बुधवार, 29 दिसंबर 2010

हीराकुड बाँध : चिपलिमा का नैसर्गिक सौंदर्य और घंटेश्वरी मंदिर

हीराकुड से निकलने वाली नहरों को देखने के बाद हम शाम को चिपलिमा के लिए निकल पड़े। चिपलिमा  (Chiplima) हीराकुड से पैंतीस किमी दूरी पर स्थित है। यहाँ पर एक छोटा सा जलप्रपात है जिसमें करीब पच्चीस मीटर ऊँचाई से पानी नीचे गिरता है। पर चिपलिमा अपने इस जलप्रपात के आलावा घंटेश्वरी मंदिर के लिए भी जाना जाता है जिसके परिसर में हमेशा श्रृद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। पर इससे पहले कि आपको मैं जलप्रपात के मनोरम दृश्यों से रूबरू कराऊँ  पहले आपको घंटेश्वरी के प्राचीन मंदिर कर बारे में बताना चाहूँगा।

ये मंदिर महानदी के उस हिस्से के पास अवस्थित हैं जहाँ महानदी की तीन धाराएँ आकर मिलती थीं। धाराओं के मेल से यहाँ ऐसे भँवर बना करते थे जो नौकाओं को अपनी चपेट में ले लेते थे। कहते हैं कि नाविकों की मदद के लिए यहाँ बड़ी बड़ी घंटियाँ लगा दी गयीं। ये घंटियाँ इस इलाके में हवा के निरंतर प्रवाह की वज़ह से आपस में टकराती थीं जिसकी आवाज़ से नाविक इस इलाके के पास आने से पहले ही सचेत हो जाया करते थे। इन घंटियों की वज़ह से इस जगह को 'बिना रोशनी का प्रकाश स्तंभ' कहा जाने लगा। जब हीराकुड बाँध बनने के साथ चिपलिमा में पनबिजली केंद्र बना तब यहाँ की जलधाराएँ शांत हो गयीं।

चिपलिमा के इस घंटेश्वरी मंदिर तक पहुँचने के लिए पहले जलप्रपात के ऊपर बनाए गए पतले रास्ते से गुजरना पड़ता है।

हरे भरे पेड़ों के बीच ये पानी जब नीचे की ओर जाता है तो पानी का तेज बहाव सामने आने वाले प्रतिरोधों से टकराकर थोड़ी थोड़ी दूर पर कई अर्धवृताकार रूप बनाता है। पानी में बने ये चाँद, सामने की हरियाली और  प्रपात का दूधिया उफनता फेनिल जल ये तीनों मिलकर एक अत्यंत मोहक दृश्य पैदा करते हैं। एक ऐसा मंज़र जिसे मिनटों अपलक निहारते हुए मन यही कहता है कि काश ये वक़्त ठहर जाए।



थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर रेलिंग के बीच का रास्ता और संकरा हो जाता है। इतना संकरा कि बमुश्किल दो आदमी साथ साथ चल पाएँ। संकरे रास्ता के खत्म होते ही नीचे की ओर की राह आपको घंटेश्वरी मंदिर तक ले जाती हैं।


मंदिर ज्यादा बड़ा नहीं है। पर मंदिर के चारों ओर जहाँ भी नज़र दौड़ाई जाए सिर्फ घंटियाँ ही घंटियाँ दिखाई देती हैं। माता का दर्शन कर और ढेर सारी घंटियाँ बजा लेने के बाद एक बार फिर मैं गिरते पानी के पास चला आया। साँझ गहरी हो रही थी। मंदिर आने वाले यात्रियों का आना अभी भी ज़ारी था। नीचे से जो दृश्य दिख रहा था वो कैमरे में क़ैद करना मुझे जरूरी लगा..

प्रकृति की इन मनमोहक छटाओं को छोड़ कर जाने की इच्छा तो नहीं हो रही थी पर अँधेरे की बढ़ती चादर ने हमें वापस जाने को मजबूर कर दिया। हीराकुड पहुँचने के लिए आप किसी भी ऍसी ट्रेन से आ सकते हैं जो संभलपुर हो कर जाती हो। वैसे हीराकुड का अपना एक अलग छोटा सा स्टेशन भी है पर वहाँ सारी गाड़ियाँ नहीं रुकती।

आज हीराकुड की इस यात्रा को एक साल बीत गया है पर इस स्थान की खूबसूरती और हरियाली के चित्र जब भी दिमाग में कौंधते हैं, मन एक गहरे सुकून से भर उठता है।

 सफर हीराकुड बाँध का : इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

    मुसाफ़िर हूँ यारों का इस साल का सफ़र तो यहीं समाप्त होता है। नए वर्ष में फिर एक नई राह एक नई डगर होगी। आशा है आप भी साथ होंगे। आप सब को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !

    11 टिप्‍पणियां:

    1. That narrow bridge sounds like a lot of fun! And as you said the views are breathtaking!

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    2. really manish that narrow bridge is looking very adventures...well nice post again...

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    3. वाह मनीष जी ,
      एक खूबसूरत पोस्ट ..पहले निहारें , फ़िर पढें टाईप की


      मेरा नया ठिकाना

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    4. bahut sunder darshan laabh kara diya.ham to neeraj ko hi ghumantu jante hai.
      Badhai ho manish ji---

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    5. हम तो घंटेश्‍वरी के प्राचीन मंदिरों को यहां तलाशते रहे और न पा सके, आप कुछ मदद करेंगे.

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    6. राहुल जी मंदिरों की जगह 'मंदिर' कहें। घंटेश्वरी का मंदिर छोटा सा है पर लोग इस पर श्रृद्धा रखते हैं। अगर आप मंदिर के चित्र की उम्मीद कर रहे थे तो वो मैंने नहीं लिया पर ये मंदिर इस नाम से क्यूँ जाना जाता है इसका उल्लेख मैंने पोस्ट में किया है। हीराकुड तो छत्तिसगढ़ के पास ही है, आशा है शीघ्र ही घंटेश्वरी माता का दर्शन करने का अवसर आपके पास होगा।

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    7. घंटेश्वरी मंदिर का सफ़र बड़ा रोचक रहा.

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    8. पर्यटन का आनन्द प्राप्त हुआ ज्ञान भी ।

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    9. aap ki tamam jankari bahut hi upyogi hai ,aap ne bahut khubsurat tarike se prastut kiya hai ,shubhakamnaye .

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