गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

हीराकुड बाँध : नहर परिक्रमा के साथ देखिए मछली पकड़ने का ये अनोखा तरीका..

हीराकुड बाँध आज मुख्य रूप से सिचाई के स्रोत की तरह प्रयुक्त हो रहा है। जब ये बना था तो सिचाई के साथ तीन सौ से ज्यादा मेगावाट बिजली उत्पादन, इस बाँध का लक्ष्य था। पर समय के साथ साथ इस बाँध के तल में महानदी से लगातार लाई जा रही मिट्टी की वजह से संचित जल की मात्रा कम होती चली गई। खेती के साथ साथ  इस इलाके में कई उद्योग लगने शुरु हो गए। आज उद्योगों और कृषि के लिए पानी के बँटवारे को लेकर सरकार और यहाँ के किसानों में तनातनी चलती रहती है। पानी की आपूर्ति दोनों क्षेत्रों में करने की वज़ह से बिजली उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है।

हीराकुड बाँध और फिर गाँधी मीनार को देख लेने के बाद हम बाँध के विभिन्न तटबंधों और नहरों का चक्कर लगाने के लिए निकले। हीराकुड बाँध से यूँ तो कई नहरें निकली हैं पर इनमें बारगढ़ (Bargarh) और सासोन (Sason) नहरें, बाकी नहरों से बड़ी हैं। बाँध से पानी की निकासी स्लयूइस गेट (Sluice Gate) के माध्यम से होती है। पानी की मात्रा कितनी निकलेगी ये जानने के लिए निकासी की जगह पर वीयर (Weir) का निर्माण होता है। Weir की गहराई और चौड़ाई ये निर्धारित करती है कि नहर से अधिकतम कितना पानी छोड़ा जा सकेगा। सासोन नहर देखने के पहले हम इस छोटी नहर पर पहुँचे।


हरे भरे खेतों की बगल से और दुबली पतली सड़कों के नीचे रास्ता बनाती ये नहरें यहाँ के किसानों की जीवनरेखा हैं।


इसके बाद हम चल पड़े सासोन नहर (Sason Canal) की ओर। ये नहर सँभलपुर के जमादारपली गाँव में स्थित है। पाँच फीट गहरी और पचपन फीट चौड़ी इस नहर के पास जब हम पहुँचे तो हल्की हल्की बारिश शुरु हो गई थी। नहर के आस पास बच्चे बारी - बारी से नहर में छलाँग लगा कर मौज़ मस्ती कर रहे थे। वहीं कुछ बच्चे पानी में बंसी डाल कर  मछली के जाल में फँसने के लिए प्रतीक्षारत थे।


नहर भ्रमण में सबसे अधिक आनंद तब आया जब हम बारगढ़ नहर (Bargarh Canal) के नजदीक पहुँचे। वहाँ पहुँचते पहुँचते बारिश थम चुकी थी। नीचे से पानी का जबरदस्त शोर सुनाई पड़ रहा था। दरअसल ये हीराकुड से निकलने वाली सबसे बड़ी नहर है।

नहर में बाँध से आते पानी का दृश्य देखते ही बनता है। पानी भयंकर गर्जना के साथ नहर में गिर रहा था। अचानक हमारी नज़र रेलिंग से लटकी हुई जालीनुमा पर आयताकार खुली टोकरी पर गई जो पानी की उठती हिलोरों में ना जाकर उसके ऊपर तक ही लटका कर रखी गई थी। पहले तो समझ नहीं आया कि अगर ये जाल है तो इसे पानी के अंदर तक क्यूँ नहीं डाला गया? थोड़ी देर वहाँ खड़े रहने से स्थिति स्पष्ट गई। पानी के तेज बहाव की वज़ह से जो मछलियाँ बाँध के स्लूइस गेट से होकर नहर में आती हैं वो जोर का झटका लगने की वज़ह से पाँच फीट तक हवा में उछल जाती हैं और नीचे आते वक्त टोकरी में गिर कर फँस जाती हैं।


मछलियों के यूँ उछल उछल कर गिरने का मंजर बड़ा दिलचस्प था। मैंने बारहा इन उछलती मछलियों को कैमरे में क़ैद करने की कोशिश की। पर बटन दबाने के पहले ही वे नहर के दूधिया जल में विलीन हो जाती थीं। आखिरकार एक फ्रेम में मुझे आंशिक सफलता मिली। मछली काफी बड़ी थी। यहां सिर्फ आपको उसका पिछला भाग दिख रहा है।

नहर के दूसरी तरफ दूर तक फैलाव लिए बाँध का पानी...

पहाड़ियों के सामने के ये दो पेड़ लगता था एक दूसरे के लिए ही बने हों...



नहरों की इस यात्रा पूरी करने में दिन के दो बज गए थे। जब हम वापस अपने गेस्ट हाउस पहुँचे तो देखा कि लंगूरों की फौज आहाते में धमाचौकड़ी मचा रही है।

थोड़ा आराम कर हम लोग शाम को हीराकुड से बीस पचीस किमी दूर स्थित चिपलिमा की ओर चल पड़े। क्या देखा हमने चिपलिमा में वो जानिएगा इस श्रृंखला के आखिरी भाग में...

 सफर हीराकुड बाँध का : इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ

    12 टिप्‍पणियां:

    1. मछली पकड़ने का तरीका उम्दा है।

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    2. पोस्ट उम्दा हे | चित्रों ने मन मोह लिया

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    3. जनाब बहुत सुंदर चित्र ,लेख और मछली पकड़ने का तरीका प्रेक्टिकल .शुक्रिया

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    4. अमिताभदिसंबर 23, 2010

      जितना आकर्षक ये डैम है उतना ही आकर्षक आपका वर्णन करने का अंदाज़|

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    5. बहुत अच्छे से घुमाया आपने ...घर बैठे...शुक्रिया

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    6. मछली पकडने का यह अन्दाज पसन्द आया।

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    7. बेनामीजनवरी 16, 2011

      बहुत सुन्दर ब्लॉग/पोस्ट। आपसे अनुरोध है कि आप इसकी फुल फीड अलाऊ करें! Should allow full feed.

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    8. Padha kar aur deikh kar bahut aanand aayaa.

      MadanMohan Tarun

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