सोमवार, 30 अगस्त 2010

आज करिए दीघा के बाजारों की सैर और वो भी इस अनोखी सवारी में...

पिछली बार आपसे वादा किया था कि आपको रात के दीघा की रौनक के दर्शन कराऊँगा। पर बाजार का चक्कर लगाने से पहले ये तो जान लीजिए कि नए दीघा से पुराने दीघा के बाजारों तक जाने के लिए पर्यटक को कैसी सवारी उपलब्ध होती है? ना ना यहाँ आपको आटो या सामन्य रिक्शा नज़र नहीं आएगा। सामान्य रिक्शे यहाँ स्कूल रिक्शे की शक्ल में नज़र आते हैं। पर यहाँ की असली शान की सवारी है ठेला। चौंक गए जनाब ! ओ हो हो मैं भी तो थोड़ा गलत बोल गया मुझे कहना चाहिए था मोटाराइज्ड ठेला

शाम को जब हमारी अर्धांगनियाँ बाजार के विस्तृत अध्ययन के लिए चली गईं तो सारे बच्चों का मन बहलाने की जिम्मेवारी हम लोगों पर आन पड़ी। अब भानुमति के इस कुनबे को हमें दीघा के मछलीघर और विज्ञान केंद्र की सैर करानी थी। होटल से बाहर निकलते ही हमें ये अजीब सी सवारी दिख गई। सो लद गए हम सब के सब इस पर और कुछ ही देर में हमारे ठेले का डीजल इंजन हमें दीघा की सड़कों पर सरपट दौड़ाने लगा।

दीघा के विज्ञान केंद्र से लौटते लौटते शाम हो चुकी थी। अब हमें बच्चों को उनकी माताओं के सुपुर्द करना था। पर मोबाइल नेटवर्क काम ही नहीं कर रहा था लिहाजा हम सब बच्चों के साथ पुराने दीघा के बाजारों में उनकी खोज़ के लिए चल पड़े। दीघा का बाजार समुद्र तट के समानांतर फैला हुआ है। बंगाल का सबसे लोकप्रिय समुद्र तट होने के कारण यहाँ शाम को बाजारों में खासी चहल पहल होती है।


यूँ तो ये बाजार एक आम बाजार की तरह है। पर यहाँ आने से मछली खाने के शौकीन पर्यटक, सी पाम्फ्रेड का स्वाद लेना नहीं भूलते।

वैसे हम जैसे शाकाहारियों को फिर कुछ इस तरह की स्टॉल की शरण में जाना पड़ता है।


खाने पीने के आलावा दीघा का बाजार मेदनीपुर जिले में सीप से बनाई हुई वस्तुओं का एक बड़ा बाजार है। शंख, मूर्तियाँ, माला, कान के बूँदे ,घर की आंतरिक सज्जा के लिए सीप की मालाओं से बने पर्दे, सीप के कवच से बने रंगीन खिलौने इस बाजार का प्रमुख आकर्षण हैं। एक नज़र आप भी देख लीजिए..







वैसे पचास रुपए में अंदर में आपको ब्रेसलेट, बूँदे और माला का पूरा सेट मिल जाए तो क्या आप इनकी तरह उन्हें पहन कर नहीं चमकना चाहेंगी?

वैसे दीघा में जूट के बने झूले, चटाई भी वाज़िब दामों में मिलते हैं। और हाँ यहाँ काजू भी अपेक्षाकृत सस्ते हैं। इसलिए अगर दीघा जाएँ तो कुछ खरीदारी तो आप कर ही सकते हैं।

दीघा की यात्रा की अगली कड़ी में ले चलेंगे आपको एक मंदिर और फिर नंगे पैरों से पार करेंगे एक नदी।

इस श्रृंखला में अब तक

  • हटिया से खड़गपुर और फिर दीघा तक का सफ़र
  • मंदारमणि और शंकरपुर का समुद्र तट जहाँ तट पर दीड़ती हैं गाड़ियाँ
  • दीघा के राजकुमार लाल केकड़े यानि रेड क्रैब
  • 11 टिप्‍पणियां:

    1. बहुत रोचक वर्णन...कुछ ऐसे ही ठेले गुजरात में भी चलते हैं...फोटो बहुत जबरदस्त हैं...यात्रा का आनंद आ रहा है...
      नीरज

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    2. बहुत सुन्दर पोस्ट!
      --
      चित्र बहुत बढ़िया हैं!

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    3. मेरा एक दोस्त अभी कुछ दिन पहले गंगा सागर और पुरी घूमकर आया है। फोटू तो उसने केवल अपने ही खींचे हैं। बता रहा था कि उधर सीप के आभूषण मिलते हैं वो भी बहुत सस्ते।
      अपन ने तो अभी केवल पत्थर ही देखे हैं, सीप-वीप अभी नहीं देखे। हां, जोहड में मिल जाते हैं कभी-कभी।

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    4. यात्रा का हमने भी आंनद लिया फोटो देखकर।

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    5. motorized thela to bahut interesting laga. something new.

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    6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति. दीघा के बारे में बहुत कुछ जाना. हम आपके ब्लॉग को क्यों मिस करते हैं समझ नहीं आ रहा है. क्या चिट्ठाजगत में लिस्टिंग नहीं होती?

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    7. शु्क्रिया आप सब का इस सफ़र में साथ बने रहने का...

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