पानी की इस विशाल चादर को अपने चौड़े सीने पर रोककर हीराकुड बाँध अपनी जबरदस्त मजबूती का परिचय दे रहा था। यूँ तो हीराकुड बाँध करीब 26 किमी लंबा है पर इसके मुख्य हिस्से की लंबाई करीब पाँच किमी है। मुख्य बाँध के बीच का हिस्सा हरा भरा दिखता है और ये मिट्टी का बना है जबकि इसके दोनों किनारे सीमेंट कंक्रीट के बने हैं। कंक्रीट वाले हिस्से में ही अलग अलग तलों पर लोहे के विशाल गेट लगे हैं जिसे पानी का स्तर बढ़ने पर खोल दिया जाता है।
सहज प्रश्न मन में उठता है कि सँभलपुर के पास बने इस बाँध का नाम आखिर हीराकुड क्यूँ पड़ा? कहते हैं पुरातनकाल में सँभलपुर हीरे के व्यवसाय के लिए जाना जाता था। कालांतर में ये जगह हीराकुड के नाम से जानी जाने लगी।
हीराकुड बाँध की परिकल्पना विशवेश्वरैया जी ने तीस के दशक में रखी थी। सन 1937 में महानदी में जब भीषण बाढ़ आई तो इस परिकल्पना को वास्तविक रूप देने के लिए गंभीरता से विचार होने लगा। ये पाया गया कि जहाँ छत्तिसगढ़ में महानदी के उद्गम स्थल का इलाका सूखाग्रस्त रहता है तो उड़ीसा में महानदी का डेल्टाई हिस्सा अक्सर बाढ़ की त्रासदी को झेलता रहता है। लिहाज़ा यहाँ एक विशाल बाँध बनाने का काम आजादी से ठीक पूर्व 1946 में चालू हुआ। करीब सौ करोड़ की लागत से (तब के मूल्यों में) यह बाँध सात साल यानि 1953 में जाकर पूरा हुआ और 1957 में नेहरू जी ने इसका विधिवत उद्घाटन किया। मिट्टी और कंक्रीट से बनाया गया ये बाँध विश्व के सबसे लंबे बाँध के रूप में जाना जाता है। बाँध की विशालता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसको बनाने में एक करोड़ इक्यासी लाख मीटर क्यूब मिट्टी और करीब ग्यारह लाख मीटर क्यूब कंक्रीट लगी थी।
बाँध के चारों ओर की हरियाली देखते ही बनती है। दूर- दूर तक हरे भरे पेड़ों और पहाड़ियों पर घने जंगलों के आलावा कुछ नहीं दिखता। बाँध के दूसरी ओर पनबिजली संयंत्र है। पूरी परियोजना से तीन सौ मेगावाट तक बिजली बनाने की क्षमता थी। बाँध का एक चक्कर लगाने के बाद हमारा समूह बाँध के अंदर घुसा।
जी हाँ, बाँध के विभिन्न तलों के रखरखाव के लिए अंदर पूरी गैलरी बनी हुई है। नीचे तक जाने में साँसे फूल जाती हैं और साथ ही ये डर भी साथ रहता है कि जिस मोटी दीवार के इस तरफ हम खड़े हैं उसके दूसरी तरफ पानी हमारे सर की ऊँचाई से कई गुना ऊपर तक हिलोरें मार रहा है। बाँध के दूसरी ओर के इलाके में पानी एक पालतू जानवर की तरह उसी राह पर चलता है जो मानव ने उसके लिए निर्धारित किया है। जलरहित नदी का विशाल पाट बिल्कुल पथरीला दिखता है।
हीराकुड बाँध की सुंदरता उसके चारो ओर फैली हरियाली से और बढ़ जाती है। मुख्य बाँध लमडुँगुरी और चाँदिलीडुँगुरी पहाड़ियों के बीच बना है और दोनों ओर की पहाड़ियों पर एक एक वॉचटावर भी बने हैं। इन्हीं वॉचटावरों में से एकजवाहर मीनार तो हमारे गेस्ट हाउस के ठीक सामने ही थी।
बाँध की ओर जाने के पहले ही हम जवाहर मीनार पर चढ़कर चारों ओर का नज़ारा ले चुके थे। मीनार के ऊपर से नीचे के उद्यान की छटा देखते ही बनती है
बाँध के दूसरी तरफ गाँधी मीनार है। गाँधी मीनार की एक खासियत है जो आपको अगली पोस्ट में बताऊँगा पर चलते चलते हीराकुड के "कैटल आइलेंड" यानि मवेशियों के द्वीप की बात जरूर करना चाहूँगा।
पचास के दशक में जब हीराकुड बाँध बन कर तैयार हुआ तो करीब छः सौ वर्ग किमी का क्षेत्र पानी में डूब गया। इस इलाके में कई छोटी बड़ी पहाड़ियाँ थीं जिस पर उस समय कई गाँव बसे हुए थे। गाँववाले तो पहाड़ियों पर स्थित इन गाँवों से पलायन कर गए पर कुछ ने अपने मवेशी इन पहाड़ियों पर छोड़ दिए। जलस्तर पूरा बढ़ने पर भी इन पहाड़ियों का ऊपरी हिस्सा नहीं डूबा और ये पालतू मवेशी बच गए। बाँध बनने के पाँच दशकों बाद मानव के संपर्क से दूर रहते हुए ये मवेशी अब जंगली हो गए हैं और इन्हें पहाड़ियों पर दौड़ लगाते देखा जा सकता है। वैसे इन द्वीपों में सबसे ज्यादा संख्या में जहाँ ये पाए जाते हैं वो जगह संभलपुर से करीब नब्बे किमी दूरी पर है पर पानी के रास्ते मात्र दस किमी दूरी तय कर वहाँ पहुँचा जा सकता है।
अगली पोस्ट में चलिएगा मेरे साथ गाँधी मीनार पर और देखियगा हीराकुड बाँध के आसपास के मनमोहक नज़ारे।
सफर हीराकुड बाँध का : इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
- बारिश में नहाया हुआ हीराकुड बाँध और कथा मवेशियों के द्वीप की...
- गाँधी मीनार, हीराकुड बाँध : कितनी अनूठी थी वो हरियाली और कितना रूमानी था वो रास्ता?
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बहोत ही सुन्दर विवरण , हीराकुंड बाँध के बारे में बहोत ही अच्छी जानकारी ........
ReplyDeleteअगले भाग का इंतज़ार ........
Very beautiful pictures and writeup. The cattle Island sounds so fascinating.
ReplyDeletegreat pics
ReplyDeleteआपकी नज़रों से हीराकुड बांध देख कर आनंद आ गया...आपकी लेखन कला गज़ब की है...
ReplyDeleteनीरज
लगे रहिये भाई उडीसा भ्रमण पर। आनन्द आ रहा है।
ReplyDeleteकाफी पास रह कर भी हीराकुंड बाँध नहीं जा पाए थे. वह आस अब पूरी हुई. आभार.
ReplyDeleteबढ़िया यात्रा. इंजीनियर को बाँध मिल जाए और वो भी खुबसूरत सा. मैं आपके आनंद को समझ सकता हूँ. वैसे सिविल वाले होते तो शायद और मजा आता. सिविल वालों की हम बहुत टांग खिचाई करते थे ऐसी जगहों पर. :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्रण, ऎसा लगा हम हीराकुन्ड देख आये....यही बैठे बैठे....
ReplyDeletevery fascinating travelogue and beautiful pictures...
ReplyDeletebadiya vritant.....gazab ke foto....jai ho..
ReplyDeleteBahut sundar sajaya hai sabkuchh......................
ReplyDeleteBahut sundar sajaya hai sabkuchh......................
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