत शिल्प भी हैं और तमाम पेटिंग्स भी। 

गिरिजाघर का शानदार गुम्बद


ऐसा नहीं कि वैटिकन ईसाई धर्म आने के पहले नहीं था। टाइबर नदी के पश्चिमी किनारे का ये इलाका पहले दलदली हुआ करता था। आम लोगों को यहाँ बसने की मनाही थी क्यूँकि इस हिस्से को पवित्र समझा जाता था। कालिगुला ने दलदली ज़मीन से पानी निकालकर इस क्षेत्र में उद्यान बना दिया। बाहरी सेनाओं ने यदा कदा वैटिकन के इलाके में अपनी अस्थायी छावनी बनाई पर  खराब पानी ने उनका यहाँ के जीना दूभर कर दिया।

इटली की प्राचीन सभ्यता में उपवन को वैटिकम कहा जाता था जो कि कालांतर में वैटिकन हो गया। कितनी अचरज की बात है कि संस्कृत में भी बाग बगीचे के लिए इससे मिलते जुलते शब्द वाटिका का इस्तेमाल होता रहा है। 

यूरोपीय चित्रकला का एक नमूना

छत पर की गई बेहतरीन नक्काशी 
इस शृंखला की पिछली कड़ी में मैंने आपको बताया था कि रोम की भीषण आग के लगने के बाद किस तरह नीरो ने शक की सुई अपनी ओर से हटाने के लिए ये अपराध ईसाई अनुयायिओं पर मढ़ दिया था। इस घटना के फलस्वरूप ईसाई मत मानने वाले तमाम लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया । ईसा मसीह के बारह प्रमुख अनुयायिओं में सर्वोच्च स्थान रखने वाले संत पीटर उस समय रोम के पहले बिशप थे। ऐसा माना जाता है कि उन्हें उलटा लटकाकर यहाँ सूली पर चढ़ा दिया गया था।

जब रोम के सम्राट कांस्टेन्टाइन में ईसाई धर्म स्वीकारा तो उन्होंने संत पीटर के सम्मान में उसी जगह गिरिजाघर की नींव रखी जहाँ उनकी हत्या कर उन्हें दफनाया गया था।

मुख्य पूजा स्थल

देखिए कैसे गुंबद से सूरज की रोशनी अंदर छन कर आने की व्यवस्था की गयी है
संत पीटर के उत्तराधिकारियों को ही बाद में पोप का दर्जा मिला। इटली के शासकों से संधि के फलस्वरूप एक देश के रूप में वैटिकन आज से नब्बे साल पहले अस्तित्व में आया। आज वैटिकन की अपनी एक सेना है। भले ही उसमें दो सौ से कम जवान हों।

पोप के निवास की सुरक्षा में मुस्तैद जवान
जिस तरह फ्रांस के सम्राट की सुरक्षा का जिम्मा एक स्विस बटालियन पर था उसी तरह पोप की सुरक्षा का दारोमदार स्विट्ज़रलैंड के सैनिक सँभालते हैं। इनकी रंगीन वेशभूषा पर मत जाइए। इन्हें रणक्षेत्र के सारे कौशल आते हैं।

संत पीटर
वैटिकन के बाद इटली प्रवास का आख़िरी पड़ाव था वेनिस। इस शृंखला के अगले कदम में आपको ले चलेंगे फ्लोरेंस होते हुए वेनिस की ओर..

इटली यात्रा में अब तक
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सोमवार, 24 जून 2019

कैसा था प्राचीन रोम ? Glimpses of Ancient Rome !

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इटली से जुड़े इस यात्रा वृतांत में आपने मेरे साथ सबसे पहले देखा फेरारी कारों का संग्रहालय और फिर पीसा की मीनार। पिछली कड़ी में आपको रोम के अनजाने स्वरूपों की कुछ झलकियाँ दिखाई थीं पर आज बारी है रोम शहर के गौरवशाली अतीत की कुछ खिड़कियों को खोलने की। तो तैयार हैं ना आप मेरे साथ इस सफ़र पर चलने के लिए...
पीसा से रोम की दूरी करीब साढ़े तीन सौ किमी है। पहले पहाड़ियों और फिर मैदानों से गुजरता ये रास्ता काफी हरा भरा है। खेती बाड़ी में इटली पीछे नहीं है। जहाँ इसके उत्तरी इलाके मुख्यतः खाद्यान्न और डेयरी से जुड़ी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं वहीं जैसे जैसे आप मध्य से संकरे होते दक्षिणी इटली की ओर बढ़ते हैं, अंगूर के फार्म से लेकर भांति भांति के फल, सब्जियों और जैतून के खेत दिखने लगते हैं। मैं रास्ते भर इन वादियों का आनंद लेता रहा और चलती बस से इनमें से कुछ खूबसूरत  दृश्यों को कैमरे में क़ैद भी किया।
इटली के खेत खलिहान 

खेत खलिहानों को पार करते हुए अब हम रोम शहर के अंदर दाखिल हो चुके थे। बचपन में पढ़ा था कि रोम सात पहाड़ियों से मिल कर बना शहर है पर शहर में अब पहाड़ियों के ऊपर इस तरह निर्माण हो चुका है कि समझ ही नहीं आता कि कब एक पहाड़ी शुरु हुई और कब खत्म? जैसे ही रोम शहर में दाखिल हुए प्राचीन इमारतें और खंडहरों की झलकें मिलनी शुरू हो गयीं


रोम जैसे ऐतिहासिक शहर की विरासत को समझने और उसे आज के इटली से जोड़ने में तो महीनों का वक़्त भी कम ही जान पड़ेगा। इससे पहले मैं आपको रोम की ये छोटी सी झाँकी दिखाऊँ ये  बताना जरूरी है कि रोम भले  ही आज कैथलिक चर्च के अनुयायिओं का केंद्र माना जाता है पर  इस शहर ने 380 ई के बाद ही ईसाई धर्म को अंगीकार किया।

ईसाई धर्म के पहले, रोम गणतंत्र की धार्मिक परंपरा बहुत कुछ हिंदू धर्म जैसी थी। भगवान कई थे़। प्रत्येक शहर का अपना एक अलग इष्ट देवता था। अपने इष्ट देवों के आलावा रोम वासियों ने कई ग्रीक भगवानों को भी अपना लिया था। पूज्य  देवी देवताओं में सूर्यमंडल के  ग्रहों का विशेष स्थान था। इन ग्रहों में वृहस्पति यानि जुपिटर सबसे शक्तिशाली माना जाता था। यहाँ तक कि उसकी पत्नी जूनो और पुत्री मिनर्वा की भी पूजा होती थी। ग्रीस की सभ्यता से प्रभावित होने के चलते इन सब देवों की मूर्तियाँ मनुष्यों जैसी ही थीं।

हरक्यूलस विक्टर का मंदिर
रोमन मंदिरों के भीतरी कक्ष में इष्ट देवों को स्थापित किया जाता था। धार्मिक गतिविधियाँ जिनमें अनुष्ठान के साथ बलि की भी मान्यता थी वो कक्ष के बाहर संपादित की जाती थीं। हर मंदिर के बाहर का आँगन या बरामदा गोलाकार स्तंभों से सजा होता था जो ग्रीस की वास्तुकला से प्रभावित था।

कॉलोसियम की ओर जाते वक्त सबसे पहले मेरी नज़र हरक्यूलस विक्टर के मंदिर पर पड़ी। ये मंदिर ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी का बना मंदिर है जिसकी पहचान इसके चारों ओर बने वृताकार स्तंभ है। इसके समीप एक और मंदिर है जिसे Temple of Portunas भी कहा जाता है। पोरच्यूनस दरवाजे, तालों, मवेशियों और खलिहानों के देवता थे। ये सारी चीज़े उस वक़्त जनता के लिए कितनी कीमती रही होंगी आप इसका अंदाजा लगा सकते हैं।

गुरुवार, 6 जून 2019

डॉग पार्किंग से रहस्यमयी टॉयलेट तक : क्या है रोम का अनैतिहासिक चेहरा? The other side of Rome, Italy

पीसा के बाद मेरा अगला पड़ाव था रोम का ऍतिहासिक शहर पर आज मैं रोम के इतिहास की बात नहीं करने वाला बल्कि आज पहले वहाँ से जुड़ी दस मजेदार बातें बताना चाहता हूँ जो मैंने अपने अल्प प्रवास में  गौर कीं। भले ही ये सब मैंने रोम में देखा पर मेरे ख्याल से इनमें से ज्यादातर वाकये पूरी इटली पर लागू होते हैं। तो चलिए आपको दिखाएँ रोम की कुछ रोचक झलकियाँ..

इटली की भाषा con eni gas e luce hai tutto sotto controllo :) 

तो शुरुआत इटली की भाषा से। फ्रेंच के ठीक उलट इटालवी भाषा मुँह पर सहज ही चढ़ जाती है। यहाँ के लोग जिस तरह शब्दों को खींच के बोलते हैं, ट को त बना देते हैं और बोलते वक्त आँखों के साथ पूरे चेहरे की भाव भंगिमाएँ ही बदल डालते हैं उसने मुझे इस भाषा की ओर शीघ्र ही आकर्षित कर लिया। अगर आप अंग्रेजी समझते हों तो मान लीजिए कि सिर्फ 'O' प्रत्यय लगाकार आपने इटालवी भाषा के भी कई शब्द सीख लिए। चलिए अब ऊपर की तस्वीर को ध्यान से देखिए। 

बिलबोर्ड से झाँकती कन्या कह रही है con eni gas e luce hai tutto sotto controllo। अब  Eni अगर ब्रांड  का नाम है तो इतना तो आप तुक्का लगा ही सकते हैं कि वाक्य में gas और control का जिक्र है। वैसे मोहतरमा कहना चाहती हैं कि  With Eni gas and light you have everything under control  :)

रोम नगरी का बहुतेरा हिस्सा इन हल्की भूरी और क्रीम रंग की इमारतों से भरा है।

पूरा शहर बादामी और हल्के भूरे रंग से रँगा नज़र आता है जो मुझे बाहर से तो नीरस रंग लगा। 

नाज़ियों के खिलाफ दीवार पर ग्रैफिटी
वैसे तो इटली ने दूसरा विश्व युद्ध मुसोलनी के नेतृत्व में जर्मनी और जापान के साथ लड़ा था पर इस युद्ध में इस तिकड़ी की सबसे कमजोर कड़ी यही था और इसीलिए घुटने टेकने में पहला भी। आज वैसे तो इटली के सम्बन्ध  बाकी यूरोपीय देशों से अच्छे हैं पर प्रचार के बीच नाजियों को गाली देती ये ग्राफिटी जर्मन समुदाय के प्रति लोगों  के अंदर के रोष को ही प्रकट करती हुई दिखती है।

पेड़ कैसे कैसे..कहीं शंकुनुमा
रोम के चारों ओर और शहर के अंदर कुछ पेड़ बड़े अलग सा रूप लेकर सामने आए। शंकुधारी और लॉलीपॉप   सरीखे इन पेड़ों के नाम तो मुझे नहीं मालूम पर ये पूरे शहर को एक अलग सी सुंदरता जरूर प्रदान करते हैं।

....तो कहीं लॉलीपॉप से
अस्सी का दशक याद है आपको जब देश के विभिन्न प्रदेशों में दूरदर्शन के ट्रांसमीटर लगने शुरु हुए थे और उसी के साथ धीरे धीरे बढ़ा था बहुमंजिली इमारतों पर आड़े तिरछे लंबे लंबे एंटेना का मकड़जाल। इन्ही एंटेना को घुमा घुमा कर प्रसारण गुणवत्ता सुधारने में बहुतों ने तब महारत हासिल की थी। 

एंटेना का मकड़जाल

रोम में घुसते ही जब ऐसा ही बेतरतीब जाल दिखा तो लगा चलो किसी मामले में तो इस यूरोपीय देश से आगे निकले। इटली में आज भी प्राइवेट डिश आपरेटरों की तुलना में फ्री टू एयर चैनल का प्रसारण करने वाले टेरेरेस्टियल चैनलों का बोलबाला है।  सरकारी नीतियाँ ही कुछ ऐसी हैं कि इटली के हर इलाके के लिए अलग अलग डिश टीवी आपरेटर हैं। नतीजा ये कि एक ओर तो ये मँहगे हैं तो दूसरी ओर एक साथ उनका कांटेंट पूरे देश में उपलब्ध भी नहीं।

हमने तो कब का बंबई को मुंबई बन दिया पर इटली बांबे को नहीं भूला है।
भारतीयों की आवाजाही जिस तरह विश्व में बढ़ रही है वैसे ही भारतीय व्यंजन परोसने वाले रेस्त्राँ की भी।  विश्व का शायद ही कोई कोना हो जहाँ भारतीय भोजन की धमक ना पहुँची हो। बहरहाल अगर कोई इटली में है तो भारतीय स्वाद से हटकर अठारहवीं शताब्दी में यहाँ के शहर नेपल्स से प्रचलित हुआ पिज्जा उसकी पहली पसंद क्यूँ ना हो? वैसे भी ये जानने का मन तो भारतीय पिज्जा प्रेमियों का करता ही है कि आखिर डोमिनो और पिज्जा हट की दुनिया से परे इटली के वास्तविक पिज्जा का स्वाद कैसा है?

पिज्जा जो इटली का सर्वाधिक लोकप्रिय व्यंजन है विश्व में।
भारत में रहने वाले लोगों के लिए वेस्पा एक जाना पहचाना नाम है। यहाँ  बजाज को अगर किसी स्कूटर ब्रांड ने चुनौती दी तो वो एल एम एल वेस्पा ही थी। वैसे वेस्पा ब्रांड की शुरुआत इटली में  पिआजियो ने तब की थी जब भारत आजाद हुआ था। आजकल भारयीय सड़कों पर वेस्पा के नए मॉडल फिर से दिखाई दे रहे हैं। यही वजह थी कि रोम की सड़कों पर इस स्कूटर को देखना मन को एक ख़ुशी दे गया ।

ये लीजिए आपका जाना पहचाना ब्रांड वेस्पा रोम की सड़कों पर
कॉफी या कोल्ड ड्रिंक वेंडिंग मशीन तो आपने हर जगह देखी होंगी पर कंडोम वेडिंग मशीन, वो भी रोमन कैथलिक चर्च के मुख्यालय रोम में आप जगह जगह देख पाएँगे। आश्चर्य की बात ये है कि इस बात को लेकर अमेरिकी भी उतने ही आश्चर्यचकित हो रहे थे जितना कि संकोची एशियाई समाज से आने वाले हमारे जैसे लोग। उनके चकित होने की वजह ये है कि कैथलिक चर्च अमेरिका में लोगों को बर्थ कंट्रोल से विमुख करता है और यहाँ उसके मुख्य केंद्र में ऐसी मशीनें रखी जा रही हैं । बाद मैं मैंने एक जगह इस विषय पर एक अमेरिकी टिप्पणी पढ़ी

In the land of the catholic church, they supply condoms for those "in need." In the U.S., they want to do away with birth control. Kind of makes your head spin, doesn't it?

कंडोम वेंडिंग मशीन और साथ में डॉग पार्किंग !
इटली के मदिरालय में कॉफी भी मिलती है और वहाँ की सर्विस, वेडिंग मशीन जैसी ही त्वरित है। इसलिए मशीनों की ये परंपरा वहाँ नयी है। कंडोम के आलावा सिगरेट भी इन मशीनों से खरीदी जा सकती हैं।

पता नहीं आपने गौर किया या नहीं कि इस मशीन के साथ नीचे ही एक हुक बना है। हुक के ठीक नीचे लिखा है डॉग पार्किंग यानि कुत्तों की पार्किंग। चौंक गए ना आप? यहाँ तो आप ढंग की कार पार्किंग के लिए परेशान हो जाते हैं और वहाँ इटली में किसी स्टोर में घुसने से पहले अपने कुत्तों को आप इन हुक में बाँध कर यानी  park  कर  खरीदारी कर सकते हैं। कुत्तों को अपने साथ सफर करने के लिए जर्मनी की तरह इटली भी अपने नियमों में काफी लचीला है। मतलब  Dog loving nation के तौर पर इटली का भी नाम लिया जा सकता है।

पेंट छिड़ककर दीवारों पर उल्टी सीधी ग्राफिटी करने का रोग रोम में तो मुझे गंभीर नज़र आया।
अगर आप इटली में है और आपको शौचालय के लिए टॉयलेट लिखा नहीं दिख रहा तो फिर बॉन्यो (Bagno) शब्द ढूँढिए। याद रखिए इसमें g साइलेंट और बोलते वक़्त अंत में 'o ' के पहले खामखा एक अदृश्य 'y' आ जाता है। अगर वो भी ना दिखे तो किसी से पूछ लीजिए डोवेल बॉन्यो यानी  शौचालय कहाँ है ?

पेंट से लिखी जाने वाली ग्राफिटी की समस्या तो आजकल भारत में भी देखी जा रही है पर ये कहाँ से आई है ये आप इस शौचालय की बाहरी दीवार को देख कर समझ सकते हैं।

बाहरी महादेशों से यूरोप में विचरण करने वालों के लिए सबसे रहस्यपूर्ण है इटालियन टॉयलेट। आप कहेंगे अब शौचालय में ऐसा क्या चौंकाने वाला हो सकता है जिसकी अलग से चर्चा करनी पड़े? दरअसल इटली के बाथरूम में घुसते ही आपको एक की बजाए दो टॉयलट सीट दिखेंगी। एक तो वैसी ही जो अपने यहाँ पश्चिमी रंग में रँगे शौच में दिखती है और दूसरे उसके समानांतर, जो दिखती तो वाशबेसिन जैसी है पर जिसकी ऊँचाई सिर्फ टॉयलेट सीट जितनी ही होती है। खा गए ना चक्कर?

मैं जब इटली गया था यो इसके बारे में थोड़ा बहुत पढ़कर अंदाजा हो गया था पर मैंने इसका प्रयोग किया ही नहीं यानी भारतीय अंदाज में ही अपना काम निबटा दिया। दरअसल दूसरी सीट बिडेट के नाम से जानी जाती है। पहली में आपको शौच करना है और दूसरी में बिना अपने हाथ का इस्तेमाल किए, बैठते हुए करनी है अपनी सफाई। सीट पर बैठकर जिस ओर की सफाई करनी है ऊधर मुँह घुमाकर बैठ जाइए और नल को खोल दीजिए। बिडेट में गीले होने के बाद शरीर को सुखाने के लिए बाथरूम में छोटे पर बेहद पतले तौलिए होते हैं जो की सामान्य तौलिये के साथ ही आपको लटके मिलेंगे ।

क्या आपको पता है इटालियन शौचालय का रहस्य ?
दरअसल इटली में ये परंपरा फ्रांस के धनाढय वर्ग से होती हुई पहुँची जिन्हें साफ सफाई के लिए थोड़ा नफासत वाला अंदाज पसंद था। इटली वालों को ये तरीका इतना जँच गया कि ज्यादा जगह घेरने के बाद भी वो अधिकांश जगह इसका इस्तेमाल करते हैं वहीं जापान ने बिडेट की प्रक्रिया एक ही टॉयलेट सीट में एकीकृत कर दी है।

रोम शहर की इन झलकियों के बाद ले चलूँगा मैं आपको इसकी विश्वप्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारतों की तरफ इस कड़ी के अगले भाग में..। अगर आपको मेरे साथ सफ़र करना पसंद है तो Facebook Page Twitter handle Instagram  पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना ना भूलें।