अगर आपको ये नाम नया सा लगे तो ये बताना लाज़िमी होगा कि कर्नाटक के दक्षिण पश्चिम में पश्चिमी घाट के किनारे बसा कुर्ग अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए जाना जाता है और वहाँ की यात्रा की हमारे साथी चिट्ठाकार अमित कुलश्रेष्ठ ने।

".....ब्यालाकुप्पे मैसूर के पश्चिम में स्थित कुशानगर नामक शहर के पास का इलाका है जिसमें १९६० के दशक में भारत आये करीब दस हज़ार तिब्बती लोग शरण ले रहे हैं। यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं नामड्रोलिंग विहार और उससे लगा हुआ मंदिर।
इतना भव्य मंदिर तिब्बती लोगों की अपनी मातृभूमि से हज़ारों कोस दूर! भारत की यही रंग-बिरंगी विविधता मुझे अक्सर अचंभित कर देती है। मंदिर के अंदर गया तो बच्चन जी की `बुद्ध और नाचघर’ का स्मरण हो आया। भला बुद्ध और मूर्ति! कहीं मैं एक विरोधाभास के बीच तो नहीं खड़ा? इसी बौद्धिक मंथन के बीच मेरी नज़र राजस्थान से आये एक परिवार पर पड़ी।
चौखट को प्रणाम करके बुद्ध की मूर्ति के सामने इस परिवार के सदस्य उसी श्रद्धा से नत-मस्तक होकर खड़े थे जैसे वे अपने किसी इष्ट देव का ध्यान कर रहे हों। “जैसे भगवान हमारे, वैसे उनके“, यह भाव उनके चेहरे पर स्पष्ट था। मूर्तियाँ एक अमूर्त को मूर्त रूप प्रदान करती हैं। जिस रूप में सौंदर्य के दर्शन हों, उसी में मूर्ति ढाल लो और दे दो अपने देव का सांकेतिक स्वरूप। पहले बौद्धिक मंथन का समाधान हुआ तो मैं दूसरे में उलझ गया। विश्व के सभी लोग उसी समरसता के साथ क्यों नहीं रह सकते जिसके दर्शन मुझे अभी इस राजस्थानी परिवार में हुये। ..."

राजस्थान में मैं जयपुर दो बार गया हूँ और हर बार वहाँ राजपूती शासकों द्वारा बनाए गए किलों की संरचना और स्थापत्य देख कर मैं दंग रह गया हूँ पर अपने यूनुस भाई जैसलमेर के जिस किले में आपको घुमा रहे हैं वो अपने आप में निराला है।
किले की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के बारे में यूनुस लिखते हैं
"...जैसलमेर के किले को यहां के भाटी राजपूत शासक रावल जैसल ने सन 1156 में बनवाया था । यानी आज से तकरीबन साढ़े आठ सौ साल पहले । मध्य युग में जैसलमेर ईरान, अरब, मिश्र और अफ्रीक़ा से व्यापार का एक मुख्य केंद्र था । दिलचस्प बात ये है कि इसकी पीले पत्थरों से बनी दीवारें दिन में तो शेर जैसे चमकीले पीले-भूरे रंग की नज़र आती हैं और शाम ढलते ही इनका रंग सुनहरा हो जाता है । इसलिये इसे सुनहरा कि़लायूनुस के पास किले को देखने के लिए मात्र दो घंटे थे। दो घंटों के इस अल्प समय में यूनुस को कौन-कौन से दृश्य सबसे ज्यादा भाए इसका राज मैं अभी नहीं खोलूँगा। ये नज़ारा तो आप इनके चिट्ठे पर जाकर उनके द्वारा ली गई मजेदार तसवीरों से ले सकते हैं।
कहा जाता है । आपको बता दें कि महान फिल्मकार सत्यजीत रे का एक जासूसी उपन्यास 'शोनार किला' इसी किले की पृष्ठभूमि पर लिखा गया है । त्रिकुट पहाड़ी पर बने इस कि़ले ने कई लड़ाईयों को देखा और झेला है । तेरहवीं शताब्दी में अलाउद्दीन खि़लजी ने इस कि़ले पर आक्रमण कर दिया था और नौ बरस तक कि़ला उसकी मिल्कियत बना रहा ।
अपनी मुन्नार यात्रा में चाय बागानों की सुन्दरता से अभी हम मुक्त भी नहीं हो पाए थे कि हमें मिली एक निहायत खूबसूरत रात और ताज़ी सुबह जिसकी सुंदरता में खोकर मैंने लिखा


तो भाई यात्रा चर्चा के लिए आज इतना ही । अगले हफ्ते ये मुसाफ़िर आपको ले चलेगा हिंदी चिट्ठाकारों के साथ कुछ और नयी जगहों पर।
सिर्फ पांच मिनट में त्ती सारी खूबसूरत जगहों की सैर करा दी । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएं'यात्रा चिट्ठा' का टेम्पो हाई है !
जवाब देंहटाएंThanx for introducing likeminded ppl. manish !
जवाब देंहटाएंbahut badhiya .....lage rahiye ,kamal hai yunus bhai ne 2 ghante me kila ghoom liya...jaipur,jodhpur to ja chuka hun bas jaismaler aor pushkar ghumne ki tammana hai.
जवाब देंहटाएंमनीष जितनी जल्दी पढ़कर मुदित हो गये हम ।
जवाब देंहटाएंउसके लिए तुमने लगाया होगा कितना दम खम ।।
ये ऊर्जा बनी रहे मुसाफिरी बनी रहे
घुमक्कड़ी बनी रहे यायावरी बनी रहे
मनीष जी इतनी अच्छी खूबसूरत जगहों की सैर कराने के लिए शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा मनीष भाई, अभी मेरे एक मित्र भी कुर्ग घूम कर आए हैं, उनकी तसवीरें देख रहा था... आपने भी घुमा दिया.
जवाब देंहटाएंबड़ी ही उम्दा यात्रा चर्चा रही. अच्छा है सभी यात्रा वृतांत एक जगह एकत्रित हो जा रहे हैं. बधाई एवं साधुवाद.
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